चुनाव शहर की सरकार का : नगर परिषद चेयरमैन प्रत्याशी उपमा यादव की इस अपील के मायने को समझिए

अपने बच्चों की सौंगध खाकर उपमा यादव ने शहर को बैचेन कर दिया


रणघोष अपडेट. वोटर की कलम से


नगर परिषद रेवाड़ी चेयरमैन पद की आजाद उम्मीदवार उपमा यादव ने शनिवार को मीडिया के माध्यम से रेवाड़ी की जनता से मार्मिक अपील की। अपील भावुकता से परिपूर्ण थी। उपमा ने यहां तक कह दिया कि वह अपने बच्चों की सौगंध खाकर कहती है कि जिम्मेदारी मिलने के बाद नगर परिषद की एक रुपया की राशि को भी इधर से उधर नहीं होने देगी। पहली बार उपमा यादव इतना खुलकर सामने आई है। उधर उनके पति पूर्व जिला प्रमुख सतीश यादव हर जनसभा में सार्वजनिक तौर पर अपने परिवार की सौंगंध खाकर रेवाड़ी में बेहतर बदलाव के नाम पर एक अवसर देने की अपील कर रहे हैं। इस पूरे अभियान और इस इस अपील से यह साफ जाहिर होता है कि सतीश यादव के लिए यह चुनाव उनके जीवन की सबसे बड़ी जंग बन चुका है। उन्हें लगता है कि पहली बार शहर उनके बारे में गंभीरता से सोच रहा है। मंथन कर रहा है। सभी को अवसर देने की बात कर रहा है।

इंसान अपने बच्चों की सौगंध तभी खाता है जब भरोसे की अंतिम परीक्षा होती है। सतीश यादव के इस कैंपेन को ध्यान से देखिए और उनके पुराने चुनाव को याद करिए। दिन-रात का अंतर साफ नजर जाएगा। सतीश के भाषण में इस बार सादर अनुरोध, निवेदन और अपील के अलावा कोई आक्रमकता नहीं थी। ऐसा भी नहीं है कि यह सब चुनाव के दौरान ही बदलाव आया है। वक्त सबकुछ सीखा देता है। लगातार दो चुनाव हारने के बाद सतीश यादव को अच्छी तरह से समझ में आ गया कि जनता बोलती नहीं है लेकिन समझती सबकुछ है। नेताजी जितना सोचता है उससे चार कदम वह अपने दिमाग का इस्तेमाल करती है।

पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास का साथ मिलते ही सतीश को यह आभास हो गया था कि वह सही दिशा में सही फैसले के साथ मैदान में उतर चुका है। लड़ाई आसान नहीं है। राजनीति के दो दिग्गज परिवारों से उसका सीधा सामना है। सतीश के पास खुद की सबसे बड़ी ताकत उसकी लीडरशिप और जमीनी पकड़ है जिसमें बेबाकी साफ नजर आती है। रेवाड़ी की राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ है जब जनता का विश्वास जीतने के लिए इस दंपति ने अपने परिवार की सौगंध को प्रमाण के तौर पर जनता को देकर रेवाड़ी की तस्वीर को बदलने का अवसर मांगा है। हालांकि किसी के लिए ऐसी सौगंध खाना  इसलिए आसान नहीं है क्योंकि यह राजनीति में ऐसा दस्तावेज बन जाता है जिसकी समय समय पर समीक्षा होती है। उसे पलटा जाता है। इसी से किसी परिवार की प्रतिष्ठा, मर्यादा बढ़ती और पानी के बबूले की तरह खत्म हो जाती है।

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