मुफ़्त खाने के लिये क्यों मजबूर हो गया है मध्य वर्ग?

रणघोष खास. प्रीति सिंह 

शेखर कुणाल पेशे से पत्रकार हैं। एक साल पहले उनकी नौकरी चली गई। वह मित्रों से मदद लेकर किसी तरह एक साल तक खर्च चलाते रहे। मकान का किराया न चुका पाने के कारण मकान मालिक ने घर में ताला लगाकर भगा दिया और कहा कि किराया दोगे, तभी सामान वापस करेंगे। उन्होंने मदद की अपील की है कि अगर कोई नौकरी दिला सकता है तो उन्हें नौकरी दिला दे। साथ ही उन्होंने आर्थिक मदद की भी अपील की है, जिससे कि वे राशन व मित्रों की उधारी चुका सकें। मकान का किराया चुकाकर अपने बंधक सामान व किताब-कॉपी, स्कूल के सर्टिफिकेट व अन्य कागजात मकान मालिक से मुक्त करा सकें।  शेखर कुणाल इकलौते नहीं हैं। आर्थिक बदहाली की शिकार हो चुकी भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 की दूसरी लहर कहर बनकर टूट पड़ी है। मध्य वर्ग के लोग लंगर की कतारों में आ गए हैं और जान की भीख मांग रहे हैं।

“खाना चाहिए” संगठन 

29 मार्च, 2020 को मुंबई में विस्थापितों को भोजन मुहैया कराने के लिए स्थापित गैर लाभकारी संगठन “खाना चाहिए” ने वेस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे पर खाना वितरण का काम शुरू किया था, जो अभी भी इस काम में लगा है। अब तक मुंबई, नवी मुंबई, मीरा भायंदर, कल्याण व भिवंडी में 12 लाख पैकेट से ज्यादा तैयार खाना, 12 हजार के करीब किराने के सामान का थैला बांट चुके इस संगठन का कहना है कि 2020 के लॉकडाउन में ज्यादातर विस्थापित श्रमिक खाने और राशन पाने की चाह रखने वालों की कतारों में थे, 2021 में मध्य वर्ग के लोग इन कतारों में खड़े हो गए हैं।

ग़रीबों की श्रेणी में मध्य वर्ग 

भारत में मध्य वर्ग में उसे माना जाता है, जिसकी प्रतिदिन की आमदनी 10.1 से 20 डॉलर (750 से 1,500 रुपये रोजाना) होती है। अमेरिका के थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर के हाल के एक विश्लेषण से इसकी पुष्टि होती है कि मध्य वर्ग की हालत खराब हो रही है। 2020 में मध्य वर्ग की संख्या 3.2 करोड़ कम हुई है और वे ग़रीबों की श्रेणी में शामिल हो गए हैं।कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च, 2020 को रात 8 बजे पूरे देश को रोक दिया था, ताकि “कोरोना महामारी को फैलने से रोका जा सके और संक्रमण के चक्र को तोड़ा जा सके।” यह संक्रमण चक्र नहीं टूटा। लॉकडाउन रहने के कारण प्रसार में कुछ कमी ज़रूर आई।

दूसरी लहर में व्यवस्थाएं धड़ाम 

केंद्र सरकार के मंत्रियों, बीजेपी नेताओं ने प्रधानमंत्री की पीठ थपथपानी शुरू की। भारत ने टीका डिप्लोमेसी शुरू की और तमाम देशों को कोरोना के टीके की आपूर्ति करने लगा, तमाम देशों को मदद पहुंचाने लगा। विशेषज्ञों की ओर से दूसरी लहर की चेतावनी के बावजूद राज्यों में बड़ी-बड़ी रैलियां हुईं। कोरोना की दूसरी लहर आई तो भारत की सारी स्वास्थ्य सुविधाएं ही ध्वस्त नहीं हुईं, अंतिम संस्कार के लिए घाट भी मयस्सर नहीं हो पाए। लोगों को नदी के किनारे बालू में लाश दबाकर भागना पड़ा और मरने वालों को मुखाग्नि तक नहीं मिल सकी।भारत में विश्व के एक-तिहाई कुपोषित लोग रहते हैं, उनका खाना मुहाल हो गया। पहले चरण में पैदल गांवों की तरफ भाग रहे लोगों की मदद के लिए सामने आया मध्य वर्ग दूसरी लहर में बेचारगी की हालत में आ गया।

