आइए जाने जिला पार्षद वार्ड 2-3 में प्रत्याशियों की कागजों में आर्थिक हैसियत

उम्मीदवारों ने जितनी नगद राशि शपथ पत्र में दिखाई, उतनी तो रोज खर्च हो रही है


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


जिला पार्षद का चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों ने नामाकंन के समय जमा कराए शपथ पत्र में कितना सही और झूठ लिखा है। यह या तो वे स्वयं जानते हैं या मतदाता जिसकी वजह से उसके भाग्य का फैसला होना है। इस लेख में हम वार्ड 2 व 3  के प्रत्याशियों की आर्थिक स्थिति के बारे में बता रहे हैं जिसका विवरण उन्होंने शपथ पत्र में दिया है। इसमें केवल उनके पास जमा नकद पूंजी एवं बैंक में जमा राशि  के बारे में ही बताया जाएगा

   वार्ड 2 में चार प्रत्याशी मैदान में, शारदा सबसे ज्यादा धनी

प्रत्याशी नीलम पत्नी मनोज के पास चल संपत्ति के तौर पर 3 लाख 24 हजार 617 रुपए है। नीलम यादव पत्नी उदयभान  ने  बैंक, चल संपत्ति के तौर पर  18 लाख 18 हजार 755 एवं 11 लाख 51 हजार रुपए दिखाए है। शारदा पत्नी रविंद्र ने भी दो जमा पूंजी के तौर पर 15 लाख 50 हजार एवं 15  लाख रुपए बताए है। सुरेश देवी पत्नी पूर्व मंत्री विक्रम यादव ने नगदी के तौर पर महज 10 हजार एवं बैंक में व एफडी के तौर पर करीब 15 लाख रुपए की राशि दिखा रखी है।

       वार्ड 3 में 8 प्रत्याशी मैदान में विजय गुडियानी सबसे धनी   

वार्ड तीन में प्रत्याशी अशोक कुमार ने नकद राशि 20 हजार एवं बैंक में जमा 10 लाख 7 हजार दर्शाई है। जीवन हितैषी ने नगदी 2 लाख व बैंक में जमा 12 हजार 741 रुपए दिखाए है। प्रेम कुमार ने 3 लाख रुपए नगद राशि होने की बात कही है। विजय गुडियानी ने चल संपत्ति के तौर पर एक जगह 9 लाख 50 हजार एवं 6 लाख 50 हजार रुपए की राशि  का विवरण दिया है। प्रत्याशी जयभगवान ने अपनी राशि को क्रमश: 2 लाख 35 हजार 141 एवं एक लाख 60 हजार के तौर पर दिखाया है। महाबीर   सिंह ने खुद के पास महज एक लाख रुपए नगद होने की बात कही है। रामकिशन ने क्रमश: 45 हजार एवं 20 हजार रुपए होने की जानकारी दी है। रामकिशन राजौरा ने 80 हजार एवं एक लाख 50 हजार राशि का ब्यौरा दिया है।

हर रोज खर्च हो रहा हजारों- लाखों रुपए, कहां आ रही यह राशि

मैदान में खड़े प्रत्याशियों का हर रोज कम से कम 50 हजार एवं अधिकतम का कोई हिसाब नहीं के तौर पर राशि खर्च हो रही है। जिस तरह उन्होंने अपने शपथ पत्र में अपनी संपत्ति एवं राशि का विवरण दे रहा है। उस हिसाब से तो ये सभी प्रत्याशी चुनाव लड़ने के बाद कंगाल या कर्जदार हो जाएंगे। अब सवाल यह उठता है कि प्रत्याशियों ने अपने हलफनामा में गलत जानकारी दी है तो वह भविष्य आमजन के हितों की लड़ाई किस आधार पर लड़ सकता है। यह देखने वाली बात होगी।

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