जैन समाज रेवाड़ी से सीखिए बिना शोर मचाए पूरे देश में कायम कर दी रेवाड़ी की पहचान

शिक्षा की असली सुंगध का आनंद लेना है तो रेवाड़ी के अकलंक छात्रावास में कुछ पल बिताए


दिंगबर जैन मंदिर नसिया में बने छात्रावास में रह रहे देशभर के 20 छात्र बता रहे हैं बेहतर इंसान कैसे बने


रणघोष खास. सुभाष चौधरी की रिपोर्ट


शिक्षा की असल परिभाषा क्या है, क्या बेहतर अंकों के साथ पास होना ही योग्यता- प्रतिभा का सबसे बड़ा प्रमाण है, फाइव स्टार होटल की तरह नजर आने वाले शिक्षण संस्थानों में भारी भरकम फीस जमा करके ही क्या बच्चों का बेहतर भविष्य बन सकता है, लाखों- करोड़ों रुपए विज्ञापन पर पानी की तरह बहाकर खुद को श्रेष्ठ साबित करने की होड़ क्या सच में शिक्षा को बेहतर दिशा की तरफ ले जा रही है, क्या आईएएस, डॉक्टर एवं आईआईटीएन बनना ही स्टेटस सिंबल बन गया है, क्या उच्च स्तर की शिक्षा संपन्न घरों में जन्में बच्चे ही ग्रहण कर सकते हैं,  क्या शिक्षा अमीरी- गरीबी की तराजु में तोले जाने वाला काला सच बन चुकी है..। ऐसे बैचेन करने वाले अनगिनत सवालों का सही जवाब चाहते हैं तो आपको एक बार रेवाड़ी के दिंगबर जैन मंदिर नसिया जी में बने अकलंक छात्रावास में कुछ पल बिताने होंगे। यहां उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, दिल्ली, राजस्थान के 20 ऐसे विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं जिनकी पारिवारिक आर्थिक पृष्ठभूमि कमजोर हैं लेकिन वे अपनी प्रतिभा- लगन से शिक्षा की अदभुत सुगंध बिखेर रहे हैं। इन बच्चों की पढ़ाई- रहन-सहन का संपूर्ण खर्चा रेवाड़ी समाज के 250 परिवार मिलकर उठा रहे हैं।  ये विद्यार्थी समाज के जैन स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं साथ ही संस्कार- शिक्षा के मूल्यों को अपनी ताकत बनाकर खुद को सबसे पहले बेहतर इंसान बनने की परीक्षा के लिए तैयार कर रहे हैं। रणघोष ने होली पर्व पर छात्रावास में इन विद्यार्थियों से बातचीत की तो सभी का लक्ष्य अलग अलग दिशा में दोड़ता हुआ नजर आया। कोई भेड़चाल नहीं, कोई जबरदस्ती नहीं और ना हीं किसी तरह की कोई हीन भावना। किसी को आईएएस, डॉक्टर्स, आईआईटीएन बनना है तो  कोई बिजनेसमैन, सीए, गायक या कुछ ऐसा जो उसके अंदर हिलोरे मार रहा हो। उससे पहले सभी का इरादा एक ही आवाज में पहले एक बेहतर इंसान बनना है। इसलिए उनकी 24 घंटे की दिनचर्या का स्वरूप ही इसी तरह बना हुआ है। सर्दी हो या गर्मी। सुबह 5 बजकर 15 मिनट पर उठना है। 5.30 से 5.45 बजे तक प्रार्थना, उसके बाद आधे घंटे तक योग- व्यायाम, 45 मिनट नित्य क्रिया, 20 मिनट जिन दर्शन, 25 मिनट अल्पहार के लिए, उसके बाद दोपहर 2 बजे तक विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करना, इसी दौरान सुबह 11 बजे 20 मिनट के लिए भोजन, दोपहर 2 से 3 बजे विश्राम, दो घंटे स्व अध्ययन, शाम 5 से 6 बजे तक खेलकूद, उसके उपरांत संध्याकालीन भोजन, आधा घंटा भ्रमण, आधा घंटा जिनमंदिर व आरती, एक घंटा धर्म कक्षा, दुग्धाहार, रात्रि 9 से 10.30 बजे स्व अध्ययन उसके बाद सुबह 5 बजकर 15 मिनट तक रात्रि विश्राम। छात्र जीवन में अनुशासन ही बेहतर इंसान बनने की मजबूत नींव होती है। संस्कार- मूल्य की अलख बिखरेती शिक्षा का पहला मूल मंत्र भी यही है।

