पढ़िए ऐसे डॉक्टर दंपति की कहानी जिसे पढ़कर जिंदगी के मायने समझ जाएंगे

कोरोना ने डॉ. संजय मैहरा को मौत के करीब पहुंचा दिया था, डॉक्टर्स जवाब दे चुके थे, पत्नी डॉ. संगीता की हिम्मत से नया जीवन मिल गया


रणघोष खास. डॉ. संजय मेहरा- डॉ. संगीता की जुबानीं..


गांव कुंड स्थित बालाजी अस्पताल के संचालक डॉ. संजय मैहरा एक नई जिंदगी के साथ वापसी कर रहे हैं। इसे चमत्कार कहिए या धैर्य- हिम्मत की अग्नि परीक्षा जिसकी मौत पर हस्ताक्षर करने के लिए फाइलें तैयार हो चुकी थी। सोशल मीडिया पर जिनके दुनिया से चले जाने की खबरें शोर मचा रही थी। ऐसे में उनकी पत्नी डॉ. संगीता ने अंतिम सांस तक हौसले को कमजोर नहीं होने दिया। उन्होंने जवाब दे चुके डॉक्टरों से एक अंतिम कोशिश करने की अपील की। अपने भाई- सगे संबंधी व मिलने वालों के सहयोग से रातों रात दिल्ली- सोनीपत- रेवाड़ी से प्लाज्मा जुटाया। इलाज कर रहे डॉक्टर्स हैरान थे कि डॉ. संगीता ऐसा क्यों कर रही है। उनकी वापसी संभव नहीं है। फेफेडें पूरी तरह से संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। डॉ. संगीता का मन रखने के लिए उन्होंने एक कोशिश की। प्लाजमा की बोतलें लगनी शुरू हुईं। 24 घंटे बाद डॉ. संजय मैहरा के शरीर में हलचल हुईं। डॉक्टर टीम हैरान। 5 प्रतिशत की रिकवरी नजर आने लगी। फिर क्या देखते ही देखते रिकवरी रेट बढ़ती चली गईं। आज डॉ. संजय मैहरा 80 प्रतिशत से ज्यादा पूरी  तरह से स्वस्थ्य है। कोरोना के हमले ने डॉ. संजय मैहरा एवं डॉ. संगीता के जीवन को पूरी तरह बदल दिया है। इस दंपत्ति का दावा है कि समाज में आज भी 80 प्रतिशत अच्छे इंसान है जो यह कभी नहीं बताते कि वे बेहतर है। उनकी दुआओं एवं मदद से वे आज नई जिंदगी की शुरूआत कर रहे हैं। पढ़िए डॉ. संजय मैहरा एवं डॉ. संगीता की जुबानी इस पूरे घटनाक्रम की कहानीं…

डॉ. संजय मैहरा बताते हैं कि 21 अप्रैल को उन्हें हलका सा बुखार हुआ था। चार- पांच दिन वे अपने स्तर पर इसका इलाज करते रहे। ठीक नहीं हुआ तो उन्हें शक हुआ। टेस्ट कराया तो कोरोना पॉजीटिव निकले। उन्होंने 26 अप्रैल को रेवाड़ी के पुष्पाजंलि अस्पताल में सिटी स्केन एवं सभी टेस्ट कराया। डॉकटरों ने कहा कि ज्यादा प्रॉब्लम नहीं है। बेहतर होगा कि घर पर ही अपना इलाज करें। वे घर लौट आए। अगले दिन उन्हें सांस की दिक्कत शुरू हो गईं। चैक किया तो आक्सीजन लेवल 85 पर आ गया। स्थिति बिगड़ रही थी। वे रेवाड़ी के अंबेडकर चौक स्थित देव अस्पताल में भर्ती हो गए। यहां एक दिन बाद ही डॉक्टरों ने बेहद गंभीर हालात बताईं ओर जवाब दे दिया। डॉ. संजय को रोहतक के कॉएनोस सुपर स्पेशिलिएटी अस्पताल में भर्ती कराया गया जिसे उनके क्लासमेट रहे डॉ. अरविंद दहिया संचालित कर रहे हैं। यहां डाक्टर्स की टीम उनके इलाज में जुट गईं। फेफेड़े पूरी तरह से संक्रमण की चपेट में आ चुके थे। इसलिए शरीर ने काम करना बंद कर दिया था। उसके बाद वे पूरी तरह बेहोशी की हालत में चले गए। साये की तरह उनके साथ रही डॉ. संगीता बताती है कि डॉ. संजय की पोजीशन पूरी तरह से बिगड़ चुकी थी। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था। यहां तक कह दिया था आप इन्हें ले जा सकती हैं। अब कोई फायदा नहीं। कोई उम्मीद नहीं बची है। मैने कहा मेरे कहने से एक कोशिश ओर करिए। प्लाज्मा चाहिए उसकी व्यवस्था कर देंगे। डॉक्टरों ने मेरा मन रखने और  मौजूदा हालात को देखते हुए एक दिन ओर एडमिट रखने की अनुमति दे दी। हमें उस शख्स का प्लाज्मा चाहिए था जो एक माह से अधिक समय का नहीं हो। नेट पर सर्च किया। मेरे परिजन मिलने वाले जुट गए। हर जगह से हताशा मिल रही थी समय तेजी से गुजर रहा था। रेवाड़ी में डॉ. सुरेंद्रा से संपर्क किया। वे हवाई चप्पल में ही अस्पताल पहुंच गए ओर अपना पलाज्मा दिया। डॉ. रजनी अरोडा के माध्यम से एक शख्स मंजीत सिंह ने प्लाज्मा दिया। सोनीपत से भी व्यवस्था हो गईँ। रात दो बजे तक हमने प्लाज्मा की व्यवस्था कर ली थी। वे खुद आईसीयू में पहुंची ओर कहां आप इसे लगाइए। डॉ. संगीता बताती है कि डॉक्टर मेरा मन रखने के लिए ऐसा कर रहे थे और हैरान थी थे कि जब फेफेड़ों में हलचल ही नहीं बची तो  यह सब करने का फायदा नहीं है। खैर इलाज जारी रहा। 24 घंटे बाद डॉक्टरों ने उन्हें बुलाया और हैरानी वाली मुस्कान के साथ कहा कि 5 प्रतिशत की रिकवरी नजर आ रही है। दुआ करें सब ठीक हो जाएगा। अगले 24 घंटे में रिकवरी रेट 30 प्रतिशत पहुंच गई तो डॉक्टरों ने इसे चमत्कार मान लिया। 11 दिन तक डॉ. संजय आईसीयू में मुर्छित रहे। उसके बाद उन्हें होश में लाया गया। वे सभी को पहचान रहे थे। 15 दिन रहने के बाद वे घर आ गए। एक माह पूरी तरह से आराम किया। 80 प्रतिशत रिकवर हो गए हैं।

