पत्रकारिता में भरोसा कायम रहे, इसलिए गला काट- गला फाड़ प्रदर्शन से बचना होगा
रणघोषअपडेट. नारनौल
भारत में पत्रकारिता को धर्म तथा लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। विश्व को नारद जैसा आदर्श पत्रकार देने का श्रेय भी भारत को प्राप्त है। यह कहना है मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी, भोपाल के निदेशक तथा भारत की सर्वाधिक प्रसार–संख्या वाली बाल–पत्रिका ‘देवपुत्र‘ के संपादक डॉ विकास दवे का। मनुमुक्त ‘मानव‘ मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा ‘वैश्विक परिदृश्य में हिंदी–पत्रकारिता‘ विषय पर आयोजित ‘वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय विचार–गोष्ठी‘ में बतौर मुख्य अतिथि उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से भारतीय पत्रकारिता की शुचिता और मर्यादा कम हुई है। तथ्य में कथ्य का और न्यूज में व्यूज का घालमेल होने लगा है। इसके बावजूद वैश्विक प्ररिदृश्य में हिंदी–पत्रकारिता नए आयाम स्थापित कर रही है। इंडियन फैडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा लखनऊ (उत्तर प्रदेश) निवासी वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार के विक्रम राव ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि भारत में अंग्रेजी समाचार–पत्रों के वर्चस्व के बावजूद हिंदी पत्र–पत्रिकाएं महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। उन्होंने हिंदी–समाचार पत्रों की भाषा और वर्तनी के परिष्कार पर भी बल दिया। इससे पूर्व विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (मध्य प्रदेश) के कुलानुशासक तथा सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं शिक्षाविद् डॉ शैलेंद्रकुमार शर्मा ने विषय–परिवर्तन करते हुए कहा कि पत्रकार को तटस्थ और पत्रकारिता को निष्पक्ष होना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि सनसनी फैलाना पत्रकारिता नहीं है, बल्कि पत्रकारिता के माध्यम से राष्ट्रीय अस्मिता, सांस्कृतिक चेतना तथा जीवन–मूल्यों की अभिव्यक्ति होनी चाहिए। विशिष्ट अतिथि तथा हरियाणा कला परिषद, गुरुग्राम के निदेशक महेश जोशी ने भी अपने संदेश में पत्रकारिता पर हावी होती व्यावसायिकता पर चिंता जताते हुए कहा कि रचनात्मक पत्रकारिता के लिए समाचारों और विज्ञापनों में संतुलन बनाए रखना जरूरी है।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, नारनौल (हरि) के अध्यक्ष डॉ जितेंद्र भारद्वाज द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना–गीत के उपरांत चीफट्रस्टी डॉ रामनिवास ‘मानव‘ के प्रेरक सान्निध्य तथा पंकज गौड़ के कुशल संचालन में संपन्न हुई इस महत्त्वपूर्ण विचार–गोष्ठी में प्रख्यात प्रवासी कथाकार तथा लंदन (ब्रिटेन) की पत्रिका ‘पुरवाई‘ के संपादक तेजेंद्र शर्मा, आकलैंड (न्यूजीलैंड) की ई–पत्रिका ‘भारत–दर्शन‘ के संपादक रोहितकुमार हैप्पी, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, पटना (बिहार) में हिंदी–विभाग के अध्यक्ष तथा ‘नई धारा‘ पत्रिका के संपादक डॉ शिव नारायण और स्वभोस एवं स्वाकम इनकॉर्पोरेशन, सैन डियागो (अमरीका) की पूर्व अध्यक्ष डाॅ कमला सिंह ने विशिष्ट अतिथि वक्ता के रूप में वैश्विक पत्रकारिता के स्वरूप और स्थिति तथा