एमआरटीएस प्रोजेक्ट में हो रही देरी पर दैनिक रणघोष का खुलासा

एचएसआईआईडीसी अधिकारियों ने अपने लालच में ड्रीम प्रोजेक्ट को घर का बही खाता बना दिया


–  कैबिनेट मंत्री डॉ. बनवारीलाल तक को  कर दिया गुमराह

– रेवाड़ी में आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर हो रहे किसान

– मुआवजा को लेकर इस तरह हो रही बेकाबू स्थिति

– अधिकारियों को कमीशन दे देते तो  यह नौबत नहीं आती

-एमआरटीएस अधिकारियों ने कहा यूपी से सबक ले हरियाणा सरकार


रणघोष खास. चंडीगढ. नई दिल्ली


हरियाणा सरकार में मलाईदार पदों पर बैठे अधिकारी कुछ भाजपाईयों से मिलकर किस कदर मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री एवं जनप्रतिनिधियों को गुमराह कर अपना खेल करते हैं। इसका खुलासा सामने आ गया है। देशभर में मैट्रो रेल सुविधाओं का विस्तार करती आ रही मास रैपिड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन लिमिटेड (एमआरटीएस) अंडर दिल्ली- मुंबई इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर डेवलपपेंट कॉरपोरेशन (डीएमआईसीडीसी) ने हरियाणा में 2012 में गुरुग्राम- मानेसर-  धारूहेड़ा-बावल तक इस प्रोजेक्ट को स्वीकृत किया था। इसके लिए जमीन अधिग्रहण करते समय राज्य सरकार ने एचएसआईआईडीसी को इसके लिए नोडल एजेंसी बनाया था। उसका काम जमीन अधिग्रहण करके एमआरटीएस को देना था। कायदे से पांच साल के निर्धारित लक्ष्य के तहत  2017 में ही दिल्ली- गुरुग्राम- बावल के बीच मैट्रो दौड़ना शुरू हो जानी चाहिए थी। इस दौरान एचएसआईआईडीसी गुरुग्राम से बावल 82 किमी रूट पर दौड़ने वाली इस ट्रेन के लिए सैकड़ों करोड़ रुपए जमीन अधिग्रहण के नाम पर 2018 में किसानों को बांट चुकी है। जिसमें 120 करोड़ अकेले रेवाड़ी के किसानों को मिल गए थे।  उसे केवल इन जमीनों पर बने स्ट्रक्चर का ही मुआवजा देना था। जिसे देने के नाम पर अब वह  पिछले चार सालों से मंत्री, विधायकों व सरकार में जिम्मेदार पदों पर बैठे पदाधिकारियों को यह कहकर गुमराह करती रही कि यह प्रोजेक्ट की डी नोटिफाई हो रहा है। मतलब इस पर पैसा खर्च करने का कोई फायदा नहीं। अगर यह सही बात है तो  एचएसआईआईडीसी यह क्यों नहीं बता रही कि जो सैकड़ों करोड़ रुपए जमीन अधिग्रहण के नाम पर किसानों को बांट चुकी है उसकी रिकवरी कैसे करेगी। उन जमीनों को वह अपने नाम करवा चुकी है। किसान जमीन से मिले मुआवजे का उपयोग अन्य जमीन खरीदने या अपना व्यवसाय शुरू करने में लगा चुके हैं। उनके पास अब मुआवजा राशि कैसे आ जाएगी। सबसे बड़ी बात इन जमीनों पर बने स्ट्रक्चर घर, दुकानें एवं अन्य भवनों का क्या होगा। ना किसान इसे बेच सकते हैं और ना एचएचआईआईडीसी इनका मुआवजा देकर स्थिति साफ कर रही है। यानि अधिकारियों की नादानी, अपने स्वार्थ के चलते किसान पूरी तरह से मानसिक और आर्थिक तौर पर फंस चुके हैं। इसलिए मंगलवार को किसानों ने डीसी को ज्ञापन देकर स्पष्ट कर दिया था कि एक सप्ताह में मुआवजा नहीं मिला तो वे आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाएंगे। अधिकारियों ने उन्हें बर्बाद कर दिया है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि एचएसआईआईडीसी इस प्रोजेक्ट को किस अधिकार के तहत डी नोटिफाई बता रही है जबकि वह तो महज नोडल एजेंसी है।  अगर इस प्रोजेक्ट को लेकर कोई शंका या दुविधा है तो इसे मास रैपिड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन लिमिटेड के अधिकारी स्पष्ट करें जबकि उल्टा वे तो जमीन मिलने का इंतजार कर रहे हैं।

