India Will Benefit If Fighting Continues: पाक मीडिया ने कहा — लड़ाई बंद करो

भारत फायदा उठा लेगा, लड़ाई बंद करो; अफगानिस्तान से फाइट पर पाक में उठी आवाज

पिछले दो दिनों में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सीमा पर तीखी टकराव वाली घटनाओं ने दोनों देशों के संबंधों को तनावपूर्ण कर दिया है। सीमा पर हुई फायरिंग के अलावा पाकिस्तान ने काबुल तक निशाना बनाया, जबकि तालिबान की ओर से भी करारा जवाब दिया गया। तालिबान के हमले में पाकिस्तानी सैन्य दावों के मुताबिक 58 सैनिक मारे जाने की खबरें सामने आई हैं।

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने साफ किया है कि अफगानिस्तान पाकिस्तान के हमलों को बर्दाश्त नहीं करेगा और यदि पाकिस्तान जंग को जारी रखता है तो उसे कड़ा जवाब मिलेगा। मुत्ताकी का यह रवैया ऐसे समय पर आया है जब वे भारत के दौरे पर भी मौजूद हैं — और इस कारण से पाकिस्तान के अंदर यह चिंता और तेज दिख रही है कि संघर्ष लंबे समय तक चला तो इसका फायदा भारत उठा सकता है।

पाकिस्तानी मीडिया और बुद्धिजीवियों ने भी सरकार तथा सेना से शांति की अपील करनी शुरू कर दी है। पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन ने अपने संपादकीय में लिखा कि अफगानिस्तान से लड़ाई तत्काल रोकनी चाहिए और यह चेतावनी दी कि यदि जंग जारी रही तो इसका सीधा लाभ भारत उठाएगा। संपादकीय में यह भी कहा गया कि हालांकि तालिबान और भारत के बीच पिछले समय में रिश्ते अच्छे नहीं थे, पर हाल के दिनों में रिश्तों में सुधार देखने को मिला है — इसलिए संघर्ष बढ़ाना पाकिस्तान के हित में नहीं होगा।

डॉन सहित पाक मीडिया का मानना है कि फिलहाल दोनों देशों के बीच लड़ाई थमी हुई है और इसके पीछे कतर व सऊदी अरब की मध्यस्थता मुख्य कारण रही है; साथ ही ईरान द्वारा भी शांतिपक्षीय अपीलें की गईं। पाक मीडिया ने यह भी कहा कि अफगानिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान के साथ-साथ अल-कायदा और अन्य आतंकवादी समूहों को शरण दी जा रही है, और इसे रोकने के लिए पाकिस्तान को ठोस कार्रवाई करने का अधिकार है — लेकिन परंपरागत रूप में लंबी और खुले युद्ध में नहीं उतरना चाहिए, क्योंकि उससे अंतरराष्ट्रीय छवि भी प्रभावित होगी और चारों तरफ नकारात्मक संदेश जाएगा।

इसी बीच पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में यह भी आरोप लगाया गया है कि कुछ आतंकी समूहों को पाकिस्तान ही पहले फंडिंग और शरण देता रहा है — जिनमें जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठन शामिल बताए जाते हैं, जिनके हमलों का निशाना अक्सर भारत रहा है।

कुल मिलाकर, इस दौर में कूटनीतिक मध्यस्थता और क्षेत्रीय दबाव ही ऐसा कारक दिखते हैं जो युद्ध की सीमाओं को स्थिर बनाए रखने में सहायक बने हैं। यदि मध्यस्थताएँ असफल रहीं या तनाव बढ़ा, तो पड़ोसी देशों के राजनैतिक और सुरक्षा निहितार्थ गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं — और पाकिस्तान के अंदर भी अब बढ़ती आवाज़ें यही कह रही हैं: लड़ाई बंद करो, वरना इसका सीधा फायदा भारत उठा लेगा।