चीनी रिसर्च में कहा गया कि नाश्ता न करने से कैंसर हो सकता है

– भारतीय डॉक्टर बोले- अभी और सबूत की जरूरत


जर्नल ऑफ जनरल इंटरनल मेडिसिन में प्रकाशित स्टडी से पता चलता है कि आदतन नाश्ता न करने से जोखिम बढ़ सकता है. हालांकि, केरल के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट का कहना है कि इसके बीच सहसंबंध होने का मतलब यह नहीं कि यही कारण हो.


रणघोष खास. सुमी सुकन्या दत्ता

नाश्ते को अक्सर दिन का सबसे महत्वपूर्ण भोजन माना जाता है, जो शरीर को आवश्यक ऊर्जा और पोषक तत्व देता है. लेकिन क्या होगा, जब आप नियमित रूप नाश्ता करना छोड़ देते हैं? जर्नल ऑफ जनरल इंटरनल मेडिसिन में प्रकाशित चीनी शोधकर्ताओं की एक स्टडी के अनुसार, लगातार नाश्ता न करने से गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (जीआई) कैंसर का खतरा बढ़ जाता है, जिसमें एसोफैगल, गैस्ट्रिक, कोलोरेक्टल, लीवर, पित्ताशय और एक्स्ट्राहेपेटिक पित्त नली के कैंसर शामिल हैं. स्टडी मार्च में प्रकाशित हुआ था और इसमें 62,746 प्रतिभागी शामिल थे. सभी प्रतिभागी चीनी नागरिक थे, जो एक बड़े पैमाने की प्रोजेक्ट का हिस्सा थे. इस स्टडी का नाम कैलुआन कोहॉर्ट स्टडी था, जिसका नाम चीन में कोयला खनन समुदाय के नाम पर रखा गया था. प्रतिभागियों ने औसतन 5.6 साल तक इसे फॉलो किया था.स्टडी के अंत में, प्रतिभागियों में जीआई कैंसर के 369 मामलों की पहचान की गई, जो नाश्ता छोड़ने वाले लोगों में थे. स्टडी के लेखकों ने कहा, “आदतन नाश्ता न करने से एसोफैगल, गैस्ट्रिक, कोलोरेक्टल, लीवर, पित्ताशय और एक्स्ट्राहेपेटिक पित्त नली के कैंसर सहित जीआई कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.”दिप्रिंट से बात करने वाले भारत के पोषण विशेषज्ञों और डॉक्टरों ने कहा कि नियमित आधार पर नाश्ता छोड़ना छोटी और लंबी अवधि में कई स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ा हुआ है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि स्टडी के निष्कर्षों को एक संदर्भ के रूप में देखा जाना चाहिए.इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (आईसीएमआर-एनआईएन) के एक वैज्ञानिक ने कहा, “अब यह एक विरोधाभासी विचार है कि क्या नाश्ता बिल्कुल जरूरी है, खासकर वयस्कों के लिए. लेकिन हमारे पिछले रिसर्च में यह साबित हो चुका है कि यह बच्चों के लिए तो बहुत जरूरी है.” वैज्ञानिक ने अपना नाम नहीं बताने का आग्रह किया था.उन्होंने आगे कहा, “चीन के स्टडी के निष्कर्ष काफी स्पष्ट हैं और यह समझने के लिए कि नाश्ता छोड़ना कितना हानिकारक हो सकता है, भारत में भी इसी तरह का रिसर्च करना उपयोगी हो सकता है.”

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