-इस सवाल पर पर शोर मचाने का समय आ गया है कि मुख्य अतिथि वह बने जो खुद में उदाहरण हो या फिर पर्ची वाला..। याद रखिए मुख्य अतिथि किसी भी आयोजन का खुबसूरत चेहरा होता है बाजार में बोली पर बिकने वाला माल नहीं…।
रणघोष खास. प्रदीप नारायण
हरियाणा में इन दिनों नौकरियों में पर्ची- खर्ची को लेकर नेता एक दूसरे की पोल खोल रहे हैं। जो सत्ता में हैं वे ईमानदार होने का दावा कर रहे हैं ओर जो विपक्ष में हैं वे ये बताना चाहते हैं कि ईमानदारी उनके यहां से होकर गुजरती है। इस लड़ाई में जनता परेशान है कि सच कौन बोल रहा है सभी के चेहरे सत्ता में आते ही एक जैसे नजर आते हैं। लिहाजा उसे समझ में आ गया कि नेता वहीं जो पर्ची काटे ओर कटवाए। इसलिए अपने आस पास होने वाले छोटे- बड़े कार्यक्रमों को गौर से देखिए। मुख्य अतिथि वहीं बनेगा जो पर्ची कटवाएगा। जिसकी पर्ची कटवाने की हैसियत नहीं वह अपने घर पर रहता है। बात चाहे गांव- शहर के गली मोहल्लों में हर साल होने वाली रामलीलाओं के मंचन की हो या खेल, सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों की। मंच पर वहीं बैठेगा जिसकी पर्ची कटेगी। धार्मिक स्थलों के रखवाले उन भक्तों को विशेष आशीर्वाद देते है जो विशेष पर्ची कटवाते हैं। अब सवाल यह उठता है कि इस तरह पर्ची कटवाने की चलती आ रही मानसिकता को क्या नाम दें। माना कि बिना आर्थिक मदद के आयोजन करना संभव नहीं है। इसका मतलब यह हरगिज नहीं होना चाहिए कि आयोजन की मर्यादा व मूल भाव पर्ची के हाथों चित्कार करती नजर आए। सोचिए जो जीवन में कभी खिलाड़ी नहीं रहा वह खिलाड़ियों से परिचय लेते हुए उन्हें खेलों पर प्रवचन दे रहा है। जो मैदान में पसीना बहाकर मैडल लेकर आए वे उनके सम्मान में तालियां बजा रहे हैं। धार्मिक आयोजनों एवं जागरण में शराब के ठेकेदार से लेकर वे तमाम भाई लोग जो अनैतिक व खौफ का काराबोर चलाते हैं मुख्य अतिथि बनकर दीप प्रज्जवलित करते नजर आते हैं। कटवाई गईं पर्ची की रसीद उन्हें समाज में समाजसेवी बनाकर सम्मान दिला जाती हैं। क्या देश में इस तरह की पर्ची कटवाकर मुख्य अतिथि बनाने की चलती आ रही परपंराओं पर कभी बहस होगी। अगर इसी तरह पर्ची की बदौलत कोई भी शख्स मुख्य अतिथि बन सकता है तो रिश्वत लेकर काम करने वालों की क्या गलती हैं। दोनों का मकसद एक जैसा है। एक पैसो के बल पर इज्जत खरीदना चाहता है दूसरा पैसो के लिए इज्जत दांव पर लगा देता है। इसलिए इस सवाल पर पर शोर मचाने का समय आ गया है कि मुख्य अतिथि वह बने जो खुद में उदाहरण हो या फिर पर्ची वाला..। मुख्य अतिथि की शक्ल में अज्ञानी पर्ची कटवाकर ज्ञानियों पर ऐसे ही राज करते रहे तो समझ जाइए खुद का, समाज एवं देश का बंटाधार हो चुका है। मुख्य अतिथि किसी भी आयोजन का खुबसूरत चेहरा होता है बाजार में बोली पर बिकने वाला माल नहीं…।