धर्म-जाति की बात करने वाले वेद- गीता-कुरान के सबसे बड़े शत्रु, बचकर रहिए

धर्म व जाति के नाम पर देश- समाज ताश के पत्तों की तरह बिखरता जा रहा है। चारों तरफ हिंसा का तांडव, एक दूसरे को हीन भावना से देखने की दृष्टि ने दिलों दिमाग में संडाध मारना शुरू कर दिया है। एक दूसरे से श्रेष्ठ साबित करने और नीचा दिखाने की बदबु ने जीना मुहाल करना शुरू कर दिया है। आत्मा चित्कार कर रही है। ऐसे में अब एक बार फिर बेहतर इंसान बनने के लिए वेद- कुरान- गीता समेत अनेक महान ग्रंथों की गोद में समा जाने की भावनाए हिलोरें मारने लगी हैं। वेदों को समझने व जानने वाले अच्छी तरह से महसूसस करते हैं कि सभी में  सभी चार वर्णों को जिनमें शूद्र भी शामिल हैं, आर्य माना गया है और अत्यंत सम्मान दिया गया है। हमारा दुर्भाग्य देखिए कि  वेदों की इन मौलिक शिक्षाओं को हमने विस्मृत कर दिया है, जो कि हमारी संस्कृति की आधारशिला हैं । इतना ही नहीं  जन्म-आधारित जाति व्यवस्था को मानने तथा कतिपय शूद्र समझी जाने वाली जातियों में जन्में व्यक्तियों के साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार आदि  करने की गलत अवधारणाओं में हम फंस गए हैं। इस का केवल मात्र समाधान यही है कि हमें ईमानदारी जिम्मेदारी और जवाबदेही के साथ अपने मूल, वेदों की ओर लौटना होगा और हमारी पारस्परिक (एक-दूसरे के प्रति) समझ को पुनः स्थापित करना होगा। इसी प्रकार संपूर्ण मानव समाज एक जाति है | ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र किसी भी तरह भिन्न जातियां नहीं हो सकती हैं क्योंकि न तो उनमें परस्पर शारीरिक बनावट (इन्द्रियादी) का भेद है और न ही उनके जन्म स्त्रोत  में भिन्नता पाई जाती है। पिछले कुछ लंबे समय से राजनीति करने वाले धर्म-जाति को अपना धंधा बनाने वालों ने  जाति शब्द  को हमारे शरीर की  नसों में दौड़ाने का दुस्साहस किया है। इसीलिए हम सामान्यतया विभिन्न समुदायों को ही अलग जाति कहने लगे | जबकि यह मात्र व्यवहार में सहूलियत के लिए हो सकता है। सनातन सत्य यह है कि सभी मनुष्य एक ही जाति हैं। सार रूप में, वैदिक समाज मानव मात्र को एक ही जाति, एक ही नस्ल मानता है। वैदिक समाज में श्रम का गौरव पूर्ण स्थान है और प्रत्येक व्यक्ति अपनी रूचि से वर्ण चुनने का समान अवसर पाता है। किसी भी किस्म के जन्म आधारित भेद मूलक तत्व वेदों में नहीं मिलते। इसलिए हम भी समाज में व्याप्त जन्म आधारित भेदभाव को ठुकरा कर, एक दूसरे को समानता की दृष्टि के  रूप में स्वीकारें और अखंड समाज की रचना करें। हमें गुमराह करने के लिए वेदों में जातिवाद के आधारहीन दावे करने वालों की मंशा को हम सफल न होने दें और समाज के इन अपराधियों बनाम दस्यु दास राक्षसों का भी सफ़ाया कर दें।हम सभी वेदों की छत्र-छाया में एक परिवार की तरह आएं और मानवता को बल प्रदान करें।

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