  कैबिनेट मंत्री डॉ. बनवारीलाल तक को  कर दिया गुमराह

एचएसआईआईडीसी अधिकारियों द्वारा गुमराह करने का खुलासा उस समय हुआ जब राज्य के कैबिनेट मंत्री डॉ. बनवारीलाल ने मुआवजा को लेकर धरना प्रदर्शन कर रहे किसानों की आवाज को सामने रखा तो उन्हें जवाब मिला कि यह प्रोजेक्ट की डी नोटिफाई हो रहा है। इसलिए हम मुआवजा नहीं दे सकते। इसी तरह राज्य सरकार द्वारा कराए जा रहे विकास कार्यों का मीडिया प्लेटफार्म पर रखने वाले प्रदेश मीडिया प्रभारियों को भी इसी तरह का जवाब दिया गया। चूंकि पहली बातचीत में कैबिनेट मंत्री व मीडिया प्रवक्ताओं को इस प्रोजेक्ट की पूरी जानकारी नहीं थी इसलिए वे चुप हो गए। जब बाद में जानकारी जुटाई तो वे हैरान में पड़ गए। उसके बाद डॉ. बनवारीलाल ने कैबिनेट मीटिंग के दौरान अधिकारियों से अलग से सख्त लहजे में पूछा तो वे अधिग्रहित की जमीन पर बने स्ट्रक्टचर का मुआवजा देने के लिए तैयार हो गए। यानि यह हरियाणा सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट ना होकर अधिकारियों की नजर में बही खाता था जिसे जब चाहा अपने हिसाब से बता दिया।

एमआरटीएस अधिकारियों ने कहा यूपी से सबक ले हरियाणा सरकार

दिल्ली- मेरठ तक लगभग इतनी लंबाई का इसी तरह का प्रोजेक्ट भी उसी समय तैयार हुआ था। 2023 के मार्च माह में इस रूट पर मैट्रो दौड़ना शुरू हो जाएगी। ट्रेनों का ट्रायल चल रहा है। इससे दिल्ली- मेरठ की दूरी 50 मिनट में कवर हो जाएगी। इसी तरह दिल्ली व रेवाड़ी की दूरी भी इस मैट्रो सुविधा से 50-55 मिनट में कवर होनी थी लेकिन यहां इस प्रोजेक्ट को लेकर स्थिति उलटी नजर आ रही है।

आइए जाने इस प्रोजेक्ट की असल तस्वीर

2012 में कांग्रेस की हुडडा सरकार के समय में यह प्रोजेक्ट आया था। इसकी डीपीआर रिपोर्ट के मुताबिक गुरुग्राम-  बावल एमआरटीएस अंडर डीएमआईसीडीसी के तहत यह प्रोजेक्ट लागू हुआ था। जिसके तहत 82 किमी लंबी मैट्रो रेल सुविधाओं का विस्तार होना था जिस पर 17 हजार 328 करोड़ खर्च होने थे। 39 स्टेशन बनाए जाने थे। इस प्रोजेक्ट को लाने का मकसद दिल्ली- मुंबई इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर डेवलपपेंट कॉरपोरेशन (डीएमआईसीडीसी)से संबंधित था। हजारों- लाखों लोग के आवगमन के लिए यह रेल सुविधा जरूरी थी। रिपोर्ट के मुताबिक यह प्रोजेक्ट सीधे तौर पर इसके दायरे में आने वाले 31.90 लाख  लोगों को प्रभावित कर रही थी इसमें रोजगार से संबंधित लोगों की संख्या 16 लाख के आस पास थी। एचएसआईआईडीसी को जमीन अधिग्रहण के नाम पर सेक्शन 4, 6 अवार्ड के तहत दिसंबर 2016 तक 465 करोड़ रुपए खर्च किए जाने का प्रावधान तय हुआ था।

