जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के खिलाफ विपक्ष की याचिका एससी में खारिज

रणघोष अपडेट. देशभर से
लाइव लॉ के मुताबिक चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने यह कहते हुए याचिका पर विचार करने से मना कर दिया कि अदालत तथ्यात्मक संदर्भ के बिना सामान्य निर्देश जारी नहीं कर सकती। बेंच ने कहा कि वो सिर्फ व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है। बेंच ने आगे कहा कि राजनीतिक नेता सामान्य नागरिकों की तुलना में अधिक रक्षा का दावा नहीं कर सकते हैं और इसलिए उनके लिए विशेष दिशानिर्देश जारी नहीं किए जा सकते हैं। 11 राजनीतिक दलों की ओर से याचिकाकर्ताओं के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने बेंच को उनकी दलीलों से संतुष्ट नहीं होते देख याचिका वापस लेने की मांग की।
सिंघवी ने कुछ आंकड़ों के जरिए अदालत में दलील दी कि केंद्र द्वारा नियंत्रित जांच एजेंसियों को राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ ‘चुनिंदा और टारगेट’ तरीके से तैनात किया जा रहा है। वरिष्ठ वकील ने कहा कि गिरफ्तारी और रिमांड के साथ-साथ जमानत के लिए उचित दिशा-निर्देशों होने चाहिए। लेकिन ऐसा दिशा निर्देश किसी भी केंद्रीय जांच एजेंसी के लिए नहीं है। गिरफ्तारी और रिमांड के लिए, याचिकाकर्ताओं ने पुलिस अधिकारियों द्वारा ट्रिपल टेस्ट (यह निर्धारित करना कि क्या किसी व्यक्ति के साथ फ्लाइट रिस्क है, सबूतों के साथ छेड़छाड़ की उचित आशंका या गवाहों को प्रभावित / डराने की आशंका है) के आवेदन की मांग की है। सवाल उठाया गया कि ईडी के अधिकारी और अदालतें गंभीर शारीरिक हिंसा को छोड़कर किसी भी संज्ञेय अपराध में व्यक्तियों की गिरफ्तारी के लिए एक जैसा नजरिया रखती हैं। कोर्ट को सलाह दी गई कि जहां ये शर्तें संतुष्ट नहीं करतीं, जांच की मांगों को पूरा करने के लिए निश्चित घंटों पर पूछताछ या अधिक से अधिक हाउस अरेस्ट जैसे विकल्पों का इस्तेमाल होना चाहिए। इसी तरह, जमानत के संबंध में, याचिकाकर्ताओं ने मांग की कि ‘जमानत नियम के रूप में, जेल अपवाद के रूप में’ सिद्धांत का सभी अदालतों द्वारा पालन किया जाना चाहिए, विशेष रूप से उन मामलों में जहां अहिंसक अपराध का आरोप लगाया गया है और जमानत से इनकार केवल वहीं किया जाना चाहिए जहां उपरोक्त ट्रिपल-टेस्ट संतुष्ट करता हो।

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