वीरेंद्र घोघड़िया की सामाजिक ताकत से कही राजशाही घर ना बैठ जाए..
रणघोष अपडेट. उचाना कलां से ग्राउंड रिपोर्ट
हरियाणा विधानसभा चुनाव में उचाना कलां ऐसी सीट है जिसके बारे में हर कोई हर पल अपडेट रिपोर्ट ले रहा है। यहा दो राजशाही परिवारों की संतानें अपनी प्रतिष्ठा के लिए सबकुछ दांव पर लगा चुकी है। कांग्रेस से पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र सिंह डूमरखां के बेटे पूर्व आईएएस बृजेन्द्रसिंह पहली बार और चौटाला परिवार से पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला दूसरी बार मैदान में है। दिल्ली- चंडीगढ़ में बैठकर खुद को राष्ट्रीय चैनल या समाचार पत्र का समझदार ओर सुलझे हुए पत्रकार कहने वाले अभी भी इस सीट की जमीन पर नजर आ रही हकीकत से अंजान है या फिर उनके पास सही कवरेज पहुंच नही रही है। इस चुनाव में एक नाम घोड़े की तरह गांवों की चौपालों से लेकर गली मोहल्ले में दौड़ता शोर मचाता जा रहा है। उनका नाम है वीरेंद्र घोघडि़या। जिसकी सामाजिक ताकत ने इस चुनाव को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है। घोघड़िया वीरेंद्र के गांव का नाम है। इसी नाम ने उसे राजनीति में अपनी अलग पहचान दी हैं। देसी अंदाज, देसी बोल ओर देसी सोच ओर सीधी सपाट बात वीरेंद्र को उचाना कलां की जमीन की जड़ों से कई सालों से जोड़े हुए है। यही वजह है की जब कांग्रेस टिकट के प्रमुख दावेदार और सर्वे में सबसे चर्चित और मजबूत चेहरा होने के बावजूद वीरेंद्र की टिकट राजघरानों ने चालाकी से छीन ली तो गांव अपने छौरे के लिए तुरंत उठ खड़ा हुआ। देखते ही देखते आस पास गांवों के ग्रामीणों ने भी मुनादी करवा दी की वीरेंद्र खुद को अकेला ना समझे। चुनाव में उतर जाए बाकि हम संभाल लेंगे। देखते ही देखते युवाओं की टोलिया बन गईं। घर घर चंदा एकत्र होने लगा। यहा तक की मासूम बच्चो ने अपनी गुल्लक तोड़कर अपने दादा वीरेंद्र को अहसास करा दिया की राजशाही परिवारों को मैदान से भगाने के लिए दंड बैठक शुरू कर दे। कांग्रेस को अपनी गलती का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। जगह जगह पंचायतें होने लगी। सभी का एक ही सुर में कहना था की इस सीट को पूरी तरह से रईसी राजशाही घरानों से आजाद कराने का समय आ चुका है नही तो कोई साधारण आदमी राजनीति में अपनी हैसियत नही बना पाएगा। देखते ही देखते पिछले 15 दिनों में वीरेंद्र घोघडि़या हर गांव की चौपाल पर आशीर्वाद लेकर मजबूत दावेदारी में खड़ा हो चुका है।
वीरेंद्र ने कांग्रेस को जब संभाला जब 2014 में कांग्रेस को महज 1837 वोट मिले
जिस कांग्रेस की टिकट पर पूर्वआईएएसअधिकारीबृजेन्द्रसिंह चुनाव लड़ रहे हैं। उनके पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं दिग्गज नेता बीरेंद्र सिंह डूमरखां 2014 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। उस समय कांग्रेस उम्मीदवार भाग सिंह छात्तर को महज 1837 वोट मिले थे। उसके बाद वीरेंद्र घोघ़डिया ने चेयरमैन से त्याग देकर कांग्रेस को पूरी तरह मजबूत करने में जुट गए। घोघड़िया का कहना है की आज कांग्रेस उनकी दिन रात की कड़ी मेहनत से उचाना कलां में 85 हजार वोटों पर पहुंच चुकी है। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुडडा और सांसद दीपेंद्र बखूबी समझते हैं की जब इस क्षेत्र में कांग्रेस की नाव डूब रही थी उसे बचाने के लिए वीरेंद्र ही सबसे पहले आगे आया था।