दिन में नेता, रात को वोटों के लूटेरे बनकर घूम रहे चुनावी उम्मीदवार
रणघोष खास. सुभाष चौधरी की रिपोर्ट
हरियाणा विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरे उम्मीदवारों के भाषण पर गंभीरता से गौर करना। वे दिन भर जिसकी आलोचना या क्षेत्र विकास के लिए जिम्मेदार ठहराएंगे। वे रात के अंधेरे में एक दूसरे से मुलाकात भी करते हैं। खासतौर से टिकट नही मिलने की स्थिति में नाराज चलने वाले नेताओ को रात में मनाने का अजीबों अजीब खेल चलता है। मीडिया में अगले दिन किसको क्या बोलना है, कितना बोलना है यह रात को ही आपसी समझ से तय हो जाता है। पत्रकार इसे ब्रेकिंग न्यूज बनाकर ऐसे प्रचारित करते हैं मानो रात के समय होने वाली मीटिंग में वे खुद भी मौजूद थे। आधी से ज्यादा सूचनाए और खबरें हवा में तीर की तरह दौड़ती रहती है। तुक्का बैठ गया तो पत्रकार सटीक निकला नही तो राजनीति खबरो का खंडन भी उतनी चर्चा बटोरता है जितनी वह खबर थी। प्रत्याशी जितना दिन में सक्रिय नही होता उससे ज्यादा वह रात होते ही बिना शोर मचाए अपने कुछ रणनीतिकारों के साथ उन ठिकानों पर पहुंचना शुरू हो जाता है जहा वोट की महक आ रही हो। वह तीन तरीकों से वोटों को अपने वश में करता है। पहला अपना बनाकर, हाथ जोड़कर। दूसरा शराब ओर वोटों के रेट तय करके और तीसरा जिसे टिकट नही मिली ओर नाराज है। उसे भी दो तरीकों से मनाता है। पहला आपसी भाईचारे या भविष्य में अगर सरकार बनी ओर भागेदारी हुई तो उस समय पूरा मान सम्मान रखा जाएगा। या फिर डील से। डील का खेल आजाद उम्मीदवार के चुनाव में खड़े रहने या बैठने को लेकर ज्यादा होती है। कुल मिलाकर मतदाता इस भ्रम में नही रहे की उनके वोट से उम्मीदवार जीत रहा है। उसकी वोट में छिपी भावनाओं का रातों रात सौदा हो चुका है। यह उसे चुनाव के बाद पता चलता है। इसलिए चुनाव में रात की भागदौड़ ही हार जीत का मापदंड तय करती है। इसमें कोई दो राय नही।