हमास के जबदस्त हमले के बाद इजरायल ने गाजा पट्टी पर ताबड़तोड़ मार शुरू कर दी है. इजरायल के रॉकेट लगातार यहां बरस रहे हैं. इस समय गाजा पट्टी फिर तबाही की ओर बढ़ती लग रही है. गाजा पट्टी कोई पहली बार इजरायली हमले के निशाने पर नहीं है. पहले भी यहां इजरायल ने तगड़ी मार की है लेकिन हर बार ये इलाका खड़ा हो जाता है. जानते हैं इसके बारे में
गाज़ा पट्टी पर फिर इजरायल हमले शुरू हो चुके हैं. हमास के हमले के बाद इजरायल ने युद्ध की घोषणा करते हुए गाजा पर तेज हमले शुरू कर दिए. इजरायल के ताबड़तोड़ राकेट हमले ग़ाज़ा के कई इलाकों को तबाह कर रहे हैं. हालांकि पिछले कुछ बरसों में जब भी इजरायल और फलीस्तीन के बीच टकराव होता रहा है, तब ग़ाज़ा ही घमासान का केंद्र बनता रहा है. ग़ज़ा पट्टी एक जमाने में इजरायल के नियंत्रण में था लेकिन पिछले एक दशक से कहीं ज्यादा समय से यहां पर फिलीस्तीन अथारिटी का शासन है.
ग़ाज़ा पट्टी इजरायल के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक 6-10 किंमी. चौड़ी और कोई 45 किमी लम्बा क्षेत्र है. इसके तीन ओर इजरायल का नियंत्रण है. दक्षिण में मिस्र है. पश्चिम की दिशा में भूमध्यसागर में इसकी जलीय सीमा इजरायल द्वारा नियंत्रित होती है. इसका नाम इसके प्रमुख शहर ग़ज़ा (उच्चारण ग़ाज़्ज़ा भी होता है) पर पड़ा है. इसका दूसरा प्रमुख शहर इसके दक्षिण में स्थित राफ़ा है जो मिस्र की सीमा से लगा है. ग़ाज़ापट्टी में करीब 15 लाख लोग रहते हैं, जिसमें 04 लाख से ज्यादा लोग अकेले ग़ाज़ा शहर में रहते हैं. (wiki commons)
ग़ाज़ापट्टी का इतिहास 1948 में इजरायल के बनने के साथ शुरू होता है. 1948 में इजरायल के निर्माण के बाद यहां बसे अरबों के लिए अर्मिस्टाइस रेखा बनाई गई, जिसके तहत ग़ाज़ा पट्टी में अरब, मुस्लिमों को रहना तय किया गया और ये तय किया गया कि यहूदी इजरायल मे रहेंगे. 1948 से लेकर 1967 तक इस पर मिस्र का अधिकार था. लेकिन 1967 में 06 दिन की लड़ाई के बाद इजरायल ने अरब देशों को निर्णायक रूप से हरा दिया. ग़ाज़ा पट्टी पर इजरायल का कब्जा हो गया. जो 25 सालों तक चला.
दिसंबर 1987 में ग़ाज़ा पट्टी में भीषण विद्रोह हुआ. इसके बाद 1994 में ये तय किया गया कि ये इलाका चरणबद्ध तरीके से फिलीस्तीन अथारिटी (पीए) को स्थानांतरित कर दिया जाएगा. वर्ष 2000 में इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री एरियल शेरोन ने नई योजना के तहत गाज़ा इलाके से इजरायली सैनिकों को हटाने और स्थानीय नागरिकों को बसाने की योजना बनाई. वर्ष 2005 में इसका नियंत्रण पीए को दे दिया गया लेकिन इजरायल ने गश्त जारी रखी. हालांकि 2007 में हमास की अगुवाई वाली पार्टी ने इस पर कब्जा कर लिया. लेकिन इसके बाद से इजरायल इस इलाके को ना केवल सीमाबंद कर चुका है बल्कि कई प्रतिबंध भी लगाता रहा है.
