;यह लेख महसूस करा रहा है तो प्लीज इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर जरूर करें

बहुत सस्ती हो गई हैं मौतें, कोई आवाज देकर तो देखे..


-कोई लक्ष्मण भविष्य में ऐसा कदम उठाने के लिए बेबस व हताश नहीं हो इसके लिए हर किसी को अपने अदंर राम जैसी मर्यादा जिंदा रखनी होगी। राम की जीवन यात्रा को आत्मसात कर लिजिए, आत्महत्याएं नहीं होगी  


IMG-20221214-WA0006[1]रणघोष खास. प्रदीप नारायण 

मौत का आना ओर उसे बुलाना अब बराबर सा होता जा रहा है। ऐसा लग रहा है कि मौतों की भी होमडिलीवरी डिमांड बढ़ती जा रही है। हरियाणा के रेवाड़ी जिला के गांव गढ़ी निवासी लक्ष्मण ने अपने तीन मासूम बच्चों व पत्नी को मानसिक तौर पर मौत का ऑर्डर लेने के लिए ना केवल राजी किया साथ ही पूरी गारंटी भी ली कि ऑर्डर कैंसिल नहीं होना जाना चाहिए। इसलिए लक्ष्मण परिवार के पांचों सदस्यों ने पहले रस्सी से एक दूसरे के पैर बांधे ताकि भरोसा बना रहे। कोई शक ना रहे एक दूसरे को जहरीला पदार्थ खिला दिया। इसके बाद भी मौत किसी बहाने से वापस ना लौट जाए इसके लिए गैस चूल्हे का बटन ऑन कर दिया। ऐसी मौत जिसे देखकर मौत भी थर्रा जाए वह इंतेजाम लक्ष्मण ने महज 100 गज के प्लाट को लेकर बड़े भाई से चल रही अनबन को हमेशा के लिए खुद को खत्म करने के लिए किया था। लक्ष्मण के इस आत्मघाती कदम ने मौत को बेहद सस्ती बना दिया है। ऐसा माहौल बनता या बनाया जा रहा है कि कोई आवाज देकर तो देखे मौत सरपट दौड़ी चली आती है। अस्पतालों में डॉक्टरों की लापरवाही से दम तोड़ते मरीज, सड़कों पर दौड़ती अनदेखी से हो रहे हादसों में छिन रही जिदंगी, कमजोर होता धैर्य, बिखरते संस्कार- मूल्य, टूटता अनुशासन मौत के गहने बनकर उसे सुंदर बना रहे हैं। क्या कोई ऐसा गांव या शहर का मोहल्ला जिंदाबाद है जो गर्व के साथ यह बता सके कि यहां मौतें इंसानी मयाद होने पर बेमन से आती है। यह संपूर्ण सत्य है कि मौत की कोई उम्र नहीं होती इसलिए वह कभी भी किसी भी समय कोई ना कोई बहाना बनाकर जिंदगी को बराबर की चुनौती देती आ रही है। पिछले कुछ सालों से तेजी से हो रहे सामाजिक- आर्थिक बदलाव ने तो एक तरह से मौत की बुकिंग करना शुरू कर दिया है। मानवता- इंसानियत तो अब मुर्दाघाट पर या धार्मिक स्थलों के लाउड स्पीकर से निकल रही अरदास में महज जिंदा रहने की रस्म निभाते नजर आती हैं। इंसानी जमात में इनकी जगह किसी चमत्कार की तरह हो गई है। ऐसे में लक्ष्मण परिवार जैसे हादसों से सभी को सबक लेते हुए इसे रोकने के लिए अपने स्तर पर कदम उठाने होंगे। यहा भी सरकार- प्रशासन एवं समाज एक जागरूक तबका ही इस पर मंथन करेगा। ऐसा सोचना ही सबसे बड़ी भूल होगी। सबसे पहले गांव गढ़ी में लक्ष्मण के पड़ोसियों को सबक लेना होगा उसके बाद गांव  में ऐसी घटना नहीं हो का माहौल बनाना होगा। इतना होने के बाद पड़ोसी गांवों को उस पर अनुसरण करना होगा। कोई लक्ष्मण भविष्य में ऐसा कदम उठाने के लिए बेबस व हताश नहीं हो इसके लिए हर किसी को अपने अदंर राम जैसी मर्यादा जिंदा रखनी होगी।

राम की जीवन यात्रा को आत्मसात कर लिजिए, आत्महत्याएं नहीं होगी   

श्रीराम के आचरण के चलते उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तमसंस्कृतका शब्द है। मर्यादा का अर्थ होता है सम्मान, न्याय परायण पुरुषोत्तम का अर्थ होता है। सर्वोच्च व्यक्ति श्रीराम ने कभी भी किसी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। उन्होंने हमेशा माता, पिता, गुरु का सम्मान और अपनी प्रजा का ध्यान रखा है। वह आदर्श पति,भाई और राजा के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने अपने कर्तव्य का भी समय और सही तरीके से पालन किया। जब समाज में छुआछूत की बात अधिक थी। यहां तक कि संत समाज भी छुआछूत को मानता था। तब श्रीराम ने भील समाज की शबरी के जूठे बेर खाए थे। वह समाज में संतुलन लाने के भी प्रतीक है। श्रीराम ने अपने पिता राजा दशरथ के आदेश को मानकर उन्हें स्पष्ट कर दिया था कि उनके लिए संपत्ति राजपाट नहीं बल्कि रिश्ते प्रमुख हैं। छोटे भाई भरत के लिए अयोध्या राज्य त्याग दिया। सौतेली माता केकई की इच्छा अनुसार 14 वर्षों तक अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वन में रहे। श्री राम के तीन भाई थे। तीनों के लिए एक आदर्श थे। भरत को राज्य देने के बाद भी छोटे भाई के प्रति प्रेम कम नहीं हुआ। वनवास के दौरान जब भी भरत राम जी से मिलने आते वह हमेशा एक बड़े भाई की तरह ही उनका मार्गदर्शन करते। श्रीराम हमेशा अपने कार्यों में व्यस्त रहने के बाद भी मातापिता और सीता को पर्याप्त समय देते थे। सीता जी की सुरक्षा खुद करते या लक्ष्मण को सौपते थे। श्री राम भले ही वनवास चले गए थे, लेकिन वह अपनी प्रजा के लिए चिंतित रहते थे। ऋषिमुनियों के साथ मिलकर अपनी राज्य की उन्नति पर चर्चा करते हैं। तो कभी अपने भक्तों को राक्षसों से मुक्ति दिलाने के लिए प्रयास करते रहते हैं। प्राचीन किवदंती है कि वनवास के बाद जब श्री राम अयोध्या के राजा घोषित हुए। तब उनके राज्य में कभी भी कोई चोरी डकैती नहीं होती थी। ना ही कोई भी भूख से मरता था। इसलिए वह एक आदर्श राजा भी थे। यही वजह है कि जब कुछ लोगों ने देवी सीता के चरित्र पर उंगली उठाई तो उन्होंने प्रजा की तरफ होकर फैसला लिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *