बदल गये दस्तूर’ दोहा-संग्रह पर अंतरराष्ट्रीय विचार-गोष्ठी आयोजित साहित्यिक दस्तावेज हैं ‘डॉ मानव’ के दोहे : डॉ एचएस बेदी

 रामनिवास रणघोष अपडेट. नारनौल


डॉ रामनिवासमानवहिंदी के प्रतिमानक दोहाकार हैं तथा इन्होंने दोहा विधा को नये आयाम दिये हैं। यह कहना है हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला के कुलाधिपति डॉ एचएस बेदी का। डॉमानवके नवप्रकाशित तथा विश्व के प्रथम कोरोनाकेंद्रित दोहासंग्रहबदल गये दस्तूरपर आयोजितवर्चुअलअंतरराष्ट्रीय विचारगोष्ठीमें बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए उन्होंने कहा कि कोरोनाकाल की संपूर्ण विभीषिका कोबदल गये दस्तूरसंग्रह के दोहों में प्रामाणिक अभिव्यक्ति मिली है। अतः कहा जा सकता है कि अपने युग का साहित्यिक दस्तावेज हैं डॉमानवके दोहे।डॉ मानवको एक संवेदनशील सर्जक और सामाजिक सरोकारों के प्रति प्रतिबद्ध रचनाशिल्पी बताते हुए बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय, रोहतक (हरि) के कुलपति डॉ रामसजन पांडेय ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि उनके दोहे लोकजागरण के, लोकचित्त के परिष्कार के और लोकचित्त के विस्तार के दोहे हैं, जो अपने परिवेश के समूचे यथार्थ को, संकेतों के माध्यम से, हमारे सामने उजागर करते हैं। महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय, कैथल (हरि) के कुलपति डॉ श्रेयांश द्विवेदी तथा सिंघानिया विश्वविद्यालय, पचेरी बड़ी (राज) के कुलपति डॉ उमाशंकर यादव ने एक सार्थक दोहासंग्रह के प्रकाशन पर डॉमानवको बधाई देते हुए कहा कि वह अपने परिवेश के कुशल चितेरे हैं तथा इनके दोहों में कोरोनाकाल का सम्पूर्ण वैश्विक परिदृश्य बखूबी झलकताझांकता दिखाई पड़ता है। इनके दोहे अपने समय का साहित्य भी हैं और इतिहास भी।  अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, नारनौल (हरि) के जिला अध्यक्ष डॉ जितेंद्र भारद्वाज द्वारा प्रस्तुत प्रार्थनागीत के उपरांत डॉ पंकज गौड़ के कुशल संचालन में संपन्न हुई इस विचारगोष्ठी में ट्रस्ट की अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमप्रभारी और दिल्ली की वरिष्ठ कवयित्री उर्वशी अग्रवालउर्वीने विशिष्ट अतिथियों का स्वागत किया। तत्पश्चात् कवि डॉमानवने अपने   दोहालेखन की पृष्ठभूमि और अपनी रचनाप्रक्रियाको स्पष्ट किया, वहीं डॉ जितेंद्र भारद्वाज नेबदल गये दस्तूरसंग्रह के प्रतिनिधि दोहो का सस्वर पाठ कर संगोष्ठी को कवितामय बना दिया।

 इन्होंने पढ़े आलेख : इस महत्त्वपूर्ण विचारगोष्ठी में त्रिभुवन विश्वविद्यालय, कीर्तिपुर (नेपाल) की हिंदीप्रोफेसर डॉ श्वेता दीप्ति, वर्सा विश्वविद्यालय, वर्सा (पोलैंड) के हिंदीप्रोफेसर डॉ सुधांशु शुक्ल, स्वभोस एवं स्वाकम इनकॉर्पोरेशन, सैन डियागो (अमरीका) की पूर्व अध्यक्ष डॉ कमला सिंह, आबूधाबी (यूएई) की वरिष्ठ कवयित्री और शिक्षाविद् ललिता मिश्रा, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार में भाषा एवं ज्ञानविज्ञान विभाग के अध्यक्ष डाॅ दिनेश चमोलाशैलेशऔर बलटाना (पंजाब) के विख्यात कवि, लेखक और समीक्षक डॉ सुभाष रस्तोगी नेबदल गये दस्तूरदोहासंग्रह पर आलेख प्रस्तुत कर डॉमानवके दोहों की विस्तृत समीक्षा की। हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला के पूर्व निदेशक डॉ पूर्णमल गौड़और दिल्ली की वरिष्ठ साहित्यकार डॉ नीलम वर्मा ने, संभागी वक्ता के रूप में, अपने विचार व्यक्त किये।

 ये रहे उपस्थित : अपने ढंग की इस अनूठी और ऐतिहासिक विचारगोष्ठी में एक ओर जहां चार विश्वविद्यालयोंके कुलपतिकुलाधिपति उपस्थित रहे, वहीं दूसरी ओर विश्वबैंक, वाशिंगटन डीसी (अमेरिका) की अर्थशास्त्री डॉ एस अनुकृति, सिएटल (अमरीका) की वरिष्ठ कवयित्री डॉ मीरा सिंह, काठमांडू (नेपाल) की अंतरराष्ट्रीय हिंदीपत्रिकाहिमालिनीके प्रबंधसंपादक सच्चिदानंद मिश्र, मुंबई (महाराष्ट्र) के आयकर उपायुक्त सुरेश कटारिया, आईआरएस, गुजरात सिंधी अकादमी, अहमदाबाद (गुजरात) के पूर्व अध्यक्ष डाॅ हूंदराज बलवाणी, जगन्नाथ हिन्दी महाविद्यालय, तलश्शेरी (केरल) के प्रबंधनिदेशक डॉ पीए रघुरामचंडीगढ़ की सरोजिनी रस्तोगी, अलवर (राज) के वरिष्ठ कवि संजय पाठक, नेरटी (हिप्र) के रमेशचंद मस्ताना, हरियाणा में हिसार से डॉ राजेश शर्मा, डॉ जितेंद्र पानू, डॉ यशवीर दहिया, डॉ राजाराम दहिया, सदाचार टीवी की प्रभारी कुमारी दीक्षा, प्रवीण कुमारी, रमेश टांक, सुरेश सभ्रवाल और मुनीष कुमारी, भिवानी से विकास कायतसिवानी मंडी से डॉ सत्यवान सौरभ, नारनौंद से बलजीत सिंह और राजबालाराज‘, गुरुग्राम से  कमलेश शर्मा तथा नारनौल से ट्रस्टी डॉ कांता भारती, कृष्णकुमारशर्मा, एडवोकेट, प्रो हितेश कुमार, राजीव गौड़ और अमरजीत सिंहने अपनीउपस्थिति से तीन घंटों तक चली इस विचारगोष्ठी को विशिष्ट गरिमा प्रदान की।

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