रणघोष के इन सवालों में छिपा हुआ है अरबों रुपए की संपति का सच

  करोड़ों की जमीन कौड़ियों में बेचते रहे वारिस, रामलीला मैदान पर साबित नहीं कर पाए मालिकाना हक, टेकचंद क्लब केस में प्रशासन को क्यों जाना पड़ा कोर्ट


रणघोष खास. सुभाष चौधरी

शहर में चारों तरफ फैली राय बहादुर सिंह मक्खलाल की 3931 एकड़ 7 कनाल जमीन के वारिसों को लेकर सरकारी रिकार्ड में छिपा सच आना अभी बाकी है। रणघोष के पास 13 फरवरी 1939 में जज आईयू खान  के फैसले की वह कापी है जिसमें बिशंबरदयाल बनाम मुंशीलाल केस में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने राय बहादुर मक्खनलाल के गोद आए मुंशीलाल के दावे को खारिज कर दिया था। इसी को आधार बनाते हुए शहर के रामलीलाल मैदान को भी स्कूल प्रबंधन ने  इन वारिसों से जीत लिया था। इसी तरह जिला प्रशासन भी टेकचंद क्लब के मामले में इन वारिसों द्वारा किसी दूसरे को बेची गई जमीन को लेकर हाईकोर्ट में जा चुका है। साथ ही  सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन वारिसों की तरफ से शहर की कुछ प्रोपर्टी को बाजार रेट से बहुत कम रेट पर क्यों बेचा गया।  ऐसा करने की पीछे की वजह का सच आना बहुत जरूरी है। पहली बार राजनीति तौर पर दो दिग्गज नेताओं के लिए इन वारिसों की जमीन को लेकर जंग शुरू होने से उम्मीद बनने लगी है कि  1939 से लेकर आज तक 82 साल के दरम्यान उन सभी दस्तावेजों की जांच हो जिसकी वजह से शहर की नींद उड़ चुकी है। अभी तक इन जमीनों की खरीद फरोख्त में अरबों रुपए का लेन देन हो चुका है जबकि असल वारिस को लेकर कोर्ट में तस्वीर पूरी तरह से धुंधली है। पूर्व मंत्री कप्तान अजय सिंह यादव का यह दावा करना कि अहीर कॉलेज की करीब 200 करोड़ की जमीन को कोई मालिक महज डेढ़  करोड़ रुपए में कैसे बेच सकता है। यह जमीन के पीछे का खेल नही तो क्या है। दूसरी बात रामलीला मैदान में केस हारने के बाद वारिस यह साबित क्यों नहीं कर पाए कि वहीं इस मैदान के असली मालिक है। इसमें कोई दो राय नहीं 1906 में राय बहादुर सिंह मक्खलाल ने रामलीला मैदान के लिए जमीन स्कूल को दान कर दी थी। 2006 में इस जमीन को चोरी छिपे बेचने की साजिशों के चलते स्कूल प्रबंधन को कोर्ट का सहारा लेना पड़ा था ओर एक लंबी लड़ाई के बाद वे इस केस को जीत गए थे। उस समय कुछ प्रभावशाली नेताओं के इस जमीन को खरीदने के नाम भी उछले थे। बाद में यह मामला दबा दिया गया।  

इन जमीनों की बड़े स्तर पर जांच की उठने लगी मांग

जिस तरह  जमीन खरीदते समय एवं बेचते समय अलग अलग कागजातो में वारिसों ने जो कागजात लगाए हैं उसमें भी काफी अंतर आ रहा है। कुछ जमीनों में वारिसों ने गोदनामा की तिथि ही अलग अलग दिखाई है। पूर्व मंत्री कप्तान के इन जमीनों के कोई  वारिस नहीं होने के दावे को इसलिए इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि वे लगातार छह बार यहां से विधायक एवं राज्य सरकार में वित्त मंत्री तक रह चुके हैं। उस समय भी इन जमीनों की खरीद फरोख्त को लेकर जमकर शोर मचा था। ऐसे में उनका अचानक मीडिया के सामने आकर वारिस नहीं होने का खुलासा करना भी कई सवाल खड़े करता है। कप्तान समेत अनेक दिग्गज नेता इन जमीनों के वारिसों के दावे की सीबीआई जांच कराने की मांग कर रहे हैं।

