-कमाल की बात चुनाव में 20 प्रतिशत वोट लेकर जीतने वाला शिक्षा मंत्री बन जाता है और वह शिक्षा प्रणाली में मैरिट के आधार पर विद्यार्थियों के बेहतर निर्माण की पॉलिसी बनाता है।
रणघोष खास. सुभाष चौधरी
हरियाणा में 9 नवंबर को हुए पंचायत समिति ओर जिला पार्षद चुनाव का परिणाम 27 नवंबर को घोषित होगा। इससे पहले उम्मीदवार सुबह शाम अपनी जीत- हार के गणित को सही करने में जुटे हुए हैं। परिणाम से पहले किसी के चेहरे पर मुस्कान है तो कोई यह मान चुका है कि वह जीत की रेस से बाहर हो चुका है। इस दरम्यान सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि लगभग सभी जिला पार्षदों के वार्ड से एक आवाज आ रही है कि 25-30 हजार मतदाताओं वाले वार्ड में अगर पांच से ज्यादा उम्मीदवार मैदान में खड़े हैं तो 5-7 हजार वोट लेने वाला आसानी से जीत जाएगा। मतलब अगर कुल मतदान 25 हजार हुआ है और पांच प्रत्याशी मैदान में हैं। 6 हजार वोट लेने वाला जीत जाता है तो यह स्वस्थ्य और जनमत आधारित लोकतंत्र की तस्वीर कैसे हो सकती है। जीतने वाले के खिलाफ 19 हजार वोट डाले गए। अगर यह लोकतंत्र प्रणाली का मापदंड है तो फिर शिक्षा व नौकरियों में मैरिट क्यों अनिवार्य है। 33 प्रतिशत लेने वाले और 95 प्रतिशत लेने वालों को भी बराबर मानिए। कमाल की बात चुनाव में 20 प्रतिशत वोट लेकर जीतने वाला शिक्षा मंत्री बन जाता है और वह शिक्षा प्रणाली में मैरिट के आधार पर विद्यार्थियों के बेहतर निर्माण की बात करता है। चुनाव में नेताओं एवं राजनीति पर तरह तरह का हमला करने वाली जनता भी समझदार से ज्यादा शातिर बनती जा रही है। वह चुनाव के समय जाति- धर्म, एक दूसरे को नीचा दिखाने की मानसिकता, पैसा, शराब के लालच में वह सबकुछ कर डालती है जो बेहतर बदलाव का आधार बन सकता है। सोचिए चुनाव में 20 से 30 प्रतिशत वोट लेकर जीतने वाले उम्मीदवार से यही जनता शत प्रतिशत उम्मीदों पर खरा उतरने की उम्मीद करती है। सही मायनों में चुनाव में कुल मतदान का कम से कम 55 से 60 प्रतिशत वोट लेने वाला ही संपूर्ण जनमत की कसौटी पर खरा उतर सकता है नहीं तो यह स्वीकार कर लिजिए 20 से 30 प्रतिशत वोट लेकर जीतने वालों के लिए चुनाव एक तरह से लक्की ड्रा के अलावा कुछ नहीं है। इस तरह के परिवेश में आप मजबूत और स्वस्थ्य लोकतंत्र की उम्मीद नहीं कर सकते।