दैनिक रणघोष खुलासा: सीबीएसई का भरोसा खत्म, केंद्रों पर परीक्षा नहीं शिक्षा के साथ गैंगरेप हो रहा है

 -गुरु का चोला पहनकर परीक्षा केंद्रों पर बच्चों को नकल कराने वाले शिक्षा के बलात्कारी हैं। कायदे से इनके खिलाफ भी वहीं धाराएं लगनी चाहिए जो एक मासूम को बहला फुसलाकर दुष्कर्म करने वाले पर लगती हैं।

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रणघोष खास. प्रदीप नारायण

देश के बेहतर भविष्य की आधारशिला रखने वाली सीबीएसई इन दिनों चल रही फेज वन की कक्षा 10 वीं एवं 12 वीं की परीक्षा में पूरी तरह से फेल होती नजर आ रही है। परीक्षा केंद्रों के अंदर जो हालात नजर आ रहे हैं उससे साफ जाहिर हो रहा है कि किसी भी विद्यार्थी को परीक्षा देने के लिए दिन रात तैयारी करने की कोई जरूरत नहीं है। परीक्षा देने आराम से आइए जिन्हें आप गुरु कहते हैं वो आपका प्रश्न पत्र हल करने के लिए पहले से तैयार मिलेंगे। परीक्षा का पैटर्न पूरी तरह ऑब्जेटिक्वहै। इसलिए आधे घंटे में शत प्रतिशत नंबरों की गांरटी के साथ आप घर भी जा सकते हैं। घर आकर  दिन रात आपकी चिंता करने वाले अपने माता- पिता से झूठ बोलिए कि पेपर आसान आया था। इसलिए जल्दी आ गए।

इस पूरे खेल को आसानी से समझा जा सकता है

सीबीएसई ने शिक्षा के इतिहास में पहली बार ऐसा नया प्रयोग किया है जो किसी सूरत में व्यवहारिक नहीं है। जिन स्कूलों को परीक्षा केंद्र बनाए हैं। वहां करीब डेढ़ घंटे पहले प्रश्न पर ऑन लाइन जारी कर दिया जाता है। डयूटी पर तैनात स्टाफ उस प्रश्न पत्र का प्रिंट आऊट निकालकर परीक्षा केंद्र पर बच्चों की संख्या के हिसाब से फोटो कापी करता है। प्रश्न पत्र की पृष्ठ संख्या 20 से 30 होती है। कक्षा 12 वीं की अंग्रेजी के प्रश्न पत्र में 28 पेज आए थे। यह सब करने के लिए डेढ़ घंटे का समय मिलता है। फटाफट प्रश्न पत्र की सेटिंग करते समय गलतियां भी हो रही है। पृष्ठ संख्या सीरिज वाइज नहीं होकर ऊपर नीचे भी हो रही है। जिसे दुरुस्त करने में आधा घंटा लग जाता है। इससे विद्यार्थी मानसिक प्रताड़ना अलग से बर्दास्त करता है। इसी अवधि में प्रश्न पत्र उन स्कूल में कार्यरत सभी शिक्षकों एवं कर्मचारियों के हाथों में आसानी से पहुंच जाता है। चूंकि केंद्र पर ना कोई सीसीटीवी कैमरे या जैमर लगाए गए है जो पेपर को लीक होने से रोक सके। यही पर ही परीक्षा शुरू होने से पहले प्रश्न पत्र की आंसर की तैयार कर ली जाती है। पेपर कोड एक होता है। इसलिए एक ही प्रयास में सभी विद्यार्थियों को गंगाजल से गंदा नाला बनी शिक्षा में डूबकी लगवा दी जाती है। कार्यरत स्टाफ आसानी से विद्यार्थियों की ओमआर सीट को भरवाते चले जाते हैं। डयूटी पर तैनात एक सुपरवाइजर की रिकार्डिंग यह साबित करती हैं कि देशभर में परीक्षा के नाम पर खुलेआम बिना किसी खौफ के यह नंगा नाच चल रहा है। जिसे देखकर स्कूल संचालक बजाय आक्रोश में आने के आंखें बंद किए हुए हैं। वजह आपस में बुरा कौन बने सबका कारोबार एक जैसा है। अधिकांश इसे अवसर मानकर बेहतर रजल्ट को आने वाले दिनों में बाजार में बेचने की तैयारी में जुटे हुए हैं।

बेहतर होता स्कूल संचालक अपने स्तर पर ही परीक्षा ले लेते

पता नहीं सीबीएसई किस आधार पर खुद के विश्वसनीय होने का दावा करती है। सोचिए जिस स्कूल को परीक्षा केंद्र बनाया है, उसी में उसी स्कूल के बच्चे परीक्षा दे रहे हैं। स्टाफ भी स्कूल का है। प्रश्न पत्र डेढ़ घंटे पहले ही ऑन लाइन पहुंच जाता है। ऐसे में कौनसा स्कूल अपना रजल्ट बेहतर बनाने के लिए इस मौके को आसानी से जाने देगा। सीबीएसई को अगर ऐसा ही करना था तो स्कूल  स्वयं ही अपने स्तर पर परीक्षा ले लेते वह कम से कम चल रही परीक्षा से बेहतर होती।

