दक्षिण हरियाणा की राजनीति पर खास रिपोर्ट

राव इंद्रजीत सिंह को अपने कमजोर कर रहे हैं विरोधी नहीं, दरबार में चाटुकारों का कब्जा


 रणघोष खास.  प्रदीप नारायण

पिछले दो लोकसभा चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी की लहर पर सवार होकर दिल्ली से दक्षिण हरियाणा की राजनीति चला रहे केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह को लेकर चर्चा एक बार फिर हिलोरे मारने लगी है। पिछले दिनों गुरुग्राम की जमीन पर अपना पारिवारिक घर बनाकर केंद्र मे कैबिनेट मंत्री बने भूपेंद्र यादव ने गुरुग्राम- दिल्ली के बीच दावेदारी के फासले को खत्म कर दिया है। साथ ही लगे हाथ अहीरवाल के अंतिम क्षोर पर बसे महेंद्रगढ़ तक अपनी जिम्मेदारी का अहसास भी करा दिया। नतीजा राव विरोधी एक बड़ा धड़ा भूपेंद्र यादव से जुड़ता जा रहा है। हालांकि भूपेंद्र यादव बेवजह की राजनीति विवाद से खुद को अलग रखते हैं ओर उनकी छवि साधारण व्यक्तित्व के साथ मजबूती से पैर जमीन पर रखने की रही है। यह आने वाला समय बताएगा भाजपा हाईकमान यादव समाज के इस पार्टी समर्पित नेता की ताकत का कहां इस्तेमाल करेगी। इतना जरूर है उनके आने से दक्षिण हरियाणा राजनीति का चेहरा एक बार रंग बदल रहा है। 2013 के लोकसभा चुनाव में भाजपा में आने से पहले ओर आने के बाद राव इंद्रजीत सिंह की राजनीति हैसियत को नए सिरे से समझना अब बेहद जरूरी हो गया है। 1977 में पहली बार विधायक बनकर राजनीति की शुरूआत करने वाले राव इंद्रजीत की 44 साल की सफल राजनीति यह साबित करती हैं कि वे जमीन पर आज भी मजबूती से खड़े हैं। बेशक पिछले दो लोकसभा चुनाव में मोदी लहर ने उनकी नैया को पार लगा दिया था लेकिन उनके मुकाबले का नेता दक्षिण हरियाणा में कोई खड़ा नहीं हो पाया है यह भाजपा की रणनीति तय करने वाले भी बखूबी समझते हैं। इसलिए पिछले 7 सालों में राव के सामने कोई मजबूती के साथ डंके की चोट पर दमदार दावेदारी के साथ सामने नहीं आ पाया। छदम युद्ध की तरह जरूर एक दूसरे को कमजोर करने के प्रयास जरूर हुए।

