डंके की चोट पर……देश में किसान आत्महत्या नहीं करता, संस्थागत हत्याएं होती है..

रणघोष खास. देशभर से  

 कृषि से जुड़े तीन बिलों के खिलाफ उबाल खा रहा देश कब शांत होगा। अभी कोई आसान नजर नहीं आ रहे हैं। इतना जरूर है  किसान पूरी तरह से विकास से निकलकर राजनीतिक एंजेडे में पूरी तरह से फंस चुका है। नब्बे के दशक में वैश्वीकरण के दौर के बाद किसानों को राजनीतिक एजेंडे में तो फंसाकर रखा गया, लेकिन विकास के एजेंडे से उन्हें बाहर कर दिया गया। बारबार कृषकों के हितों की दुहाई दी गईं। उनके नाम पर समितियों का गठन हुआ। उन्हें सब्सिडी दी गईं। उनके कर्ज़ माफ़ किए गए, लेकिन किसान की आय कैसे बढ़ाई जाए, यह सुनिश्चित नहीं किया गया! बल्कि शासनप्रशासन ने अन्नदाताओं की इकलौती निधिआत्मसम्मानको रौंद कर उन्हें जान देने के लिए मजबूर कर दिया। ये आत्महत्याएँ नहीं बल्कि संस्थागत हत्याएँ हैं। इनके लिए राज्य और उसके विभिन्न निकाय जिम्मेदार हैं। एक कहावत है– “उत्तम करे कृषि, मध्यम करे व्यापार और सबसे छोटे करे नौकरीऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि कृषि करने वाले लोग प्रकृति के सबसे करीब होते हैं और जो प्रकृति के करीब हो वह तो ईश्वर के करीब होता है। किंतु अब यह कथन उलटता जा रहा है। समय की दरकार है कि हम किसान को आश्वस्त करें। उन्हें भरोसा दिलाए कि अभी भी भारत गाँवों का देश है।

Rajasthan-Farmer

स्मार्ट सिटी जब बनेंगे तब बनेंगे पहले यह देश सबका पेट भरने वाले को यह बताए कि सूखा, ऋण, बाढ़ के समय में उनके साथ खड़ा है। बैंकों में चक्कर लगाने पर भी लोन मिलने की स्थिति में जिन साहूकारों से कर्ज लेते हैं, उनके चंगुल से बचाने की जिम्मेदारी हमारी है। उन्हें यह भरोसा दिलाना होगा कि फसल बीमा केवल चुनिंदा लोगों को नहीं मिलता, बल्कि सभी लोगों को मिलता है। उन्हें यह जताना होगा कि आज भी यह देश नाम के नहीं काम के किसान के साथ खड़ा है। नीतियों के बांझपन से मिट्टी की उर्वरा समाप्त करने की साजिशों को मुंहतोड़ जवाब देना होगा। यह देश पहले भी सोनाचाँदी पैदा करता था, पैदा करता है और पैदा करता रहेगा। किसान की हथेलियों ने हल, खुरपी, हँसिए पकड़कर अपनी रेखाएँ गंवाई अवश्य हैं, किंतु देश की हथेली की रेखाओं को कभी मिटने नहीं दिया। यही वह जज्बा है जिसके आगे देश नतमस्तक रहता है। किसान बेसहारा, मजबूर, बेबस, गरीब, लाचार का सूचक नहीं हमारे देश की शान है। इस शान के लिए जिस तरह सेना के जवानों के साथ हम व्यवहार करते हैं, ठीक उसी तरह से उनके साथ व्यवहार करने की आवश्यकता है। यह जिस दिन होगा उसी दिन जय जवान जय किसान का नारा सफल होगा।

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