चुनाव शहर की सरकार का: धारूहेड़ा का मिजाज समझने के लिए इस लेख को जरूर पढ़े

जेलदारों के गणित के सामने जीतना आसान नहीं, सबकुछ तय होगा उम्मीदवार के नाम पर


रणघोष खास. धारूहेड़ा से सुभाष चौधरी 

धारूहेड़ा नगर पालिका का चुनाव सबसे अलग होता है। यहां किसी पार्टी की हवा यहां आकर अपना रास्ता बदल लेती है। करीब 22 हजार वोटों एवं 17 वार्ड वाली यह पालिका औद्योगिक क्षेत्र में स्थापित है। इसलिए यहां कई सालों से बाहर से रहने वाले स्थानीय मतदाता के तौर पर चुनाव में अपनी विशेष भूमिका निभाते हैं। राजनीति जानकारों की माने तो कुल वोटरों में 60 प्रतिशत के लगभग बाहरी है। हालांकि कोरोना काल में लगे लॉकडाउन के चलते परिवार अपने मूल निवास चले गए थे। दूसरा वोट कार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने की वजह से डबल वोट भी काफी कम हुए हैं। इस हिसाब से बाहरी मतदाताओं की संख्या पहले से कम हुई है। यहां जेलदार परिवारों का दबदबा रहा है। उनकी सैकड़ों दुकानों एवं आवासीय घरों में लोग किराए पर रहते हैं। ऐसे में जाहिर है कि चुनाव में ये लोग मतदाता के तौर पर इन परिवारों की राजनीति जमीन को मजबूत करते हैं।

हालांकि जेलदार परिवार राजनीति विचारधाराओं के चलते एक दूसरे में बंटे हुए हैं लेकिन परिवार से जब कोई किसी पार्टी की टिकट पर खड़ा होता है तो उसकी खिलाफत उसी समय खत्म हो जाती है। एक दूसरे के खिलाफ चुनाव  लड़ने की मानसिकता इस परिवार में अभी जन्म नहीं ले पाई है। इस बार के चुनाव में यह सीट सामान्य वर्ग के लिए है। चेयरमैन पद के लिए जेलदार परिवार से युवा नेता संदीप बोहरा भाजपा की टिकट से मजबूत दावेदारी में है लेकिन उनके सामने भाजपा के पास शिवरतन जैसे सीनियर नेता भी है जिसकी अनदेखी करना भाजपा हाईकमान के लिए आसान नहीं होगा। यहां पार्टी चेयरमैन का चुनाव सिंबल पर लड़ेगी जबकि कांग्रेस का फोकस अभी रेवाड़ी सीट पर ही है। जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां बाहरी- स्थानीय मिलाकर यादव एवं एससी वर्ग के सबसे ज्यादा वोट है। उसके बाद सैनी एवं प्रजापत समाज आता है। इसमें कोई शक नहीं संदीप बोहरा बहुत समय से चुनाव की तैयारी में जुटे हुए हैं। अगर पार्टी किसी कारण से उन्हें टिकट नहीं देती है तो संदीप बोहरा के लिए मैदान छोड़ना आसान नहीं होगा।

वे हर हालत में चुनाव लड़ने के इरादे से तैयारी करके आए हैं। यहां केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह का दखल बड़ा अह्म रहेगा। जहां तक कांग्रेस का सवाल है। यहां कप्तान के कुछ समर्थक पूरी तैयारी के साथ चुनाव में लगे हुए हैं। इसके अलावा पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास एवं पूर्व जिला प्रमुख सतीश यादव का गणित भी समीकरण को इधर उधर करने की ताकत रखता है। विधानसभा चुनाव लड़ने की वजह से इन दोनों दिग्गजों ने धारूहेड़ा पर भी अच्छी खासी मेहनत कर सम्मान जनक वोट हासिल किए थे। इसलिए उनके समर्थकों की संख्या की अनदेखा करना भी बहुत बड़ी भूल होगी। कुल मिलाकर इस चुनाव में जेलदार परिवार की साख भी दांव पर लगी हुई है। वे इसे किस तौर तरीकों से बचा पाते हैं। यह देखने वाली बात रहेगी

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