 अब बदल रही राव इंद्रजीत सिंह जमीनी ताकत

भाजपा में आने से पहले राव कांग्रेस के अंदर ओर बाहर बराबर की ताकत रखते थे। इसलिए खुले तौर पर वे सार्वजनिक तौर पर प्रदेश के मुखिया से दो दो हाथ करने में पीछे नहीं हटते थे। उनकी इसी दंबग छवि की वजह से उनके समर्थक एक आवाज में हुंकार भरने में देर नहीं लगाते थे। राष्ट्रीय स्तर पर जब कांग्रेस की जमीन खिसकने लगी ओर राव विरोधी भाजपा में आकर उन्हें घेरने लगा तो राव ने 2013 के लोकसभा चुनाव से ठीक तीन माह पहले सर्जिकल स्ट्राइक की तरह भाजपा में एंट्री कर सबसे पहले अपने विरोधियों की जमने लगी जड़ों को उखाड़ना शुरू कर दिया। उसके बाद  हुए छोटे- बड़े चुनाव में वे काफी हद तक सफल रहे लेकिन धीरे धीरे उनका प्रबंधन कमजोर होता चला गया। राव के पास अब वो पहले वाली टीम नहीं रही जो सुरक्षा कवच बनकर उन्हें संभाल लेती थी। चाटुकारिता की चासनी की तरह  राव के आस पास चिपक चुकी एक लॉबी हावी हो चुकी है । जिसकी वजह से उन्हें छोड़ने वालों में आधे से ज्यादा वे लोग थे जिनकी राजनीति का जन्म ही राव इंद्रजीत के नाम से हुआ था। वे राव के राजनीति लहजों को बखूबी समझते थे। लिहाजा आज राव इंद्रजीत सिंह अपने विरोधियों से कम जड़े  जमा चुकी अपनी इस लॉबी की नासमझ राजनीति से ज्यादा कमजोर जो रहे हैं जो दिन रात उनके आस पास मंडराती रहती है। खुद राव भी चाहकर भी अभी तक यह नहीं समझ पा रहे हैं कि वे किसे अपना माने ओर किससे दूरियां रखे।  इस लॉबी की जमीन पर अपनी कोई हैसियत नहीं है। वे सिर्फ हाजिरी लगाने के नाम पर अपने छिपे एजेंडे को पूरा करने में जुटी रहती हैं।  इसलिए 2013 से पहले जिला प्रमुख बनाने से लेकर किसे विधानसभा की टिकट मिलेगी यह राव के एक इशारे पर तय होता था। आज इसी लॉबी के चलते नगर परिषद रेवाड़ी में प्रधान उसके बाद उपप्रधान बनाने तक के छोटे स्तर के चुनाव में भी राव को निजी तोर पर संघर्ष करना पड़ा। इसकी वजह भी साफ है। पिछले 5-7 सालों में राव का साथ छोड़ने को मजबूर हुई उनकी मजबूत टीम भी शातिर अंदाज से अपनी जगह बना चुकी इस लॉबी का शिकार बन गईं।  राव के पास आज एक एक ऐसा जमावड़ा बन चुका है जो राव की जमीन पर ही खड़े होकर उन्हें ही जमीनी ताकत के बारे में सलाह दे रहा है। इतना ही नहीं  बढ़ती उम्र के साथ जब उनकी बेटी आरती राव ने राजनीति विरासत को संभालना शुरू किया तो उन्हें भी इसी अंदाज में इस लॉबी ने घेरना शुरू कर दिया और काफी हद तक वे कामयाब रहे। इसी वजह से आरती राव आज तक समझ नहीं पा रही है कि वह अपने पिता की राजनीति विरासत को ठीक उसी तरह कैसे संभाले जैसे उनके पिता ने काफी हद तक दादा (पूर्व मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह ) के कद को समय रहते छोटा नहीं होने दिया। पिछले विधानसभा चुनाव में रेवाड़ी सीट पर उनके समर्थक सुनील यादव को मिली हार यह साबित करती हैं कि राव को सार्वजनिक तौर पर मुखालफत करने वालों ने नहीं उस लॉबी ने हरवाया जो एक साथ कई नावों में सवारी कर रही थी। यह लॉबी  कहने को पूरी तरह राव के दरबार में नजर आती हैं लेकिन उनका दिमाग किसी ओर के लिए काम कर रहा था। नतीजा रेवाड़ी की जीत करीब होते हुए भी हार में बदल गईं। ऐसा ही नजारा रेवाड़ी के नगर निकाय चुनाव में नजर आया। यहां राव कुछ संभलकर चले। पूरी तरह लॉबी के झांसे में नहीं आए। इसलिए बचाव हो गया। ऐसे में एक महिला होने के नाते आरती राव के सामने राजनीति चुनौतियां ज्यादा बड़ी है। अभी तक उनके लिए पिता ही राजनीति की चलती फिरती प्रयोगशाला है। ऐसे में आरती राव को जय जयकार करने वालों की मानसिकता से खुद को अलर्ट करना होगा। उन्हें यह स्वीकार करना होगा कि असली खतरा धुर विरोधियों से नहीं उनके आस पास पैठ बना चुकी उस लॉबी से हैं जिसके चलते उनके परिवार की राजनीति विरासत एक दायरे में  सिमटती जा रही है। राव इंद्रजीत सिंह बखूबी जानते हैं वे आज भी अपने पुराने कार्यकर्ताओं के दम पर मजबूत है। बड़ा दिल दिखाते हुए राव अपने पुराने कर्मठ साथियों को अपने खेमें लाने  में कामयाब हो गए तो आरती राव के लिए राजनीति का रास्ता काफी हद तक ठीक हो जाएगा नहीं तो उनके लिए आने वाला समय आसान भी नहीं है।

 

One thought on “दक्षिण हरियाणा की राजनीति पर खास रिपोर्ट

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