कौन ‘अज्ञात’ स्रोत दे रहे हैं राजनीतिक दलों को चंदा?

रणघोष  अपडेट. देशभर से 

एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स (एडीआर) की एक ताज़ा रिपोर्ट कहती है कि देश में क्षेत्रीय दलों को 2019-20 में मिले चंदे का बड़ा हिस्सा ‘अज्ञात’ स्रोत से आया है। रिपोर्ट कहती है कि इस ‘अज्ञात’ स्रोत से मिले चंदे में से भी लगभग 95% पैसा इलेक्टोरल बॉन्ड या चुनावी बॉन्ड से मिला है। इसी वजह से राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे को लेकर अक़सर बहस होती रही है कि उन्हें चंदा देने वाले ये ‘अज्ञात’ स्रोत आख़िर कौन हैं। 

राष्ट्रीय दलों को भी मिला पैसा

ऐसे कुल 25 क्षेत्रीय दल हैं और इन्हें साल 2019-20 में मिले कुल 803.24 करोड़ के चंदे में से 445.7 करोड़ रुपये ‘अज्ञात’ स्रोत से मिले हैं। इसमें से 426.233 करोड़ इलेक्टोरल बॉन्ड से आए हैं। रिपोर्ट कहती है कि राष्ट्रीय दलों को भी ‘अज्ञात’ स्रोत से मिले पैसे के कारण उनकी आय में 70.98% फ़ीसदी का इजाफा हुआ है। इन क्षेत्रीय दलों में दक्षिण भारत की पार्टियां- टीआरएस, टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस, डीएमके और जेडी (एस) सबसे ऊपर हैं। ओडिशा में सरकार चला रही बीजेडी का नाम भी इस सूची में है। टीआरएस को ‘अज्ञात’ स्रोतों से 89.158 करोड़, टीडीपी को 81.694 करोड़, वाईएसआर कांग्रेस को 74.75 करोड़, बीजेडी को 50.586 करोड़ और डीएमके को 45.50 करोड़ रुपये मिले हैं। एडीआर के मुताबिक़, साल 2018-19 में भी 23 क्षेत्रीय दलों को 54% पैसा ‘अज्ञात’ स्रोतों से मिला था। एडीआर ने इस साल मार्च में इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर तुरन्त रोक लगाने का आदेश देने की गुहार सुप्रीम कोर्ट से की थी। संस्था ने अदालत में याचिका दायर कर कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक नहीं लगी तो पांच राज्यों में चुनाव से ठीक पहले फ़र्जी (शेल) कंपनियों के ज़रिए राजनीतिक पार्टियों को पैसे दिए जाएंगे। अप्रैल-मई में पांच राज्यों के चुनाव हुए थे। 

क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?

इलेक्टोरल बॉन्ड एक तरह का फ़ाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट यानी वित्तीय साधन है, जिससे कोई भी किसी भी राजनीतिक दल को चंदा दे सकता है। इलेक्टोरल बॉन्ड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये का लिया जा सकता है। इसे कोई भी नागरिक या कंपनी स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से ख़रीद सकता है और वह अपने खाते से इसका भुगतान कर सकता है। लेकिन उसका नाम-पता कहीं दर्ज़ नहीं होता। वह किस पार्टी को यह बॉन्ड दे रहा है, इसका भी कहीं कोई रिकॉर्ड दर्ज नहीं होता। अमेरिका, ब्रिटेन, स्वीडन में राजनीतिक चंदा देने वाले को अपनी पहचान को सार्वजनिक करना होता है। भारत में जन प्रतिनिधि क़ानून की धारा 29 सी के अनुसार, 20,000 रुपये से ज़्यादा चंदे की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी। लेकिन, वित्तीय अधिनियम 2017 के क्लॉज़ 135 और 136 के तहत इलेक्टोरल बॉन्ड को इससे बाहर रखा गया है। 

जानकारी देना ज़रूरी नहीं 

यह व्यवस्था भी की गई है कि राजनीतिक दलों की ओर से चुनाव आयोग को दिए गए अपने आमदनी-ख़र्च के हिसाब-किताब में इलेक्टोरल बॉन्ड्स की जानकारी देना ज़रूरी नहीं है। इलेक्टोरल बॉन्ड से काले धन को बढ़ावा मिलने की भी बात कही जाती रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *