प्रवचन दिवाकर दीपेश मुनि की जन्म एवं दीक्षा जयंती अवसर पर स्थानीय जैन स्थानक परिसर में एस एस जैन सभा प्रबंधक कमेटी के तत्वावधान में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके साथ ही इस उपलक्ष्य मे गुरू ज्ञान बुक बैंक का शुभारंभ किया गया। आयोजन में जैन समाज के महिला, पुरूषों व बच्चों द्वारा प्रस्तुतियां प्रदान की गई। बच्चों ने नृत्य, नाटिका, भजन के माध्यम से प्रवचन दिवाकर दीपेश मुनि के जन्म व दीक्षा गुणगान किया। बच्चों को पुरस्कृत किया गया। इसके साथ ही पचरंगी समायक का आयोजन किया गया। उपप्रवर्तक महाश्रमण पंडित रतन आनंद मुनि जी ने उपस्थित सभी को बताया कि आज ही के दिन 1985 में पंजाब के जीरा मंडी में प्रवचन दिवाकर दीपेश मुनि का जन्म लिया। केवल 15 वर्ष की अल्प आयु में इन्होंने धर्म के मार्ग पर चलते हुए दिल्ली के शास्त्री नगर में महाश्रमण पंडित रतन आनंद मुनि के सानिध्य में दीक्षा ग्रहण की। जिस उम्र में युवा सही ढंग से भविष्य के बारे में सोच भी नहीं पाते उस आयु में दीपेश महाराज का मुनि जीवन आरंभ हो गया था। तपोबल, आत्मबल की पुख्ता नींव के साथ आगे बढे। जिस प्रकार संत ने अपनी इच्छाओं को दबाया, अपनी इंद्रियों पर जीत हासिल की वैसे ही हम भी इस मार्ग पर चल कर अपना मोक्ष मार्ग प्रशस्त करे यही दीक्षा दिवस का अर्थ है। एक संत को देखकर अपने मन में भी सच्चा बनने के भाव को जागृत करना ही दीक्षा के लिए सही भाव है। आनंद मुनि ने कहा कि दीपेश मुनि एक ऐसे शिष्य है जो जन जन में अच्छे संस्कारों का बीज बो रहे हैं। दीपेश मुनि ने अपने दीक्षा दिवस पर कहा कि मैं तो एक बीज था, जिसे अंकुरित कर 15 साल की उम्र में ही गुरूदेव आनंद मुनि ने मुझे वीतरागी मार्ग पर स्थापित कर दिया। उनका यह उपकार मेरे जीवन की निधि है। उन्होंने कहा कि धर्म गुरू के प्यार के आगे जगत का प्यार झूठा है। मेरे गुरूदेव उस संस्कृति के आधार है जो बीज को पेड बनाने की कोशिश करते हैं। पत्थर को तराश कर उसे परमात्मा का रूप देते हैं। ऐसे गुरू से दीक्षित होकर मेरा रोम रोम पुलकित हो गया। साध्वी अक्षिता व रक्षिता ने जीवन में गुरू के महत्व पर प्रकाश डाला व बताया कि बिना गुरू के जीवन में सही मार्ग मिलना दुष्कर व असंभव है। इस अवसर पर बडी संख्या में स्थानीय व बाहर से आए हुए जैन समाज के महिला, पुरूष, बच्चें व श्रद्धालु उपस्थित थे।