आर्बिट्रेटर पूल को पूर्व-न्यायाधीशों तक सीमित नहीं होना चाहिए

– एसी के पूर्व न्यायाधीश हेमंत गुप्ता


रणघोष खास. भद्रा सिन्हा

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और इंडिया इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर (आईआईएसी) के अध्यक्ष हेमंत गुप्ता ने कहा है कि भारत में मध्यस्थता या आर्बिट्रेशन को नियंत्रित करने वाले कानूनी ढांचे में तदर्थ मध्यस्थता यानी एड-हॉक आर्बिट्रेशन को खत्म करने और इसे संस्थागत मध्यस्थता से बदलने की जरूरत है.दिप्रिंट के साथ एक विशेष बातचीत में, न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि भारत में लोग इस मानसिकता के साथ बड़े हो गए हैं कि यहां केवल “तदर्थ मध्यस्थता जिसमें अदालतें पूर्व न्यायाधीशों को मध्यस्थ के रूप में नियुक्त करती हैं” का चलन है.उन्होंने कहा, “यह (तदर्थ मध्यस्थता) समाप्त होनी चाहिए और मध्यस्थों की नियुक्ति पूर्व न्यायाधीशों तक सीमित न रहकर इसमें अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों को भी शामिल करना चाहिए. मध्यस्थता की प्रक्रिया को संस्थागत बनाने की आवश्यकता है ताकि मध्यस्थता विनियमित हो और एक प्रभावी वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्र बन जाए.”

उन्होंने कहा, “संगठित मध्यस्थता भारत की आर्थिक वृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव डालेगी और यहां व्यापार करने के इच्छुक वैश्विक निवेशकों में विश्वास भी पैदा करेगी.”सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त होने के दो महीने बाद, न्यायमूर्ति गुप्ता को पिछले साल दिसंबर में आईआईएसी अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था.IIAC एक केंद्र सरकार समर्थित मध्यस्थता केंद्र है, जिसे भारत अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था. कानून ने आईआईएसी को राष्ट्रीय महत्व की संस्था घोषित किया जिसका लक्ष्य संस्थागत मध्यस्थता के लिए एक स्वतंत्र और स्वायत्त शासन बनाना है.

मध्यस्थता की प्रक्रिया – जिसमें पार्टियों के समझौते से विवाद को एक या अधिक मध्यस्थों को प्रस्तुत किया जाता है जो विवाद पर बाध्यकारी निर्णय लेते हैं – का उद्देश्य वित्तीय अनुबंधों से उत्पन्न होने वाले वाणिज्यिक विवादों का त्वरित समाधान प्रदान करना है.भारत में मध्यस्थता, आर्बिट्रेशन एंड कॉन्सिलिएशन ऐक्ट, 1996 द्वारा शासित होती है. हालांकि, मध्यस्थता कार्यवाही में लंबी देरी ने कानून के उद्देश्य को विफल कर दिया है.यद्यपि कानून संस्थागत मध्यस्थता की अनुमति देता है, फिर भी तदर्थ मध्यस्थता अधिक लोकप्रिय हैं, जहां अदालतें पूर्व न्यायाधीशों को मध्यस्थ के रूप में नियुक्त करती हैं.

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