मुझे गर्व है मेरे माता-पिता के संघर्ष पर

Logo

पढ़िए गांव गुगोढ़ के सरकारी स्कूल में 12 वीं की छात्रा दीपिका की कहानी


– सन् 2018 में भारतीय बाल संसद की जिला प्रतियोगिता में प्रथम स्थान हासिल किया।


पिताजी सड़क हादसे में घायल हो गए, दो साल घर रहे, आर्थिक स्थिति बिगड़ती चली गई लेकिन हिम्मत नहीं हारी 


रणघोष खास. दीपिका की कलम से


मेरा नाम दीपिका है।मेरे पिताजी का नाम सत्यपाल सिंह और माताजी का नाम रिंकू देवी है। इस समय मैं राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय गुगोढ की बारहवीं कक्षा की छात्रा हूं। मैंने दसवीं कक्षा में 85% अंक लिए थे। मेरे पिताजी महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से स्नातक हैं तथा मेरी माताजी दसवीं पास है। पिताजी ने सरकारी नौकरी नहीं मिलने के कारण निजी स्कूलों में अध्यापन कार्य किया ।कुछ समय बाद कम वेतन मिलने के कारण पिताजी ने अध्यापन कार्य छोड़ दिया और निजी कंपनियों में नौकरी शुरू की। सन् 2012 ईo में पिताजी के साथ एक बुरा हादसा हुआ जिसमें  पिताजी के सिर और हाथ में गंभीर चोट लगी। सिर में 25 टांके व दाएं हाथ में दो स्टील की रोड डाली गई थी।पिताजी के इलाज में ढेरों रुपया लगा, जिससे परिवार की हालत और दयनीय हो गई। डॉक्टरों ने कहा कि कोई चमत्कार ही उन्हें बचा सकता है और अंत में काल पर विजय प्राप्त कर पिताजी ठीक होकर घर लौटे। लगातार 2 साल तक पिताजी के घर में बैठे रहने से परिवार की आर्थिक हालात और बिगड़ गए क्योंकि परिवार में कमाने वाले पिताजी ही थे। इस कारण मेरी भी पढ़ाई प्रभावित हुई, लेकिन फिर भी मां ओर  मैंने हार नहीं मानी और अध्ययन के साथ-साथ मैंने अन्य सांस्कृतिक विधाओं में भी बढ़ चढ़कर भाग लिया। सन् 2018 ईस्वी में भारतीय बाल संसद की जिला प्रतियोगिता में मैंने प्रथम स्थान हासिल किया। इसी प्रकार सन् 2020ईस्वीं में स्वामी विवेकानंद ट्रस्ट द्वारा आयोजित जिला स्तरीय भाषण प्रतियोगिता में मैंने प्रथम स्थान हासिल किया। जिसमें स्थानीय विधायक, जिला पार्षद व अन्य अध्यापकगणों ने मुझे सम्मानित किया। अभी पिछले महीने मैंने एससीईआरटी द्वारा आयोजित डायट हुसैनपुर में हिंदी दिवस पर जिला स्तरीय भाषण प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। इन सब के पीछे मेरे गुरु राकेश शास्त्री, चंचल मैम और उनके साथ- साथ मेरे पिताजी ने भी मेरा उचित मार्गदर्शन किया। मैं स्वयं को भाग्यशाली समझती हूं कि मेरे पिताजी- माताजी मुझे पूरी तरह से सहयोग करते हैं। मेरा जीवन लक्ष्य है कि मैं अपने माता-पिता  के अधूरे सपनों को पूरा करु। अंत में मैं दैनिक रणघोष समाचार- पत्र के संपादक का धन्यवाद करती हूं कि जिन्होंने मेरी कथा को जनवाणी का रूप दिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *