कोसली सीट की हार जीत मनोज कोसलिया के गणित में छिपी हुई है
रणघोष खास. कोसली की कलम से
दक्षिण हरियाणा की सबसे उपजाऊ राजनीति जमीन पर लहराती आ रही कोसली को इस बार के विधानसभा चुनाव में एक ऐसा युवा चेहरा भी मिला है जिसे देखकर राजनीति भी मुस्करा देती है। यही वजह है इस सीट पर होने वाली हार जीत भी इस युवा नेता के गणित में छिपी हुई है। यहां बात हो रही है मनोज की। जिसने अपने पीछे कोसलिया लगाकर यह बता दिया की वह इस माटी में जन्मा है ओर इसकी सेवा करते हुए इसी में मिल जाना है। इसलिए इलाका उसे मनोज कोसलिया के नाम से बुलाता है। मनोज का चुनाव में उतरने का इरादा बहुत पहले ही बन चुका था। वह पिछले दो योजनाओं में कांग्रेस के सच्चे सिपाही के तौर पर संगठन को युवा शक्ति से मजबूत करता आ रहा था इसलिए हाईकमान ने उसे हमेशा कोसली यूथ अध्यक्ष की जिम्मेदारी से बांधे रखा। जब भी कांग्रेस को मनोज की जरूरत पड़ी वह अपने हलके से बाहर निकलकर अन्य राज्यों में भी कांग्रेस के हाथ को पिछले 20 सालों से मजबूत करता आ रहा है। उसे इस बार भरोसा दिलाया गया की युवा शक्ति के तौर पर इस सीट पर उसे सम्मान मिलेगा लेकिन ऐसा नही हुआ। पता चलते ही सबसे पहले गांव मनोज के लिए खड़ा हो गया। देखते ही देखते कोसलिया गौत्र के आस पास गांवों के ग्रामीणों ने भी मुनादी करवा दी की मनोज खुद को अकेला ना समझे। चुनाव में उतर जाए बाकि हम संभाल लेंगे। देखते ही देखते युवाओं की टोलिया बन गईं। घर घर चंदा एकत्र होने लगा। यहा तक की मासूम बच्चो ने भी आगे आकर इस युवा को अहसास करा दिया की वह लंबे समय से राज करते आ रहे प्रभावशाली नेताओं को मैदान से भगाने के लिए दंड बैठक शुरू कर दे। कांग्रेस को अपनी गलती का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। जगह जगह पंचायतें होने लगी। सभी का एक ही सुर में कहना था की इस सीट को पूरी तरह से राजशाही घराने ओर मठाधीशों से आजाद कराने का समय आ चुका है नही तो कोई साधारण आदमी राजनीति में अपनी हैसियत नही बना पाएगा। पिछले 15 दिनों में मनोज कोसलिया हर गांव की चौपाल पर आशीर्वाद लेकर मजबूत दावेदारी में खड़ा हो चुका है।