इस मामले में खामोश क्यों हो जाते हैं स्कूल- शिक्षक संगठन

आमतौर पर अपने अधिकारों एवं शिक्षा विभाग की पॉलिसी के खिलाफ धरना प्रदर्शन एवं तरह तरह के संघर्ष करने वाले शिक्षक एवं स्कूलों की एसोसिएशन- संगठन परीक्षा केंद्रों पर खुलेआम शिक्षा की गरिमा एवं पवित्रता के साथ हो रहे दुष्कर्म को देखकर आंख क्यों बंद कर लेते हैं। उनकी जुबान से आवाज क्यों नहीं आती हैं। उन्हें गुस्सा क्यों नहीं आ रहा। अब उनका आक्रोश कहां चला गया।  क्या हम जो खुलासा कर रहे हैं वह सफेद झूठ है। इससे साफ जाहिर होता है कि आज हमारे देश में शिक्षा बाजार में बिकने वाला माल बन चुका है जो विद्यार्थी की शक्ल में पैकेज के तोर पर तैयार होती है। किस माल में क्या खूबी है उसे कैसे बेचना है  यह रजल्ट के दरम्यान होने वाले प्रचारों से नजर आता है।

अपने बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए सबकुछ दांव पर लगा रहे अभिभावक

स्कूलों में शिक्षक- कर्मचारी या  स्कूल संचालक पहले एक अभिभावक है। उन्हें पता है कि माता-पिता अपने बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए किस कदर दिन रात मेहनत कर अपना सबकुछ दांव पर लगा रहे हैं। वे अपने बच्चों में अपना बेहतर भविष्य तलाश रहे हैं। पढ़ाई में उसे कोई परेशानी नहीं आए इसके लिए छोटी से छोटी आवश्यकता को पूरा करने में देरी नहीं करते। सोचिए जब परीक्षा के समय यह शर्मसार करने वाली तस्वीर सामने आती हैं तो उन पर क्या बीत रही होती हैं।

रेवड़ी की तरह परीक्षा केंद्र बांटे, जिसने सेवा नहीं की उसे 40 किमी दूर सेंटर मिला

परीक्षा केंदों के मापदंड पर जाए तो साफ नजर आ रहा है कि रेवड़ी की तरह सेंटर बांट दिए गए। जिन स्कूल संचालकों की नजर में शिक्षा बाजार में बेचे जाने वाला माल है उन्होंने परीक्षा शुरू होने से पहले ही शिक्षा अधिकारियों से सेंटिंग अपने हिसाब से सेंटर एवं स्टाफ की डयूटी लगवा ली। इसलिए देखा होगा कि पानीपत- सोनीपत, रेवाड़ी समेत अनेक जगहों से परीक्षा के नाम पर हो रहे इस खेल का पर्दाफाश होने के बावजूद बड़े स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।

सीबीएसई में अधिकारी कम शिक्षा के ठेकेदार ज्यादा

परीक्षा के दिनों में सीबीएसई के अधिकारी इसे कमाई का सीजन समझकर ठेकेदार बन जाते हैं। इसलिए प्रश्न पेपर की सेंटिंग से लेकर सेंटर देने या नहीं देने का मसौदा पहले ही तैयार हो जाता है। जो इस स्कूल संचालक इसमें एक्सपर्ट है वो आसानी से नंबरों की काली कोठरी में बच्चों को धकेलकर मीडिया में ठहाका मारते नजर आते हैं। इसलिए अंग्रेजी, हिंदी, सामाजिक, साइंस समेत सभी विषयों में बच्चों को 90 से 100 नंबर आना हैरान करने वाली बात है। सबकुछ जानते हुए बाजारू गुरु बच्चों के माता-पिता को इस कदर अंधेरे में रखते हैं मानो यह नंबर  स्कूल की तरफ से कराई जा रही मेहनत का नतीजा है जबकि असलियत कुछ ओर होती है। जिसके दुष्परिणाम कुछ समय बाद सामने आते हैं जब अखिल भारतीय स्तर की लिखित परीक्षा में ये बच्चे सफल नहीं होते ओर डिप्रेशन में जाकर आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं।

बच्चों को नकल कराने वाले हत्यारे, इन पर गैंगरेप वाली धाराएं लगे

गुरु का चोला पहनकर परीक्षा केंद्रों पर बच्चों को नकल कराने वाले शिक्षा के हत्यारे हैं। कायदे से इनके खिलाफ भी वहीं धाराएं लगनी चाहिए जो एक मासूम को बहला फुसलाकर दुष्कर्म करने वाले पर लगती हैं। ऐसा करने वाले शिक्षा के ये दुष्कर्मी यह भूल जाते हैं कि वे बच्चे की जिदंगी खत्म नहीं कर रहे हैं साथ ही एक परिवार, समाज एवं राष्ट्र को भी तहस नहस कर रहे हैं। ये लोग आंतकवादी, दुष्कर्मी, निर्दयी से ज्यादा खतरनाक इसलिए है क्योंकि ये  गुरु का चोला पहनकर यह खेल करते हैं जिन्हें पूरा समाज इज्जत की नजर से देखता है।

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