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करोड़पति घरों के बच्चों का भी नहीं हुआ चयन

इस अकलकं छात्रावास में रहकर शिक्षा ग्रहण करने के लिए देशभर से करोड़पति परिवारों के बच्चों का चयन भी आसान नहीं है। यहां प्रवेश उन्हीं बच्चों को मिलता है जो निर्धारित लिखित एवं साक्षात्कार की प्रक्रिया में खरा उतरते हैं। अगर कोई परिवार लाखों रुपए देकर भी अपने बच्चे का दाखिला कराना चाहे तो भी उसके लिए सहज नहीं होगा। इससे उलट आज अन्य शिक्षण संस्थानों में दाखिला के लिए किस स्तर तक स्कूल संचालक अपना स्तर गिरा देते हैं यह बताने की आवश्यकता नहीं है।

जानिए इस छात्रावास का का जन्म ऐसे हुआ

दो साल पहले 108  मुनिरी प्रणम्य सागर जी महाराज का शहर के दिगंबर जैन मंदिर में आगमन हुआ। चर्चा हुई। समाज के लोगों ने अपने अलग अलग सुझाव रखे। सागर महाराज जी ने कहा कि इस मंदिर के प्रांगण में एक ऐसा छात्रावास बनना चाहिए जिसमें देशभर से समाज के विद्यार्थी आकर शिक्षा ग्रहण कर सके। ये बच्चे विशेषतौर से आर्थिक तौर से कमजोर परिवार से हो। जब शिक्षा ग्रहण करके वापस जाए तो समाज और राष्ट्र में उनकी विशेष भूमिका हो।  उनकी सोच का परिणाम ही अकलकं छात्रावास का स्वरूप बन गया। इस छात्रावास की खास बात यह है कि भोजन व्यवस्था की जिम्मेदारी महिला समाज पर है।

मिलिए देशभर से आए इन विद्यार्थियों से

देशभर के विभिन्न राज्यों से आए विद्यार्थियों में सत्यार्थ जैन जबलपुर मध्यप्रदेश, मोहित जयपुर, सदैव मुगावली मध्यप्रदेश, सुजल अशोक नगर नई दिल्ली, पुण्येश मुजफ्फरनगर यूपी, आदिश मुरैना एमपी, श्रेयांश मुरैना एमपी, यश दिल्ली, अंश सागर एमपी, अविरल मुगावली एमपी, सरस वडनगर उज्जैन, अर्ध अशोक नगर, आर्जव अशोक नगर, अतिशय गुना एमपी, अर्हम सागर एमपी, देवेश विदिशा एमपी, अक्षत मुज्फ्फरनगर यूपी शामिल है।

 हमारा लक्ष्य हर साल देशभर के 50 विद्यार्थियों तैयार करना है

इस बच्चों के लिए अभिभावक के तोर पर संपूर्ण जिम्मेदारी निभा रही दिगंबर जैन समाज के प्रधान सुनील जैन, दिगबंर जैन समाज के प्रधान सुनील जैन, जैन पब्लिक स्कूल के प्रधान पदम जैन, उपप्रधान प्रदीप जैन, अकलंक छात्रावास के प्रधान प्रवीन जैन, सचिव राजेश जैन, कोषाध्यक्ष पंकज जैन, वार्डन प्रफुल जैन, वीना जैन, पूनम जैन, नेहा जैन का एक ही आवाज में कहना है कि धर्म और कर्म ही परिभाषा ही इंसानियत और मानवता में छिपी हुई है। हम वहीं जिम्मेदारी निभा रहे हैं जो हमारे संस्कारों एवं मूल्यों को मजबूत करती हो।

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