उसकी भूमिका और महत्त्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने स्पष्ट किया कि ऑनलाइन होने के कारण हिंदी–पत्रकारिता अब वैश्विक हो गई है, लेकिन अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए उसे गलाकाट प्रतियोगिता और गलाफाड़ प्रदर्शन से बचना होगा। इस अवसर पर डॉ पंकज गौड़ ने वरिष्ठ कवि डॉ रामनिवास ‘मानव‘ द्वारा लिखित पत्रकारिता–संबंधी दोहों का सस्वर पाठ किया। कार्यक्रम के अंत में ट्रस्ट की अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम–प्रभारी दिल्ली निवासी उर्वशी अग्रवाल ‘उर्वी‘ ने, गोष्ठी में हुए विचार–विमर्श का समाहार प्रस्तुत करते हुए, धन्यवाद ज्ञापित किया।
ये हुए सम्मानित : पत्रकारिता–केंद्रित इस ऐतिहासिक अंतरराष्ट्रीय विचार–गोष्ठी में विशिष्ट अतिथियों और विशिष्ट अतिथि वक्ताओं के अतिरिक्त दैनिक उत्कल मेल, राउरकेला (उड़ीसा) के समाचार–संपादक अमर वर्मा, दैनिक हरियाणा–प्रदीप, गुरुग्राम के संपादक महेश बंसल, दैनिक चेतना, भिवानी के संपादक श्रीभगवान वशिष्ठ, दैनिक रणघोष, रेवाड़ी (हरियाणा) के संपादक प्रदीप नारायण, साप्ताहिक विश्व–विधायक, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) के संपादक मृत्युंजयप्रसाद गुप्ता और हिंदी ज्योति–बिंब, जयपुर (राजस्थान) के संपादक अवनीश शर्मा के साथ नारनौल के चार वरिष्ठ पत्रकारों– धर्मनारायण शर्मा, बलवान शर्मा, सतीश सैनी और मनोज द्विवेदी को भी पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके विशिष्ट एवं उल्लेखनीय योगदान के दृष्टिगत सम्मानित किया गया।
इनकी रही सहभागिता : अढ़ाई घंटों तक चली इस विचारोत्तेजक एवं ज्ञानवर्धक संगोष्ठी में विश्वबैंक, वाशिंगटन डीसी की अर्थशास्त्री डॉ एस अनुकृति, सिएटल (अमरीका) की वरिष्ठ कवयित्री डॉ मीरा सिंह, महिला काव्य–मंच, दुबई (यूएई) की अध्यक्ष स्नेहा देव, गुजरात सिंधी अकादमी, अहमदाबाद के पूर्व अध्यक्ष तथा दो सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक डॉ हूंदराज बलवाणी, सीबीआई के पूर्व सहायक निदेशक तथा पटियाला (पंजाब) के वरिष्ठ कवि नरेश नाज़, विश्व–विधायक, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) के संपादक मृत्युंजयप्रसाद गुप्ता, आरआरबीएम विश्वविद्यालय, अलवर (राजस्थान) के पूर्व कुलसचिव डॉ अनूप सिंह, बाल–प्रहरी, अल्मोड़ा (उत्तराखंड) के संपादक उदय किरौला, तलश्शेरी (केरल) के डॉ पीए रघुराम, टीकमगढ़ (मध्य प्रदेश) के रामस्वरूप दीक्षित, मुंबई की डॉ मंजू गुप्ता, सोलापुर के प्रो धन्यकुमार विराजदार और नागपुर (महाराष्ट्र) की सुषमा यदुवंशी, कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) के रमेशचंद मस्ताना, दिल्ली के अर्जुनदेव शर्मा, अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) के डॉ संतोषकुमार शर्मा तथा हरियाणा से हिसार के डॉ राजेश शर्मा, डॉ जितेंद्र पानू और डॉ यशवीर दहिया, नारनौंद के बलजीत सिंह और राजबाला ‘राज‘, सिवानी मंडी के डॉ सत्यवान सौरभ, भिवानी के विकास कायत, गुरुग्राम की कमलेश शर्मा, मंडी अटेली के नेमीचंद शांडिल्य तथा नारनौल के वरिष्ठ पत्रकार मनोज द्विवेदी, कृष्णकुमार शर्मा, एडवोकेट, अमरसिंह निमहोरिया, सुनील भारद्वाज, सुजीत सिंह आदि की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही।