रणघोष खास. जयपुर से मोहर सिंह मीणा के साथ नितिन श्रीवास्तव बीबीसी रिपोर्ट
साल 2022. जाड़ों की एक सर्द सुबह. एक पैसेंजर बस धीमी रफ़्तार से राजस्थान के उदयपुर शहर की ओर बढ़ रही थी. जालौर शहर से रवाना हुई इस बस के यात्रियों को उदयपुर के कुछ परीक्षा केंद्रों पर पहुँचना था, लेकिन बस में चल रहे ख़ास काम को ख़त्म करके. बस में कुछ स्कूल टीचर भी थे जो सामान्य ज्ञान के एक प्रश्नपत्र को सॉल्व करने में लगे हुए थे. उनके अगल-बगल परीक्षार्थी विराजमान थे, जिसमें महिला-पुरुषों की संख्या लगभग बराबर थी. बस में कुछ ‘डमी कैंडिडेट्स” भी थे जो असर परीक्षार्थी की जगह परीक्षा देने के लिए अपनी कमर कस कर आए थे.
उदयपुर ज़िले की सीमा पर उस दिन पुलिस पैट्रोल कारों की संख्या कुछ ज़्यादा ही थी. पुलिस को एक शाम पहले टिप-ऑफ़ मिला था कि सरकारी जूनियर टीचरों की भर्ती वाली परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक हो सकता है.उदयपुर बस की गिरफ़्तारियों के कुछ ही देर बाद राज्य सरकार ने परीक्षा रोकने का आदेश जारी किया और कहा गया, “ये परीक्षा दोबारा करवाई जाएगी ताकी सभी को बराबरी का मौक़ा मिल सके”.इस घटना के दो मुख्य आरोपी आज भी फ़रार हैं. हाल ही में सरकार ने उनके नाम पर एक-एक लाख रुपये के इनाम की घोषणा भी की है.प्रश्नपत्र लीक हो जाने या नक़ल के आरोपों के चलते साल 2018 से राजस्थान में सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली 12 परीक्षाएँ रद्द हो चुकी हैं जिससे लाखों का भविष्य अधर में लटका हुआ है.30 साल की संतोष कुमावत राजस्थान की रहने वाली हैं और शादी के बाद महाराष्ट्र में अपने पति और बेटे के साथ रह कर वर्षों से टीचर की भर्ती की तैयारी में जुटीं रही थीं. अब उन्होंने वापस न लौटने का प्रण ले लिया है.संतोष कुमावत ने बताया, “दो बार पेपर देने गई और दोनों बार पेपर लीक हो गए. दूसरी बार तो परीक्षा हॉल में बैठ कर पेपर कर रही थी, तभी पेपर छीन लिया गया और हमें कहा गया कि पेपर लीक होने के कारण रद्द कर दिया गया है. उस समय रोना आ गया था. मैं इस बार पेपर देने ही नहीं गई, अब राजस्थान की परीक्षाओं पर भरोसा नहीं रहा.”ज़ाहिर है, मामले पर राजनीति जारी है. राजनीतिक दल एकदूसरे पर ढिलाई का आरोप लगा रहे हैं. वहीं जानकरों के मुताबिक़ राजस्थान में इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों पर भी इस मुददे का असर दिख सकता है.राजनीति शास्त्र के प्रोफ़ेसर और उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन के अध्यक्ष रह चुके पंकज कुमार के मुताबिक़, “सरकारी नौकरी की चाहत और जुनून कुछ लोगों को दीवाना बना देती है”
उन्होंने बताया, “भारत में एक धारणा ये भी रही है कि सरकारी नौकरी में काम के प्रति जवाबदेही कम होती है और इसके चलते लाखों लोग इन नौकरियों को पाने की कोशिश में लगे रहते हैं. इन्हीं में से चंद ऐसे भी होते हैं जो पैसे खर्च कर के या ग़लत तरीक़े का इस्तेमाल करने से नहीं कतराते”. सच ये भी है कि भारत में कई लोग सरकारी नौकरियों को शान की बात समझते हैं.
अगर केंद्र और राज्य सरकारों की बात हो तो भारत में दो करोड़ से ज़्यादा लोग सरकारी नौकरियों में हैं और अधिकारिक आँकड़े इस ओर भी इशारा करते हैं कि क़रीब दस लाख सरकारी पद फ़िलहाल ख़ाली पड़े हैं.सरकारी नौकरियों के प्रति बढ़ते रुझान और बढ़ती ज़रूरतों को देखते हुए ही शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 के पहले इन दस लाख नौकरियों को भरने का टार्गेट रखा है.देशभर के तीन चौथाई काम करने वाले या तो खुद का रोज़गार करते हैं और या तो कच्ची नौकरी वाले हैं. इसने पास सरकारी सोशल सिक्योरिटी नहीं है.प्राइवेट सेक्टर में घटी नौकरियों के चलते भी सरकारी नौकरियों की होड़ बढ़ी हैं जिससे सरकारी भर्तियों के लिए आवेदन करने वालों की संख्या में इज़ाफ़ा आया है.सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के मुताबिक़ दिसंबर, 2022 में बेरोज़गारी दर 8 फ़ीसदी दर्ज की गई जबकि पिछले साल इसी समय ये दर 7 फ़ीसदी थी.लेखक और सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक गुरचरन दास का मानना है कि, “प्राइवेट नौकरियों में न तो रिटायरमेंट तक की गारंटी होती है और न हो पेंशन सुविधाएँ. यही वजह है कि युवक सरकारी नौकरियों की तरफ़ ऐसे खिंचते हैं जैसे मधुमक्खी अपने छत्ते की तरफ़.”उन्होंने बताया, “अपनी अर्थव्यवस्था खोलने के 30 साल बाद भी भारत एक इंडस्ट्रियल क्रांति लाने में सफल नहीं हो सका है. जनसंख्या डेढ़ अरब छू रही है और उस हिसाब से नौकरियाँ बढ़ नहीं रही हैं.”सरकारी परीक्षाओं के पर्चे लीक होने की बात हो तो अभी भी दोषियों से निपटने के लिए कोई विशेष क़ानूनी प्रावधान नहीं है. ज़्यादातर मामले धोखाधड़ी और नक़ल की धाराओं में दर्ज होते हैं और आरोपियों को बाद में ज़मानत भी मिल जाती है.
हाल ही में जब उत्तराखंड में पटवारियों की भर्ती के पहले पेपर लीक होने की बात सामने आई और परीक्षा रद्द करनी पड़ी. उस वक्त राज्य सरकार ने एक नया क़ानून बनाने की घोषणा की जिसके तहत दोषियों को आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान हो.लेकिन भरतपुर, राजस्थान से सरकारी शिक्षक बनने का ख़्वाब लिए छह साल से जयपुर में तैयारी कर रहे 27 साल के देवेंद्र शर्मा अब थक चुके हैं.खेती-किसानी की पृष्ठभूमि से आने वाले देवेंद्र ने कहा, “ऐसा लग रहा है कि सरकारी नौकरी की तैयारी करके मैंने अपना जीवन ख़राब कर लिया. परिवारवाले भी हमें ही दोषी मानते हैं.”वो कहते हैं, “घरवाले कहते हैं इतने साल से तैयारी कर रहे हो लेकिन सिलेक्शन नहीं हो रहा है. अब घरवालों को कैसे समझाएं कि यह दोष मनहूस सिस्टम का है, हमारा नहीं.”