मुफ़्त राशन की मांग बढ़ी 

मुफ़्त राशन की दुकानों पर कतारें इस कदर लंबी हुईं कि केंद्र सरकार को एक बार फिर मुफ़्त राशन वितरण का कोटा बढ़ाना पड़ा। सरकार के मुताबिक़ मई से नवंबर, 2021 तक प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत अनाज वितरण बढ़ाया गया, जिसकी वजह से सरकार को 94,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड़ेंगे और एक साल में गरीबों को मुफ़्त अनाज देने पर 2.21 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे।प्यू रिसर्च की रिपोर्ट के आंक़ड़े देखें तो 2 डॉलर यानी 140 रुपये रोजाना कमाने वाले ग़रीबों की संख्या कोविड-19 ने बढ़ा दी है। रिपोर्ट के मुताबिक़, इनकी संख्या करीब 7.5 करोड़ बढ़ गई है। इसकी वजह से मनरेगा जैसी ग्रामीण योजनाओं में काम की मांग बेतहाशा बढ़ी है। जिस मनरेगा का प्रधानमंत्री संसद में मजाक उड़ाते थे, उसका बजट ऐतिहासिक रूप से वित्त वर्ष 2020-21 के लिए 40,000 करोड़ रुपये और बढ़ाकर 1.015 लाख करोड़ रुपये करना पड़ा।कोरोना की मार शहरी मध्य वर्ग और गरीबों पर ज्यादा पड़ी है। शहरों में रहने वाले मध्य वर्ग और ग़रीबों के पास एक महीने के लिए भी सरप्लस मनी नहीं होती है। ऐसे में जिन लोगों की नौकरियां जा रही हैं, उनके रहन-सहन से लेकर चेहरे की चमक तत्काल ग़ायब हो रही है।प्रधानमंत्री द्वारा 24 मार्च, 2020 को किए गए लॉकडाउन की घोषणा के बाद से धार्मिक तीर्थस्थल वृंदावन में बेसहारा लोगों के लिए 25 मार्च, 2020 से लंगर चला रहे बालेंदु सेवा संस्थान के पूर्णेंदु गोस्वामी का कहना है कि करीब डेढ़ साल होने को हैं और लंगर में लाइन घटने के बजाय बढ़ती ही जा रही है।

पर्यटन कारोबार पर मार 

धार्मिक पर्यटन कराने वाले पूर्णेंदु का कहना है कि पर्यटन कारोबार फिलहाल कम से कम 2 साल तक लौटता हुआ नहीं दिख रहा है, क्योंकि भारत में मध्य वर्ग के बिजनेसमैन मुख्य पर्यटक होते हैं और यह तबका लॉकडाउन का सबसे बड़ा शिकार हुआ है।

1.33 करोड़ नौकरियां गईं 

सीएमआईई की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, मार्च, 2021 की तिमाही में 39.97 करोड़ लोग नौकरियां कर रहे थे, जो जून, 2021 की तिमाही में घटकर 38.64 करोड़ रह गई। इस तरह से देखें तो कोविड की दूसरी लहर में 1.33 करोड़ लोगों की नौकरियां गई हैं।

मुफ़्त अनाज पर निर्भर 

नौकरियां जाने के आंकड़े हालांकि इतने सपाट नहीं होते। जिन लोगों की नौकरियां जाती हैं, वह उससे कम वेतन पर छोटी-छोटी नौकरियां ढूंढने की कवायद करते हैं। यह अलग बात है कि छोटी नौकरियों में कम मारामारी नहीं है और भीड़ बढ़ने से वहां पर पहले से काम कर रहे लोग और नीचे के स्तर पर चले जाते हैं। इस तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था की दुर्दशा में मध्य वर्ग के लोग ग़रीबी रेखा में आ रहे हैं और ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों को रोज का खाना जुटाने के लिए स्वयंसेवी संगठनों के लंगरों और सरकार के मुफ़्त अनाज पर निर्भर होना पड़ रहा है।

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