एक मानव समुदाय के रूप में हमें ऐसे हानिकारक और बेशर्म बुराइयों का विरोध करने के लिए सतर्क और सावधान रहना चाहिए जो कि इस्लाम धर्म के द्वारा किसी भी तर्क से उचित नहीं है।
रणघोष खास. शेख सालेह अल- लुहैदन
180 मिलियन मुसलमान ने बटवारा के दौरान भारत में रहने को तवज्जो दिया। वे यहाँ की संस्कृति और परंपरा को पसंद किया और चरमपंथी सिद्धांतों को खारिज कर दिया जो दरार और क्रांति की ओर ले जाए। जब मोहम्मद पैगम्बर के शिष्य किसी भी नगर को जीतते थे तो वो सभी नागरिकों को उनके घरों में रहने की आजादी देते थे और मुसलमान शासन और सुरक्षा में रहकर उन्हें यह भी आजादी थी कि वो मंदिर, गिरिजाघर में इबादत कर सके। अतीत से सीख लेकर भारतीय मुसलमान जो कि अल्पसंख्यक है गैर मुसलमान के साथ त्योहार मनाते हैं और शांतिपूर्वक रहकर एक समधर्मी समाज का निर्माण करते हैं। भारत सरकार ने हाल ही में धारा 370 हटाया है। आम धारणा के विपरीत भारतीय मुसलमान की संयुक्त राय थी कि कश्मीरी मुसलमान को भारत के साथ रहना चाहिए और यहाँ मोहब्बत, अमन एवं भाईचारे को बढ़ावा देना चाहिए। यह सलूक उन लोगों पर गहरा तमाचा है जो कि भारतीय मुसलमान के निष्ठा पर निरंतर सवाल उठाते थे। यह उजागर करता है कि भारतीय मुसलमान ऐसी कोई आंदोलन का साथ नहीं देगा जो कि भारत के आत्मा के खिलाफ होगा। गौ-रक्षा की माँग पर एक चरमपंथी समूह द्वारा एक मुसलमान की हत्या की निंदा मुस्लिम समुदाय द्वारा की गई परंतु उन्होंने कभी एकत्रित होकर हिंसा और दरार पैदा करने की कोशिश नहीं की। वे भारतीय संविधान जिसने उन्हें सम्मान, अधिकार व अवसर प्रदान किया है पर विश्वास रखते हैं। इस पृष्ठभूमि में आइए एक कट्टरपंथी हिंसक संगठन पी.एफ.आई के बारे में बात किया जाए। कुछ साल पहले तक उत्तर भारत के राज्यों में मुश्किल से ही किसी को पी.एफ.आई के बारे में जानकारी थी । मूलत: पी.एफ.आई केरल आधारित एक अल्पसंख्यक केन्द्रित संगठन थी जो कि चरमपंथियों के प्रतिशोध से सुर्खियाँ बटोरने की कोशिश करता है। हालांकि, 2012 में केरल सरकार ने केरल उच्चन्यायालय में शपथ पत्र दायर कर पी. एफ.आई पर 27 लोगों की हत्या में संलिप्त होने का दावा किया था । पुनः 2014 में केरल सरकार ने 86 पी. एफ.आई कार्यकर्त्ता पर जघन्य अपराध एवं राष्ट्रविरोधी गतिविधि में शामिल होने का आरोप लगाया था। केन्द्रीय जाँच एजेंसियों ने पी. एफ.आई एवं पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई.एस.आई के बीच संबंध को पाया है। इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाइक के हेट स्पीच के उजागर होने के बाद जाँच एजेंसियों ने पी.एफ.आई और ज़ाकिर नाइक के संबंध होने का दावा किया । केरल आधारित 127 मुसलमानों ने पी. एफ.आई साहित्य से प्रभावित होकर विदेशों में चल रहे आई.एस.आई.एस अभियान से जुड़ गए और पुनः एजेंसियों ने पी. एफ.आई और आई. एस. आई. एस के संबंध की बात की । दिसम्बर 2019 तक उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, केरल व झारखण्ड जैसे राज्यों के पास पर्याप्त सबूत थे जिससे कि गृह मंत्रालय से पी. एफ.आई पर प्रतिबंध की माँग की जा सके। लेकिन ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया था। ऐसे चरमपंथी संगठन पर गृह मंत्रालय की निष्क्रियता पर सवाल उठने लगे थे । गृह मंत्रालय ने चुनौती को स्वीकारा और अंततः संगठन पर प्रतिबंध की घोषणा की। जैसे ही प्रतिबंध की घोषणा की गई पी.एफ. आई ने बढ़िया तरीके से मुसलमान शोषण का कार्ड खेलना शुरू कर दिया है। बहुत से भोले-भाले भारतीय पी.एफ.आई के वास्तविक गतिविधि से अपरिचित हैं। उनके नाटक में फंस सकते हैं हालांकि उन लोगों को यह पता रहना चाहिए कि इस्लाम में हिंसा पूरी तरह निषेध है।
नोट: लेखक सुप्रीम न्यायिक परिषद्, सऊदी अरब के अध्यक्ष है।
जैसा कि पवित्र कुरान कहता है
ऐ लोगों, जो ईमान लाए हो यदि कोई अवज्ञाकारी तुम्हारे पास कोई खबर लेकर आए तो उसकी छानबीन कर लिया करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम किसी गिरोह को अनजाने में तकलीफ और नुकसान पहुँचा बैठो, फिर अपने किए पर पछताओ। मोहम्मद पैगम्बर के उत्तराधिकारी होने के नाते यह मुसलमानों की जिम्मेदारी है कि वो शांति और सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखे। एक समय था जब गैर मुसलमान एक मुसलमान की ईमानदारी और इस्लाम के शांतिपूर्ण प्रवृति के गवाह थे। पी.एफ.आई जैसे संगठन ऐसी धारणा को बदनाम कर रहे हैं। मुसलमान जो करने में नाकाम रहे वो काम सरकार ने किया। अब यह उनकी जिम्मेदारी है कि इस कदम को सही ठहराएँ और सूफियों की विरासत को आगे बढाएँ ।