पीएम मोदी के लिए चुनौतियां बढ़ रही हैंः न्यूयॉर्क टाइम्स

भारत में सत्तर के दशक में या तो इंदिरा गांधी के पास सबसे ज्यादा ताकत थी या फिर मौजूदा दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास सबसे ज्यादा ताकत है। 1970 के दशक में जब लोगों के मौलिक अधिकार तक छिन गए गए थे, इंदिरा गांधी तानाशाही के दौर को अदालत ने कड़ी चुनौती दी। लेकिन जैसे-जैसे भारत 2024 के आम चुनाव की तरफ बढ़ रहा है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पकड़ देश के लोकतांत्रिक संस्थाओं पर बढ़ती जा रही है। हालांकि उन्हें देश की न्यायपालिका से थोड़ा बहुत झटका लगता है लेकिन भारत के राजनीतिक विश्लेषकों, राजनयिकों और राजनीतिक विरोधियों का कहना है कि मोदी की पार्टी अपनी रक्षा के लिए अदालतों पर निर्भर है। देश को धीरे-धीरे एक-दलीय राज्य की ओर धकेला जा रहा है। यह रिपोर्ट न्यूयॉर्क टाइम्स में कल बुधवार को प्रकाशित हुई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी चुनौतियों को जितना किनारे करने की कोशिश करते हैं, वो उतना ही बढ़ रही है।

हाल के दिनों में तमाम अंतरराष्ट्रीय मीडिया मोदी की राजनीति पर गहरी नजर बनाए हुए है। बीबीसी की दो हिस्सों में आई डॉक्यूमेंट्री से पीएम मोदी की छवि को काफी धक्का पहुंचा था और विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को जबरदस्त ढंग से पेश किया। न्यूयॉर्क टाइम्स की ताजा रिपोर्ट ने मोदी की राजनीति का गहन विश्लेषण किया है।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि अभी जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मोदी के गृह राज्य गुजरात में सूरत कोर्ट ने दो साल की सजा सुनाई और अगले दिन ही उन्हें लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया तो भारतीय राजनीति में भूचाल आ गया। अडानी पर विपक्ष के विरोध का सामना कर रहे मोदी के विरोधियों को एक और मुद्दा मिल गया। राहुल के मुद्दे पर कांग्रेस और विपक्षी दल अब प्रदर्शन कर रहे हैं। भारत की संसद में अलग ही दृश्य देखने को मिले। राहुल के घटनाक्रम से यह संदेश जा रहा है कि मोदी सरकार उन्हें संसद से बाहर करना चाहती है और आने वाले वर्षों में चुनाव लड़ने से रोकना चाहती है।

हालांकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं ने कहा कि सूरत कोर्ट का फैसला बताता है कि “कानून सभी के लिए समान है।” लेकिन कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह विवाद 2019 के राहुल गांधी के एक राजनीतिक बयान से जुड़ा है। राहुल गांधी ने मोदी की तुलना मोदी नाम वाले प्रमुख “चोरों” की जोड़ी से की थी। लेकिन कांग्रेस के गठबंधन वाले दलों ने अदालत से सुनाई गई सजा को मैच फिक्सिंग कहा।

मोदी की क्षमता क्या है

राहुल गांधी को लोकसभा से अयोग्य किए जाने से भी पहले भाजपा की एक और आलोचक पार्टी के प्रमुख नेता (मनीष सिसोदिया) की गिरफ्तारी हुई। तमाम राजनीतिक विरोधियों पर छापे मारे गए। भारत के विपक्षी दल इस बात पर हैरान हैं कि असहमति के स्वर लगातार बढ़ रहे हैं लेकिन किसी भी चुनौती देने वाले को दरकिनार करने की मोदी की क्षमता की क्या सीमाएं हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है मोदी हिंदू राष्ट्रवादी राजनीति और तमाम लोकप्रिय वेलफेयर स्कीमों की वजह से बहुत पावरफुल बन गए हैं। वेलफेयर योजनाएं ज्यादातर प्रधानमंत्री के नाम पर होती हैं, जिन्हें जबरदस्त ढंग से प्रचारित किया जाता है। तमाम दबाव, प्रलोभन और ताकत के दम पर न्यायिक प्रणाली को अपनी इच्छा के हिसाब से मोड़ा गया और तमाम विरोधी अदालतों के चक्कर काट रहे हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि कुछ जजों या सुप्रीम कोर्ट के कुछ जजों को सरकार के प्रति लचीले रुख के रूप में देखा गया। उनके फैसले या तो सरकार के अनुकूल थे या फिर कुछ जजों के फैसले मोदी सरकार को महत्वपूर्ण संवैधानिक चुनौतियों से बचा ले गए। ऐसे जजों को संसद की सीट से नवाजा गया तो किसी को आयोग में पद या किसी राज्य का गवर्नर बनाकर इनाम दिया गया। जिन्होंने थोड़ा बहुत आजादी दिखाने की कोशिश की, उन्हें तबादलों और करियर में ठहराव का सामना करना पड़ा। तमाम न्यायिक नियुक्तियों को रोककर संदेश भेजा गया।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि मोदी के सहयोगी भी इस स्थिति का लाभ उठाते हैं। मोदी से असहमति जताने वाले लोगों पर शिकायतें दर्ज करा के उन्हें वर्षों तक चलने वाले कोर्ट केसों में फंसा दिया गया। कभी-कभी कुछ शिकायतें तो कॉपी-पेस्ट नजर आती हैं। सभी में एक जैसी शिकायतें। कुछ को पुरानी सोशल मीडिया पोस्ट के आरोप में फंसाया गया है।

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