शहर में अब गंदगी भागने लगी है, इंदौर की राह पर रेवाड़ी जागरूक नागरिक संगठन

– यही सोच 2015 में जब इंदौर शहर की सड़कों पर दौड़ने लगी थी। जिसकी वजह से आज इंदौर लगातार 6 सालों से देश के सबसे साफ सुथरा पायदान की पहली पोजीशन पर पहुंच इतरा रहा है। आइए हम भी उदाहरण बन गर्व करें


रणघोष खास. रेवाड़ी


शहर में चारों तरफ बिखरी गंदगी को साफ करने के लिए बेहतर ओर मजबूत इरादों के साथ खड़ा हुआ जागरूक नागरिक संगठन अपना असर दिखाने लगा है। उसकी वजह भी साफ है। इस संगठन में जितनी भी जिम्मेदार एवं समझदार सोच जुड़ी है उसे जिला प्रशासन का हर कदम पर संपूर्ण सहयोग मिल रहा है। इस संगठन की सबसे खास बात यह है कि वह समस्याओं का रोना रोने की बजाय उसे अपने स्तर पर खत्म कर उदाहरण पेश कर रहा है। इस संगठन से जुड़े सदस्यों ने नप सफाई इंचार्ज संदीप कुमार को सुबह 9 बजकर 45 मिनट पर संगठन के ग्रुप में पुराना कोर्ट रोड पर 10 सालों से पुरानी निर्माण सामग्री पड़ी हुई थी। उससे अवगत कराया। 45 मिनट बाद नप अधिकारियों ने इसे साफ कर दिया। इससे पहले भी लगातार समस्याओं को सामने रखकर मिलकर समाधान किया जा रहा है। यहां बराबर की जवाबदेही शहर के नागरिकों की भी है कि वह अपने स्तर पर आस पास गंदगियों को फैलने नहीं दें।यही सोच 2015 में जब इंदौर शहर की सड़कों पर दौड़ने लगी थी। जिसकी वजह से आज इंदौर लगातार 6 सालों से देश के सबसे साफ सुथरा पायदान की पहली पोजीशन पर पहुंच इतरा रहा है। आइए जाने इंदौर ने कैसे बदली मानसिकता।
गर्व और शर्म का भाव पैदा किया


इंदौर की जीत के पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारण नागरिकों में सफाई के प्रति गर्व और गंदगी के प्रति शर्म का भाव पैदा होना है। कचरा फेंकने, पान की पीक थूकने वालों को शहर ने सामाजिक अपराधी की तरह अपमानित किया। प्रसिद्ध पार्श्वगायक शान से इंदौर को समर्पित एक गाना गवाया और शहर की हर कचरा गाड़ी पर वह बजने लगा। इससे लोगों का स्वाभिमान भी जागा और कचरा गाड़ी अपने क्षेत्र में आने की सूचना भी मिलने लगी। लोग इंदौरी होने पर अभिमान करने लगे और देश का सबसे स्वच्छ शहर बनाने को चुनौती की तरह लिया। ट्रेंचिंग ग्राउंड से चार दशक पुराने कचरे के पहाड़ को हटाया और वहां खूबसूरत गार्डन बना दिया। पहले जहां कचरा बदबू मारता था, अब लोग वहां टिफिन पार्टी करने लगे। ऐसे प्रतीकात्मक चित्रों का जमकर प्रचार-प्रसार किया गया तो लोग पहले चौंके और फिर स्वच्छता को आदत बना लिया। अब यहां महंगी लक्जरी कार हो या सामान्य आटोरिक्शा, लोग अपनी गाड़ी में डस्टबिन रखते हैं और उसी में कचरा डालते हैं।
दंड भी दिया…सम्मान भी किया


इंदौर में प्रशासन, नगर निगम, जनप्रतिनिधि, सफाई योद्धा, मीडिया, स्वयंसेवी संस्थाएं और नागरिक…सबने अपनी भूमिका पूरे मन से निभाई। खुले में कचरा फेंकने वाले अड़ंगेबाज अस्पतालों, हठी होटलों पर तगड़े जुर्माने की कार्रवाई की और रसूखदारों के चालान काटकर अखबारों में उनके फोटो छपवाए। वहीं सफाईपसंद नागरिकों को सम्मानित किया। इस तरह इंदौर ने सफाई को लेकर अपनी संस्कृति ही बदली डाली। यहां दीवारों पर बाहर से आने वाले लोगों के लिए अब नारा लिखा रहता है- ‘देखने आए हो शहर हमारा, अपने झोले में ही रखना कचरा तुम्हारा। वस्तुत: इंदौर की स्वच्छता क्रांति गंदगी से उपजी वेदना, तड़प, तिरस्कार और अपमान को अपने परिश्रम की पराकाष्ठा से स्वाभिमान, सहयोग, संवेदना और सफलता में बदल देने की कहानी है।

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