इस विधानसभा की राजनीति कुछ कह रही हैं आइए समझे..

बावल को रहमों करम पर  विधायक- मंत्री मिलते रहे  मजबूत जनाधार वाला नेता नहीं मिला..


रणघोष खास. बावल की कलम से


हरियाणा में 2024 को होने जा रहे विधानसभा चुनाव की आहट अभी से चारों तरफ दस्तक देने लगी है। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के जिम्मेदार नेता व टिकट के लिए अपना बायोडाटा मजबूत करने के लिए दावेदार जनता के दरबार में हाजिरी लगाने लगे हैं। बात करते हैं  आरक्षित बावल विधानसभा सीट की। यहां से भाजपा की टिकट पर डॉ. बनवारीलाल लगातार दो बार जीतकर बतौर कैबिनेट मंत्री अपनी जड़े मजबूत कर चुके हैं। केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह का आशीर्वाद अभी तक उनके लिए रामबाण का काम कर रहा है। 2024 में यह कृपा बनी रहेगी वह मौजूदा हालात तय करेंगे। इतना जरूर है कि राव बेटी आरती राव एवं खुद की टिकट सुरक्षित होने के बाद अन्य टिकटों के लिए भाजपा हाईकमान के लिए चुनौती  पैदा नहीं बनेंगे। ऐसे में डॉ. बनवारीलाल संगठन की कसौटी पर कितना खरा उतर पाए हैं यह मायने रखेगा। वर्तमान हालात के आधार पर समीक्षा करें तो इस सीट पर डॉ.बनवारीलाल  के सामने अभी कोई मजबूत चुनौती पार्टी के अंदर या बाहर से नजर नहीं आ रही है। पूर्व मंत्री जसवंत सिंह ने जरूर होली मिलन कार्यक्रम के बहाने अपनी सक्रियता शुरू कर दी है। आमतौर पर चुनाव के आस पास आने वाले राष्ट्रीय त्यौहारों के बहाने ही नेता जनता से मिलने मिलाने का रास्ता बना लेते हैं। जसवंत सिंह की बात करें तो उनके राजनीति बायाडोटा में 1972 में पिता रामप्रसाद व 1996 में खुद यहां से विधायक बनने का मजबूत आधार तो है लेकिन उसके बाद जनता का लगातार स्वीकार नहीं करना भी  उनके कमजोर फैसले को साबित करता है। राव इंद्रजीत खेमें से जुड़ जाने से टिकट मिलने में आसानी हो जाएगी यह जरूरी नहीं है। राव का रिकार्ड रहा है वे अपने जन्मजात समर्थक को टिकट दिलाने के लिए अडते रहे हैं यहां जसवंत सिंह खरे नहीं उतर रहे हैं। उनके पिता व  खुद राव समर्थक उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ते रहे हैं। भाजपा से पहले वे कांग्रेस में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुडडा की खास टीम में रहे। उससे पहले हरियाणा विकास पार्टी से चौधरी बंसीलाल की छाया में राजनीति को बढ़ाया।  हालांकि राजनीति में यह मायने नहीं रखता। राव स्वयं 8 साल पहले तक पूरी तरह कांग्रेस में पले बड़े हुए हैं। सही मायनों में हरियाणा में भाजपा के मजबूत होने की वजह ही कांग्रेस के जनाधार नेताओं का आना रहा है। इसलिए बावल सीट पर टिकट समर्पित भाजपाई या गैर भाजपाई के आधार पर तय होगी यह पैमाना चुनाव में काम नहीं करेगा। डॉ. बनवारीलाल तीसरी बार लड़ने की तैयारी में जुट गए हैं। उनके हाथों में पिछले 8 सालों में कराए बावल के विकास की तस्वीर बदलने का मास्टर प्लान है जिसे दिखाकर वे जनता में अपनी बात रख डंके की चोट पर विरोधियों को चुनौती दे रहे हैं। इसके बावजूद डॉ. बनवारीलाल के लिए टिकट मिलना आसान नहीं है। उनके निजी सचिव रहे धर्मबीर सिंह की मनमानी जग जाहिर रही है। भ्रष्टाचार के अनेक मामले आरोप प्रत्यारोप के तौर पर सामने आए हैं कुछ को उनके विरोधियों ने चुनाव के लिए विस्फोटक सामग्री की तरह संभाल कर रखा है। पूरे मामले में धर्मबीर पर लगे आरोपों की जांच कराने से ज्यादा उसे बचाने में डॉ.बनवारीलाल मजबूर नजर आए। ऐसे में यहां डॉ. बनवारीलाल के विकास का रिपोर्ट कार्ड भ्रष्टाचार के हमलों के सामने कमजोर साबित हो गया तो तीसरी पारी खेलना उनके लिए आसान नहीं होगा। जहां तक कांग्रेस का सवाल है। यहां पूर्व मंत्री डॉ. एमएल रंगा के तरकश में चुनाव लड़ने का अंतिम तीर बचा है। जरूरी नहीं की वह निशाने पर बैठे। बावल में जातिगत व धर्म के आधार पर इतना अशांत माहौल नहीं है कि वह कांग्रेस को मजबूत कर सके। यहां व्यक्ति विशेष का जनाधार व रसूक मायने रखेगा। डॉ. रंगा का कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आना ओर उसके बाद टिकट नहीं मिलने पर फिर कांग्रेस में वापसी करना उनकी अवसरवादी सोच को साबित करता है जो कहीं ना कहीं उनके लिए कमजोर फैसले की तरफ इशारा कर रही है। इस सीट पर जेजेपी- इनेलो की अभी अपनी ऐसी कोई कहानी नहीं बनी है जो चर्चा बटोर ले। कुल मिलाकर बावल सीट पर मौजूदा परिवेश पर मूल्याकंन करें तो डॉ. बनवारीलाल अपने सीधेपन की राजनीति से पार्टी में  संतुलन बनाए हुए हैं बशर्ते कोई घोटाले का जिन्न निकलकर बाहर नहीं आ जाए। चौधरी जसवंत सिंह चुनौती देने के लिए पूरी ताकत लगा देंगे ऐसा नहीं है। वे राजनीति मे संघर्ष से ज्यादा संतोषी बने रहने को ही समझदार राजनीति मानते हैं इसलिए वे इतनी ही जोर अजमाइश करेंगे जो उनकी मानसिक- आर्थिक एवं शारीरिक स्थिति को भी खराब नहीं होने दें। इसलिए बावल की जनता को अभी तक विधायक- मंत्री मिलते रहे हैं लेकिन मजबूत  जनाधार वाला नेता नहीं मिला। ऐसे में भाजपा हाईकमान नए चेहरों पर भी नजर रखे हैं।

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