जमीन खरीदते बेचते समय शोर नहीं मचे, इसलिए बिचौलिए में रहते असरदार लोग

शहर में इन वारिसों से जमीन खरीदते समय खरीददारों ने बीच में ऐसे दंबग लोगों को भी शामिल किया था जो विवाद होने पर मौके पर स्थिति को संभाल ले। इसलिए कुछ जमीनों को ऐसे दबंगई लोगों ने सस्ती दरों पर खरीदा हुआ है या इधर उधर की खरीद फरोख्त में शामिल रहे हैं जिसके कुछ मामले पुलिस थानों एवं कोर्ट में चल रहे हैं।

 इन संपतियों पर है भूमाफियाओं की नजर

99 साल के पटटे पर चल रही अहीर कॉलेज की जमीन की रजिस्ट्री होने के बाद अब चर्चाएं जोर पकड़ने लगी है कि अब शहर की बहुत सी बेशकीमती जमीन भी इधर उधर हो सकती है। अगर इन जमीनों के वारिस को लेकर विवाद गहरा गया और बड़े स्तर पर जांच शुरू हो गई तो शहर की बेशकीमती जमीन पर भूमाफिया साम दंड भेद से कब्जा कर सकते हैं। मुख्य तोर पर जिन जमीन पर इनकी नजरें हैं उसमें रामलीला मैदान, दिल्ली रोड पर राजविलास, राधिका थियेटर, बस स्टैंड पर एसडीएम की कोठी के पास खाली पड़ी जमीन, माडल टाउन एवं जैन  स्कूल के आस पास की जमीन शामिल है।

 आइए राय बहादुर सिंह मक्खलाल के पारिवारिक इतिहास पर नजर डाले

 रेवाड़ी के खुशवंत राय ने राय बहादुर मक्खनलाल को गोद लिया था। मक्खनलाल के भी शादी के बाद कोई वारिस नहीं हुआ तो उन्होंने अपनी बहन जो गुरुग्राम में रहती थी के बेटे मामचंद को गोद ले लिया था। 1917-18 में मामचंद की हैजे बीमारी के चलते मृत्यु हो गई थी। उसके बाद 1925 के आस पास तक खुशवंत सिंह,उसकी पत्नी एवं बहन की भी अलग अलग कारणों से मृत्यु हो गईं। उस समय मक्खनलाल 3931 एकड़ 7 कनाल जमीन के मालिक थे। उनके यहां मुनीम मुंशीलाल बचे थे। उन्होंने दावा किया कि राय बहादुर मक्खनलाल ने कोई वारिस नहीं होने पर उन्हें गोद ले लिया था। इसका शपथ पत्र भी उनके पास है। इस आधार पर वे इस जमीन के मालिक है। इसके बाद बिशंबरदयाल नामक व्यक्ति ने मुंशीलाल के गोदनामा के दावे को कोर्ट में चुनौती दे दी। 13 फरवरी 1939 को जज आई यू खान की कोर्ट में मुंशीलाल का गोदनामा दावा झूठा साबित हो गया। जिसे रिकार्ड में अपडेट किया जाना था जो नहीं हुआ। इसी दौरान मुंशीलाल के दो संतान हुई जिसमें एक राजा रतिराम एवं दूसरा नेमीचंद। राजा रतिराम के तीन बेटे प्रेम, राजकुमार एवं सतीश हुए जबकि नेमीचंद के कोई बेटा नहीं था उनके दो बेटी सावित्री एवं ऊर्षा हुईं। यहां से जमीन की जायदाद के रिकार्ड में इन वारिसों के नाम चढ़ते चले गए।

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