डंके की चोट पर : अब एम्स के श्रेय लेने की हैसियत निचोड़े जा चुके गन्ने जितनी रह गईं

 रणघोष खास. प्रदीप नारायण


हरियाणा के रेवाड़ी जिला गांव माजरा में प्रस्तावित एम्स इस माह में जिंदा होने का जन्म प्रमाण पत्र हासिल कर लेगा। ऐसी उम्मीदें राजनीति व प्रशासनिक हलचलों से महसूस कराई जा रही हैं। पीएम नरेंद्र मोदी संभवत 23 सितंबर को रेवाड़ी या गुरुग्राम से एम्स का जमीन पर उतर जाने का ऐलान कर सकते हैँ। जाहिर है ऐसा होते ही भाजपा नेताओं में इसका श्रेय लेने की जबरदस्त भाग दौड़ प्रतियोगिता शुरू हो जाएगी। इसका चुनाव में कितना फायदा मिलेगा यह कहना मुश्किल है। इतना जरूर है कि एम्स की कहानी भाजपा सरकारों में ठीक उसी तरह याद की जाएगी जिस तरह जमीन जायदाद बंटवारे के समय औलादें घर में सभी के जिंदा रहते माता पिता व आपस में लड़ती रहती है। जबकि उन्हें पता है कि आज नहीं तो कल आगे चलकर उन्हें ही यह विरासत संभालनी है। इसके बावजूद वे झगड़ा करके मान सम्मान से मिलने वाली इस संपत्ति के सम्मान को समय से पहले ही खत्म कर देते हैं। 8 साल बाद तमाम विरोधाभास- किंतु परंतु के बीच एम्स का श्रेय लेना भाजपाईयों के लिए गन्ने का  मशीन में निचोड़े जाने के बाद की बची हैसियत जितना रह गया है।

दरअसल एम्स हमारी देश की सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में भरोसेमंद नाम है जिसका सीधा फायदा उस अंतिम व्यक्ति को मिल जाता है जो आर्थिक तौर पर मजबूत नहीं है। इस परियोजना के आने से क्षेत्र को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी। जाहिर है विकास की रफ्तार भी तेज होगी। जुलाई 2015 में इसकी घोषणा हुई थी जिसे समझने और समझाने में सितंबर 2023 आ गईं। 8 साल में तो शिशु भी मां के गर्भ से बाहर आकर बैठना, उठना, चलना, दौड़ना, स्कूल जाना और घर आकर यह बता देता है कि हमारे देश के पीएम का नाम नरेंद्र मोदी है। मतलब इन सालों में एक मासूम दुनियादारी व समझदारी सीख जाता है। एम्स को बनाने में हमारे नेता सिर्फ सोचते ही रह गए। इस हिसाब से  यह बच्चा जब डॉक्टरी की पढ़ाई कर लेगा उस समय तक एम्स भवन बनकर तैयार होगा। श्रेय लेने वाले भी शिलान्यास के पटटों पर ही कुदेर कुदेर कर याद किए जाएंगे। कुल मिलाकर एम्स के आने से इंसानी शरीर के अंदर की बीमारियों का इलाज तो हो जाएगा। यहां तक तो समझ में आता है। यह 2024  में होने वाले देश प्रदेश के चुनाव में भाजपा के लिए रामबाण की तरह काम भी करेगा यह देखने वाली बात होगी।

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