ग़ाज़ा दुनिया भर में सबसे घनी आबादी वाला इलाक़ा है. प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में 4,505 लोग रहते हैं. अनुमान के मुताबिक़ 2020 तक यहां प्रति वर्ग किलोमीटर 5,835 लोग रहने लगे. 2020 तक इसकी आबादी 21 लाख के क़रीब हो गई. आबादी में 53 फ़ीसदी से ज़्यादा लोग युवा हैं.
ग़ाज़ा की 21 फ़ीसदी आबादी बेहद ग़रीब है. ये लोग रोज़ाना 18 डॉलर से कम पर गुज़र बसर करने को मजबूर हैं. यहां बेरोज़गारी दर 40.8 फ़ीसदी है. युवाओं में बेरोज़गारी दर 50 फ़ीसदी से भी ज़्यादा है. यहां की सरकार के पास इतना पैसा नहीं है कि वे अपने 50 हज़ार कर्मचारियों को समय पर वेतन दे पाएं.
ग़ाज़ा के 694 प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में क़रीब 4.63 लाख बच्चे पढ़ते हैं. ज़्यादातर स्कूल संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित होते हैं. इनमें से अधिकांश स्कूल दोहरी शिफ़्ट में चलते हैं. हालांकि यहां शिक्षा की दर काफ़ी ऊंची है. 93 फ़ीसदी महिलाएं और 98 फ़ीसदी पुरुष साक्षर हैं.
ग़ाज़ा में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है. बिजली के अभाव में अस्पताल में समय से लोगों को उपचार नहीं मिल पाता. इसके लिए ग़ज़ा मिस्र और इजराइल पर निर्भर रहा है. क़रीब 20 फ़ीसदी लोग इलाज के लिए और 25 फ़ीसदी लोग दवाओं के लिए मिस्र जाते रहे थे, लेकिन मिस्र ने भी अपनी सीमा बंद कर दी. हालांकि इलाज के लिए ग़ाज़ा के लोगों को इजराइल में प्रवेश की सुविधा मिली हुई है.
ग़ाज़ा की 80 फ़ीसदी आबादी भोजन के लिए दूसरों पर निर्भर है. लोगों के पास अनाज ख़रीदने के लिए पैसे नहीं हैं. 2012 से 2013 के बीच ग़ाज़ा में ख़ाद्य असुरक्षा 44 फ़ीसदी से बढ़कर 57 फ़ीसदी पर पहुंच गई है. इजराइल की ओर से घोषित संघर्ष क्षेत्र में खेती पर रोक से ग़ाज़ा का अनाज उत्पादन 75 हज़ार टन कम हो गया है. समुद्री क्षेत्र में मछली मारने के लिए लगाए प्रतिबंध से भी ग़ाज़ा के लोगों की मुश्किलें बढ़ी हैं.
ग़ाज़ा के लोग हर दिन बिजली संकट का सामना करते हैं. ग़ाज़ा को बिजली इजराइल और मिस्र से मिलती है. देश में एक ही बिजली प्लांट है. कई घरों में जेनरेटर की सुविधा है, लेकिन इसके लिए काफ़ी महंगा ईंधन ख़रीदना पड़ता है. बिजली की कमी का असर दूसरी सुविधाओं पर भी होता है.
ग़ाज़ा में नाममात्र की बारिश होती है. जल की खपत बढ़ रही है, ऐसे में संकट भी बढ़ रहा है. देश में 5.5 फ़ीसदी लोगों को विश्व स्वास्थ्य संगठन के मापदंडों के मुताबिक़ पीने का पानी मिलता है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ करीब 3.5 लाख लोग दूषित पेयजल पीने को मजबूर हैं. यहां गंदे पानी के निकास का समुचित प्रबंध नहीं है. क़रीब नौ करोड़ लीटर गंदा पानी हर रोज़ भूमध्य सागर में गिरता है, जिसका असर आम लोगों की सेहत और जलीय जीव जंतुओं पर पड़ रहा है.