चुनाव शहर की सरकार का……..कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम यादव की हार- जीत का गणित माहौल से नहीं घर से तय होगा

Nagar Nikay Chunav


719230437_voterhelplinelogo-01.png.57b196191e8e2fc879c30ea60396c4b4रणघोष खास. वोटर की कलम से


नगर परिषद रेवाड़ी चेयरपर्सन  सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार विक्रम यादव की जीत- हार का समीकरण मौजूदा माहौल से नहीं घर में बनने वाली रणनीति, मैनेजमेंट एवं काम करने के तौर तरीकों से होगा। अभी तक की रिपोर्ट के मुताबिक जो रफ्तार एवं उत्साह समय के हिसाब से  नजर आने चाहिए था वह अलग अलग रास्तों से होकर आ रहा है। विक्रम यादव की यह पहली राजनीति पारी है। उसकी पहचान अभी कप्तान परिवार के सदस्य के तौर पर है। हालांकि मौजूदा महिला उम्मीदवारों के तौर पर वह खुद को सबसे आगे आकर लोगों से मिल रही है। अन्य प्रत्याशियों की कमान उनके पतियों ने संभाल रखी है। यहां जो कमजोर पक्ष नजर आ रहा है वह यह है कि विक्रम यादव का नाम एक सप्ताह के दौरान ही फाइनल हुआ है। इससे पहले पूर्व मंत्री कप्तान अजय सिंह ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि इस चुनाव में चेयरपर्सन उम्मीदवार उनके परिवार से नहीं होगा। यह कप्तान की विरोधियों को फेल करने की सोची समझी साजिश थी या बनते बिगड़ते हालातों के चलते विक्रम का नाम आगे बढ़ाना पड़ा। इससे पहले उनकी पुत्रवधु एवं पत्नी का नाम भी जोरों पर था। साथ ही चुनाव में समीकरण भी इस कदर बन चुके हैं कि कांग्रेस से कप्तान परिवार ही मुकाबले में नजर आ सकता था। अन्य पर दांव खेला जाता तो इसका सीधा फायदा भाजपा खासतौर से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर सतीश यादव एवं रणधीर सिंह कापड़ीवास की जोड़ी को होता। यह भी साफ है कि  भाजपा से पूनम यादव को साधारण उम्मीदवार समझकर कप्तान ने अचानक अपने बयान से यू टर्न लेते हुए परिवार से ही प्रत्याशी मैदान में उतारा है। 

यहां बता दें कि 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले ही विक्रम यादव ने नप की चुनाव की तैयारियों के मद्देनजर भाजपा का दामन थाम लिया था। इसकी वजह पारिवारिक विवाद बताया जा रहा था। विक्रम यादव भी  सार्वजनिक तौर पर कह चुकी है कि वह बहुत पहले ही राजनीति में आना चाहती थी। यह उसका विजन भी रहा है। इसके बाद विधानसभा चुनाव में परिवार एकजुट हो गया। चिंरजीव राव के विधायक बनने के बाद माहौल भी तेजी से बदलता चला गया। सीधे चेयरमैन चुनाव कराने की सरकार के निर्णय के बाद यह चुनाव हर छोटे- बड़े नेताओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो चला है। सही मायने में यह राजनीति में तेजी से आगे बढ़ने की सबसे मजबूत सीढ़ी है। चेयरमैन सीधे तौर पर शहर की सरकार का मुखिया होता है। उसका सीधा जुड़ाव मतदाता से होता है। खास बात यह है कि शहरी मतदाता जाति एवं धर्म की राजनीति से काफी हद तक खुद को दूर रखते हुए विकास के मुद्दे पर ज्यादा फोकस करता है। इसलिए उन्हें समझाने एवं समझने में ज्यादा दिककतें नहीं आती। कुछ स्थानीय मतदाताओं का कहना है कि विधानसभा एवं नगर निकाय चुनाव में मुद्दे एवं विजन अलग अलग होता है। इसलिए पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जो रणनीति बनाई थी। अगर उसे ही रिपिट किया गया तो कांग्रेस को झटका लग सकता है। उसे मौजूदा हालात से बदलना होगा क्योंकि  जनता पहली बार सीधा चेयरमैन चुनेगी। इससे पहले पार्षद मिलकर चेयरमैन चुनते थे। इसलिए भाजपा भी  2019 में मैनेजमेंट लेवल पर हुई गलतियों को नहीं दोहराएगी। 16 दिसंबर को जब भाजपा प्रत्याशी पूनम यादव ने नामाकंन भरा तो पार्टी एकजुट नजर आई थी जिसकी कमी विधानसभा में महसूस की गई थी। नामाकंन से पहले लग रहा था कि टिकट नहीं मिलने से भाजपा का एक धड़ा अपनी नाराजगी से पार्टी को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है।

दूसरा भाजपा उम्मीदवार  के लिए सीएम मनोहरलाल एवं प्रदेश अध्यक्ष  ओमप्रकाश धनखड़ 20 एव 22 दिसंबर को रेवाड़ी आ रहे हैं जबकि कांग्रेस की तरफ से कप्तान अजय सिंह यादव एवं विधायक चिरंजीव राव वन मैन शो के तौर पर मैदान में मौजूद रहेंगे। इसलिए कांग्रेस को जीतने के लिए विधानसभा से भी ज्यादा मेहनत  करनी पड़ेगी। भाजपा में कोई बगावत या खिलाफत खुलकर सामने नहीं आना भी कांग्रेस की रणनीति को फेल कर रहा  है। इसके अलावा पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास का साथ मिलते ही पूर्व जिला प्रमुख सतीश यादव का चुनाव पूरे रंग में आ चुका है। दोनो ही जमीनी नेता है। शहर की नब्ज को बेहतर ढंग से जानते हैं। इसलिए वे जनसंपर्क में भाजपा- कांग्रेस से काफी आगे चल रहे हैं।

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