भाजपा- जेजेपी- कांग्रेस पदाधिकारी- नेताओं को चला रहे फाइनेंसर, लाइजनर

रणघोष खास. सुभाष चौधरी

कहने को राजनीति समाजसेवा का चेहरा होती है असल में यह छिपा हुआ खुबसूरत कारोबार होता है। इसलिए पैसा पानी की तरह आता है और उसी अंदाज में खर्च होता है। कोई पूछने वाला नहीं की खर्च करने वालों का असल मकसद क्या है। भाजपा- जेजेपी- कांग्रेस ऐसे तीन राजनीतिक दल है जिसमें अच्छे खासे फाइनेंसर व लाइजनर पर्दे के पीछे  व सामने आकर पार्टी के एजेंडे को संचालित करते हुए नजर आएंगे। जिस कार्यकर्ता का आर्थिक पक्ष कमजोर है उसका काम चुपचाप आकर मीटिंग में कुर्सी पर बैठकर ताली बजाना है। ताली कैसे और किसके इशारे पर बजेगी यह मीटिंग का खर्च उठाने वाले या जिम्मेदारी लेने वाले के हिसाब से बजेगी। इसलिए पार्टी की मीटिंग या किसी भी आयोजन को गौर से देखिए उस समय सबसे ज्यादा सक्रिय वह शख्स नजर आएगा जिसका पार्टी की विचारधारा या समाजसेवा से कोई लेना देना नहीं है। इसमें अलग अलग कारोबार का कोई ठेकेदार, छोटा- बड़ा व्यवसायी, प्रोपर्टी डीलर होंगे। इन राजनीतिक दलों की मीटिंग में कार्यकर्ताओं की इतनी हैसियत नहीं है कि वे अपने खर्चें से आकर मीटिंग में खान पान की व्यवस्था को लेकर भी चंदा एकत्र करें। ऐसे में मीटिंग आयोजक की जिम्मेदारी उसे मिलती है जो होने वाले खर्चें को वहन करने की हैसियत रखता हो। जाहिर है जो नेता- पदाधिकारियों व पार्टी सेवा के नाम पर खर्च वहन करेगा उनकी फाइलें भी दौड़ती नजर आएगी। यह सब लिखना और बताना नई बात नहीं है। कोई छोटी- बड़ी पार्टी इससे अछूती नहीं है। फर्क इतना होता है कि जो सत्ता में होती है उसकी चमक दूर से ही नजर आती है। ऐसे में आमजन अपने दिलों दिमाग से यह भ्रम निकाल दें कि राजनीतिक पार्टी के कार्यालयों में सबकुछ सिस्टम से काम होता है।

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