रणघोष खास. प्रदीप नारायण
बेटी आरती राव के टिकट को लेकर संभल- संभल कर बोल रहे केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ना चाहते हुए भी सबकुछ कह जाते हैं। सोमवार को चंडीगढ़ में राव ने परिवारवाद राजनीति के खिलाफ भाजपा के मजबूत इरादों पर कनार्टक के कटाक्ष से पानी फेर दिया। हरियाणा- दिल्ली से 1860 किमी दूर कर्नाटक की राजनीति को समझना आसान नहीं है लेकिन परिवारवाद की राजनीति पर भाजपा की अलग अलग रणनीति साफ इशारा कर रही है कि सत्ता के लिए सिद्धांतों को बदलना राजनीति की फिदरत बन चुकी है।
राव की बातों से यह पूरी तरह से स्पष्ट हो चुका है कि आरती राव हर हालत में 2024 के विधानसभा चुनाव में अपनी राजनीति पारी की शुरूआत करने जा रही है। राव पिछला चुनाव नही लड़ाना ही अपनी राजनीति भूल मान रहे हैं। कर्नाटक में जिस तरह भाजपा ने टिकट देते समय पार्टी नेताओं के बेटे- बेटियों और रिश्तेदारों पर मेहरबानी बरसाई है उससे परिवारवाद की राजनीति के खिलाफ चल रहा भाजपा का एजेंडा ताश के पत्तों की तरह बिखर गया है। आगामी एक साल में राजस्थान- हरियाणा- मध्यप्रदेश समेत कुछ राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में माहौल पक्ष में लाने के लिए भाजपा कर्नाटक जैसी स्टाइल पर टिकट बांट दे तो कोई हैरानी नहीं होगी। दरअसल परिवारवाद से ज्यादा केंद्र में अपने दम पर शानदार वापसी और देश को पूरी तरह से कांग्रेस मुक्त करने के इरादे भाजपा हाईकमान के लिए अहम मायने रखते हैं। राव चाहते तो बेटी के टिकट पर मीडिया के सामने कर्नाटक का जिक्र ना करके सवालों को इधर उधर रफा दफा कर सकते थे लेकिन 50 साल की सफल राजनीति के इस धुरंधर नेता को पता है कि तरकश से तीर कब निकालना है।
कहीं राव ने लगे हाथ पंगा तो नहीं ले लिया ?
भाजपा की कार्यप्रणाली पूरी तरह संगठनात्मक- अनुशासन और तौर तरीकों वाली रही है। ऐसा उनके नेता दावा करते आ रहे हैँ। पार्टी के भीतर बाहर वहीं बोला जाता है जो सिखाया जाता है। कर्नाटक चुनाव में टिकट वितरण को लेकर परिवारवाद चला है। भाजपा खुद सवालों के घेरे में आ चुकी है। यह सबको पता है। पार्टी आलाकमान इस मुद्दे को जल्द से जल्द दफन करना चाहता है ताकि अन्य राज्यों में टिकट को लेकर पार्टी के अंदर अभी से बगावत शुरू नहीं हो जाए। विपक्ष हमला करें उसे संभाला जा सकता है लेकिन अपने सवाल करें तो मुश्किलें खड़ी हो जाएगी। राव की छोटी सी टिप्पणी ने हरियाणा में भाजपा की राजनीति को दुबारा अपना एक्सरे करने के लिए मजबूर कर दिया है। सही होते हुए राव का यह बयान उनके विरोधियों के लिए संगठन के भीतर उन पर हमला करने के लिए विस्फोटक सामग्री से कम नहीं है। ऐसे में राव के लिए आगे का रास्ता मौजूदा राजनीति के हिसाब से तय होगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि दक्षिण हरियाणा में राव की अनदेखी करने से पहले भाजपा हाईकमान को एक नहीं अनेक बार मंथन करना पड़ेगा। आज भी वे हरियाणा में सबसे बड़े जमीनी जनाधार वाले नेता के तौर पर अपनी हैसियत रखते हैं। इसलिए राव की जुबान से निकले शब्द दूर तक असर करते हैं।
आइए जाने कर्नाटक में भाजपा के भीतर कैसे चला परिवारवाद
इस बार भाजपा ने बुजुर्ग नेताओं को टिकट नहीं देकर इस बार उनके बेटे-बेटियों और रिश्तेदारों को टिकट दिया गया है। मतलब यहां अधिक उम्र वालों को टिकट काटा गया है और किसी न किसी तरह उनके रिश्तेदारों को टिकट दिया गया है। ऐसे प्रत्याशियों की संख्या लगभग 25 है।
मध्यप्रदेश में सक्रिय हुए नेताओं के बेटे-बेटियां
कर्नाटक में दिग्गज नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट मिलने के बाद मध्यप्रदेश में भी नेता पुत्र सक्रिय हो गए हैं। जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ मलैया के बेटे को वापस भाजपा में लेने के फैसले से माना जा रहा है कि सिद्धार्थ को दमोह से टिकट मिल सकता है। कई दिग्गज नेताओं ने भी अपने बच्चों के राजनीतिक भविष्य बनाने की तैयार कर ली है।