कश्मीर में जबरन धर्मांतरण पर क्यों चुप हैं उलेमा और मुसलिम संगठन?

रणघोष खास. यूसुफ अंसारी 

 जम्मू-कश्मीर में हैरान करने वाला मामला सामने आया है। आरोप है कि कश्मीर घाटी में दो सिख लड़कियों को अग़वा करके पहले उनका जबरन धर्मातंरण कराया गया। फिर उनका निकाह उनसे कहीं ज़्यादा उम्र के लोगों से करवा दिया गया। इसे लेकर बवाल मचा हुआ है। संघ के लव जिहाद जैसे मुद्दे पर मुसलमानों के साथ खड़ा रहने वाला सिख समुदाय इस घटना से उसके ख़िलाफ़ हो गया है।  

क्या है मामला?

एक घटना श्रीनगर के रैनावाडी की है। आरोप है कि वहां 18 साल की एक सिख लड़की का जबरन धर्मांतरण कराके 62 साल के एक बुज़ुर्ग से उसका निकाह करा दिया गया। बताया जाता है कि वो पहले से ही शादीशुदा और कई बच्चों का बाप है। लड़की के परिवार का कहना है कि बंदूक की नोंक पर लड़की का अपहरण किया गया। स्थानीय पुलिस ने 36 घंटे में लड़की को परिवार को सौंपने का आश्वासन दिया था। लेकिन श्रीनगर की अदालत ने शादी को वैध बताकर लड़की को 62 वर्ष के बुज़ुर्ग के साथ भेज दिया। दूसरी घटना श्रीनगर के महजूर नगर की है। वहां भी एक लड़की की जबरन शादी कराने का आरोप है।  इस घटना के बाद जम्मू-कश्मीर से लेकर दिल्ली तक के सिख एकजुट होकर सड़कों पर उतर आए। दिल्ली की सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा ने महत्वपूर्ण सवाल उठाया है। उन्होंने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों और मुसलिम धर्मगुरुओं से दो टूक पूछा है कि आख़िर वो इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर चुप क्यों हैं? सिरसा का आरोप है कि कश्मीर घाटी में हिंदू और सिख लड़कियों का जबरन धर्मांतरण और मुसलिमों से उनके निकाह का सिलसिला योजनाबद्ध तरीक़े से चल रहा है।

क़ानून की मांग

सिखों का आरोप है कि घाटी में हिंदू और सिख लड़कियों का जबरन धर्मांतरण कराके शादी की घटनाएं पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान से प्रेरित हैं। उनका आरोप है कि ये सिलसिला लंबे समय से चल रहा है। लेकिन प्रकाश में अब आया है। सिखों ने इसे रोकने के लिए यूपी और मध्य प्रदेश की तरह जम्मू-कश्मीर में भी सख्त क़ानून बनाने की मांग की है। सिखों ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से शिकायत करके इस सिलसिले को ख़त्म करने के लिए ठोस क़दम उठाने की मांग की है। 

कश्मीरियत पर दाग़

जबरन धर्मांतरण बेहद गंभीर और संगीन अपराध है। ये देश के संविधान की मूल भावना और क़ानून के ख़िलाफ तो है ही। इसे नैतिक रूप से भी सही नहीं ठहराया जा सकता। न प्रत्यक्ष रूप से इसका समर्थन किया जा सकता है और न ही अप्रत्यक्ष रूप से। कश्मीर अपनी ख़ास मिलीजुली तहज़ीब के लिए पहचाना जाता है। इसे कश्मीरियत कहते हैं। जबरन धर्मांतरण की ये घटनाएं कश्मीरियत पर बदनुमा दाग़ हैं।     

ज़िम्मेदारों की चुप्पी

दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि जम्मू-कश्मीर के ज़िम्मेदार लोगों ने इस पूरे मामले पर या तो चुप्पी साध रखी है या फिर बहुत सधी हुई प्रतिक्रिया दी है। राज्य के चार पूर्व मुख्यमंत्रियों में से दो ने इस पूरे मामले पर ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली है। डॉ. फ़ारूक़ अब्दुल्ला और ग़ुलाम नबी आज़ाद पूरे मामले पर चुप हैं। दोनों का न कोई बयान आया और न ही इन्होंने ट्विटर पर कोई प्रतिक्रिया दी। बाक़ी बचे दो पूर्व मुख्यमंत्रियों ने घटना से सिख-मुसलिम में पड़ रही दरार पर तो अफ़सोस  जताया है लेकिन जबरन धर्मांतरण जैसे अतिसंवेदनशील मुद्दे पर एक शब्द भी नहीं कहा। 

महबूबा का दर्द

जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ट्विटर पर इस घटना को लेकर अपना दुख साझा किया है। उन्होंने धर्मांतरण पर एक शब्द भी नहीं कहा। उन्होंने उम्मीद जताई है कि इस मामले की आख़िरी तह तक जांच होगी और सच सामने आएगा। ऐसा लगता है कि जबरन धर्मांतरण की घटना पर उन्हें यक़ीन नहीं है। 

उन्होंने लिखा है, “कश्मीर में दो सिख लड़कियों की घटना की ख़बर सुनकर व्यथित हूं। जम्मू-कश्मीर में मुसलिम और सिख सबसे बुरे समय में शांति से सह-अस्तित्व में रहे हैं। उम्मीद है कि जांच एजेंसियां इस मामले की तह तक तेज़ी से पहुंचेंगी।”

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