डंके की चोट पर : ब्रजभूषण के पैसो से कुश्ती आबाद होती है, द केरल फिल्म से भारतीयता, ताली बजाइए यह आज का भारत है

IMG-20221214-WA0006[1]रणघोष खास. प्रदीप नारायण


हम भारतीयों को ताली बजाने का बहुत चाव है। सड़क पर आठ फीट ऊंचे बांस की रस्सी पर मासूम बच्ची सिर पर टोकनी लेकर चलती है। उसकी मां डमरू बजाकर अपनी झोली फैलाती है तो हम उसकी बेकद्री पर ताली बजाते हैं। सर्कस में मौत के कुएं का नजारा देखकर दोनों हाथ ताली के लिए फड़फड़ा उठते हैं। न्यूज चैनलों के स्टूडियों में धर्म-जाति के ठेकेदार तैश में आकर जहर उगलते हैं तो हाथ एक दूसरे के समर्थन में शोर मचाने लगते हैं। हिंसा में बहे खून से लाल होती सड़कों पर भी जीत के जश्न में भी तालियां मदहोश नजर आती है। कोविड ने जब देश को घरों में कैद कर दिया तब भी हमने बालकानी में आकर जमकर तालियां बजाईं। दिल्ली के जंतर मंतर पर बैठे पहलवानों ने जब मैडल बटोरकर विश्व में देश का डंका बजाया तो पूरा देश तालियों से गुंजायमान हो गया था।  इन्हीं महिला पहलवानों ने भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के चाल चरित्र पर हमला किया तो यहीं तालियां अलग अलग धड़ों में बंट गईं। अपने बचाव में बृजभूषण सिंह बोल रहे हैं उनके निजी पैसो से कुश्ती आबाद हुई है। अगर यह संपूर्ण सच है तो जमकर तालियां बजाइए। साथ ही लगे हाथ खेल मंत्रालय, खेल नीति को बृजभूषण सिंह के हवाले करने की  मांग कर हाथों की हथेलियों को आपस में पिटिए। अगर भाजपा वाली राज्य सरकारों के राज्य में रह रहे हैं तो द केरल फिल्म देखकर ताली बजाना नहीं भूले। जहां दूसरे दलों की सरकार है तो द केरल नहीं देखने की खुशी में ताली जरूर बजाए। आरक्षण के नाम पर बुरी तरह झुलसे मणिपुर में तालियां अलग तरीके से बज रही हैं। यहां राजनीतिक दलों के लिए यह हिंसा अलग अलग वोट बैंक की शक्ल में दीवाली- ईद-क्रिसमिस पर नजर आने वाली खुशियों से कम नहीं है। मौजूदा हालात को देखते हुए वो दिन दूर नहीं जब अपने देश को जाति- धर्म के नाम पर पूरी तरह बांटकर एक दूसरे को मारने पर उतारू हो जाने  के जोश में भी तालियां बजाएंगे।  36 बिरादरी, 36  संविधान, 36 राज्य की मांग सड़कों पर हिंसा का तांडव  करते हुए तालियों के साथ सोशल मीडिया पर आग फैलाता नजर आएगा।  देखते ही देखते तालियों का ऐसा बाजार खड़ा हो जाएगा। जहां काम के बदले नहीं ताली बजाने पर मेहनताना मिलेगा। अब यहां सवाल उठता है जब अस्पताल में जिंदगी मौत से जूझ रहे मरीज को खून की जरूरत पड़ती है तो उस समय ब्लैड बैंक से आने वाले खून के लेबल पर जाति- धर्म लिखा नहीं होने पर तालियां क्यों नहीं बजती।  जिस राशन से बने भोजन को खाकर तालियां बजाते हैँ उस समय क्यों भूल जाते हैं कि  अनाज- मसाला- सब्जी किस जाति- धर्म से संबंध रखने वाले किसान के खेत से आई होगी। इलाज के समय डॉक्टर से उसकी जाति- धर्म क्यों नहीं पूछते। बस- ट्रेन- हवाई यात्रा करने से पहले चालकों से उनके बारे में पता क्यों नहीं करते। हम ऐसा नहीं कर सकते। इसलिए इस पर भी ताली बजाइए।

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