जिंदगी क्षणिक है, जितना परोपकार हो सके करिए

आमतौर पर डॉक्टर्स धार्मिक व चमत्कार जैसे शब्दों में कम भरोसा करते हैं। डॉ. संजय मैहरा का कहना है कि कोई ना कोई शक्तियां है जो दुआओं के रास्ते चमत्कार करती हैं। इस घटना ने उनके जीवन को बदल दिया है। जिंदगी क्षणिक है। आप किसी भी पेशे में रहे। ऐसा काम करे जिससे लोगों की दुआए मिले। मेरे इलाज के दौरान जो कुछ भी हुआ मुझे बताया गया। मेरा मानना है कि आज भी समाज में 80 प्रतिशत लोग बेहतर इंसान है जो अपनी अच्छाई का प्रचार नहीं करते। उनकी दुआओं से मुझे भी नया जीवन मिला है। इसलिए डॉ. संगीता की हिम्मत मुझे मौत के मुंह से निकालकर बाहर ले आईं।

 हाथ जोड़कर विनती है इस वायरस को हलके में ना ले, यह अभी भी हमारे बीच है

डॉ. संजय मैहरा ने कहा कि जो गलती बतौर डॉक्टर रहते हुए उन्होंने की है वह प्लीज कोई ओर नहीं करें। जब वे पॉजीटिव हुए तो उन्हें लगा कि वे पूरी तरह से स्वस्थ्य है, अपने हिसाब से कंट्रोल कर लेंगे। यहां लापरवाही दिखाईं। यह बेहद खतरनाक वायरस है। आज जिस तरह का माहौल बन रहा है उससे साफ लग रहा है कि हम दुबारा अपनी मौत को निमंत्रण दे रहे हैं। यह वायरस अभी गया नही है हमारे बीच में हैं। अब यह नए चेहरे में आएगा। इसलिए सोशल डिस्टेंस एवं मास्क की मर्यादा का उल्लघंन ना करें। कड़ाई से पालन करें

3 हजार के इंजेक्शन का एक लाख वसूलने वाले हैवान निकले

यह समय इंसानियत और मानवता की परीक्षा का था। यहां लोगों ने इसे निभाया तो कुछ दवाईयों एवं इंजेक्शन की कालाबाजारी में हैवान बन गए।  वे बेशक काली कमाई करके खुश हो रहे होंगे उनकी आत्मा हर पल उन्हें धिक्कार रही होगी। ऐसा मुझे पूरा भरोसा है।

बचपन से ही हिम्मत वाली रही डॉ. संगीता

डॉ. संगीता बताती है कि जब डॉक्टर्स की टीम डॉ. संजय मैहरा को बचाने में अपने हाथ ऊपर खड़े कर चुकी थी उन्हें विश्वास था कि डॉ. संजय नहीं जाएंगे। 10 साल पहले उनकी मम्मी को कैंसर हुआ था सेकेंड स्टेज पर था। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। उस समय भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। आज उनकी मम्मी इस बीमारी से जंग जीत चुकी है। डॉ. संगीता का कहना है कि वे पिछले 20 सालों से मेडिकल लाइन में हैं। काफी डिलीवरी की हैं। इस दौरान ऐसे चमत्कार देखे हैं जिसे शब्दों में बयां नहीं कर सकती। डिलीवरी के समय हमें लगता था कि शिशु या उसकी मां नहीं बचेगी। उस दौरान चमत्कार हुआ। इससे उनके जीवन पर गहरा असर पड़ा। डॉ. संगीता का कहना है कि इंसान को अंतिम समय तक हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। आपके किए गए कार्यों से मिलने वाली दुआए चमत्कार बनकर अपना काम कर जाती है। हमारे जीवन में ऐसा ही हुआ है। 

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