 रेवाड़ी में आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर हो रहे किसान

रेवाड़ी- धारूहेड़ा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले खालियावास, ढुंगरवास, मसानी गांवों के किसानों की एमआरटीएस परियोजना (Mass.rapid transit system and allies use and early project DMIC) के विस्तारीकरण हेतु  एचएसआईआईडीसी द्वारा  अवार्ड 7 अगस्त 2020 के अंतर्गत जमीन अधिग्रहित की गई थी। 2020-21 में जिला रेवाड़ी में इस परियोजना के तहत कुल मुआवजा 201 करोड़ 53 लाख 62 हजार 130 रुपए अवार्ड हुआ। जिसमें 120 करोड़ रुपए जमीन अधिग्रहण के नाम पर किसानों को जारी कर दिए। बाकि 81 करोड़, 53 लाख, 62 हजार 130 रुपए की राशि इसी जमीन पर बने भवन की क्षतिपूर्ति के तौर पर 10 सितंबर 2021 को अवार्ड कर दिया गया। कायदे से अवार्ड के 30 दिन के भीतर यह राशि किसानों को मिल जानी चाहिए थी लेकिन एक साल तक हम इस राशि को लेकर संघर्ष करते आ रहे हैं। जिन किसानों की जमीन पर बने स्ट्रक्चर का मुआवजा निर्धारित हुआ था उसमें राजेश कुमार पुत्र वेदराम, लीलावती,  सतपाल पुत्र हेतराम, राजकुमार पुत्र वेदराम, शंकुतला पुत्री भूप सिंह, जितेंद्र पुत्र ओमप्रकाश, उदयभानन पुत्री रामकिशन, सतपाल पुत्र हयातराम,  रविकांत सैनी पुत्री सूर्यआकाश सैनी, व अन्य दो शामिल है । इसी तरह ढुंगरवास एचएडीबीएएसटी नंबर 194 के तहत जमीन को अधिग्रहित किया गया था। जिसमें किसान सुनरी पुत्री हरि सिंह, नारायण पुत्र जगदेव, ग्राम पंचायत, अनिल राव, उर्मिला पुत्री संतोष कुमार, सुमन सिंह, राजवीर, हरिप्रसाद, पुत्र किशनलाल, सुमित्रा पुत्री भूम सिंह, नरेंद्र पुत्र अमर सिंह, महेश प्रताप पुत्र महिपाल, रमेश चंद्र पुत्र हरि सिंह, गुलाब सिंह पुत्र महा सिंह को मुआवजा मिलना था। अधिकांश पीड़ितों की मुआवजा राशि 20 हजार, 40 हजार, 70 हजार से लेकर ढाई, तीन व चार लाख में आ रही है। यह राशि एचएसआईडीसी के द्वारा मिलनी है।

मुआवजा को लेकर इस तरह हो रही बेकाबू स्थिति

मंगलवार को जिस तरह किसानों ने प्रदर्शन करते हुए विडियो जारी कर सात दिनों में मुआवजा  नहीं मिलने पर आत्महत्या करने की चेतावनी तक दे डाली है। उससे स्थिति बेकाबू होती जा रही है।  रेवाड़ी में किसान धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। थक हारकर नेताओं के पूतले फूंके गए। दो दिन पहले केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, भाजपा संसदीय बोर्ड सदस्य डॉ. सुधा यादव को ज्ञापन दिया चुका है। राव इंद्रजीत सिंह के पास पहले भी ज्ञापन दे चुके हैं। भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष गुरनाम चढुनी कुरुक्षेत्र व जींद नरवाना में यह मुददा उठा चुके हैं।  भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़, सीएम मनोहरलाल से लेकर एचएसआईआईडीसी के सभी अधिकारियों के संज्ञान में यह पूरा मामला है। जिला रेवाड़ी का डीआरओ हालात को देखते हुए 15 बार मुआवजा को लेकर एचएसआईआईडीसी को रिमाइंडर भेज चुका है। कुल मिलाकर यह मामला सड़क पर आकर बेकाबू होता जा रहा है।

अधिकारियों को कमीशन दे देते तो यह नौबत नहीं आती

कुछ किसानों का यहां तक आरोप था कि अगर वे फरवरी 2022 में अधिकारियेां के कहने पर मुआवजा के नाम पर कुछ कमीशन तय कर देते तो अभी तक यह राशि उनके खातों में आ चुकी होती। यह सारा खेल ही कमीशनखोरी का है। चंडीगढ़ में सीनियर्स अधिकारियों को भनक तक नहीं होती कि उनके अधीनस्थ अधिकारी फाइल ओके करने के नाम पर कमीशन का खेल करते हैं। अगर पता है तो वे इसे जानबूझकर अनदेखा कर देते हैं। जब कोई अप्रिय घटना हो जाती है तब सरकार मंत्री एवं अधिकारी खुद  को बचाने के लिए भागते हैं। इसमें कुछ भाजपाई चंडीगढ़ में संबंधित विभागों से अटैच होकर भी खेल करते हैं वे अधिकारियों को उनकी  नौकरी बचाने व आंच नहीं आने का टेंडर लेते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो किसी भी प्रोजेक्ट को लेकर समय पर स्थिति स्पष्ट क्यों नहीं की जाती।

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