– क्या आर्थिक तौर पर कमजोर परिवार के लोग इसी तरह मरते रहेंगे। पैसो की हवस में मुर्दा डॉक्टर्स, सिस्टम चलाने वालों को बताना ही होगा नहीं तो मनोज की मौत किसी ना किसी बहाने से हमारा इलाज करती नजर आएगी।
रणघोष खास. प्रदीप नारायण
गांव कारौली, तहसील फरूर्खनगर, जिला गुरुग्राम के 30 साल का होमगार्ड मनोज नहीं रहा। उसे संडाध मारते हमारे सिस्टम ने लालची डॉक्टरों के साथ मिलकर मार दिया। मनोज ट्रक की चपेट में आने से नहीं मरा। उसे इंसानी समाज की नसों में दौड़ रही मुर्दा इंसानियत ने मारा है।सोचिए जो घायल पिछले 28 दिनों से अस्पताल में भर्ती है। डॉक्टर उसे तब तक खतरे से बाहर बताते रहे जब तक इलाज के बिलों की वसूली होती रही। जब पैसा आना बंद हो गया मनोज की जान खतरे में पड़ गईं। डॉक्टरों के लिए मनोज किसी बेसहारा विधवा का इकलौता बेटा नहीं एक जिंदा लाश थी जिसकी छाती पर वे तब तक नृत्य करते रहे जब तक उन पर पैसा उड़ाया जा रहा था। रही सही कसर पीजीआई रोहतक में अपनी मांगों को लेकर सरकार से टकराते डॉक्टरों की हड़ताल ने पूरी कर दी। रेवाड़ी अस्पताल के चंगुल से किसी तरह निकलकर मनोज को पीजीआई लेकर आए तो डयूटी छोड़कर दरी पर बैठे डॉक्टरों की मांगों के सामने जिंदा मनोज की कोई कीमत नहीं थी। बदहवास मां, पत्नी और समाज की क्रुरता को अपनी मासूम नजरों से देख रही छह साल की मासूम बेटी मनोज को लेकर सोनीपत, खानपुर पीजीआई की तरफ दौड़े तब तक देर हो चुकी थी। वह दुनिया से चला गया और बता गया कि इंसानी समाज में अलग अलग चेहरों में भेड़ियों की जमात का कब्जा हो चुका है जो मौका देखकर शिकार पर टूट पड़ते हैं।
आखिर डॉक्टरों को इलाज के नाम पर कितना पैसा चाहिए जिससे इंसानियत और मानवता का वजूद जिंदा रहे। कब तक सफेद कोट पहनकर अपने पेशे के घमंड में इतराते रहेंगे। जो इंसान को इंसान नहीं समझे वह डॉक्टर नहीं शैतान है। 50 साल की मजदूर विधवा मां ने पिछले28 दिनों से अपने घायल बेटे की जिंदगी के लिए क्या नहीं किया। पहले अपने छोटे मोटे जेवरात बेचे, फिर जमीन का छोटा सा टुकड़ा। इलाज के नाम पर डॉक्टरों का पेट नहीं भरा तो गांव में घर घर जाकर भीख मांगी। फिर भी रहम नहीं आया। घायल के 70 से ज्यादा होमगार्ड दोस्तों ने अपने वेतन का कुछ हिस्सा निकालकर बिल भरा फिर भी डिमांड जारी रही। थक हारकर मां ने अपने शरीर के अंगों को बेचने के लिए कह दिया। रणघोष ने एक मां की पीड़ा को जन मानस तक पहुंचाया तो अस्पताल में काम कर रही मुर्दा इंसानियत सहम गईं। आनन फानन में बकाया करीब दो लाख रुपए की राशि को माफ कर मरीज को रोहतक पीजीआई के लिए रेफर कर दिया। वह भी बिना प्राथमिक इलाज किए। मनोज के दोस्त बजरंग लाल की माने तो कंक्रीट इमारतों के ढांचे में खुद को सुपर स्पेशलिस्टी कहने वाले रेवाड़ी के इस अस्पताल ने रोहतक रेफर करते समय मनोज के साथ कोई मेडिकल सुविधा नहीं दी। एंबुलेंस तक नहीं दी। कर्मचारी भेजना तो दूर कोई दवा तक नहीं दी। अब कुछ मिलने वाला नहीं इसलिए मुर्छित मनोज को अस्पताल से बाहर कर दिया। इलाज के नाम पर 5 लाख रुपए से ज्यादा की वसूली वे कर चुके थे। इतना ही नहीं डॉक्टरों आभास हो चुका था कि इस घायल शरीर से अब वसूली नहीं होनी है उसी समय ही उन्होंने इमरजेंसी वार्ड में मनोज का इलाज करना भी बंद कर दिया था। परिजनों को देखने के लिए अंदर तक नहीं जाने दिया। बुधवार शाम 4 बजे परिजन उसे लेकर रोहतक पीजीआई लेकर आए तो डॉक्टरों की हड़ताल के सामने मनोज की जिंदगी की कोई औकात नहीं थी। उसे वहां भी प्राथमिक इलाज नहीं मिला। बाहर से ही खानपुर पीजीआई जाने के लिए बोल दिया। ऊपरवाला भी इंसानों की शैतानी करतूतों को देख रहा था लिहाजा उसने रास्ते में ही मनोज को अपने पास बुला लिया। मनोज कभी वापस लौटकर नहीं आए। विधवा संतोष पिछले साल 8 साल के पोते को भी इलाज के अभाव में खोने के बाद अब अपने बेटे की मौत पर जिंदा लाश की तरह अपनी सांसों को गिनती रहेगी। मनोज की पत्नी उसकी मासूम बेटी समाज के रहमों करम पर नासूर बने सिस्टम की सजा भुगतती रहेगी। आखिर कब तक मनोज जैसे ना जाने कितने लोगों की जान लेते रहेंगे। इसका जवाब डॉक्टरों की उस जमात को देना ही पड़ेगा जिस पर जिंदगी बचाने की जिम्मेदारी है। क्या आर्थिक तौर पर कमजोर परिवार के लोग इसी तरह मरते रहेंगे सिस्टम चलाने वालों को बताना ही होगा नहीं तो मनोज की मौत किसी ना किसी बहाने से हमारा इलाज करती नजर आएगी।