रणघोष की खास रिपोर्ट:

आधा सच झूठ से भी ज्यादा खतरनाक होता है,एक अधिकारी के साथ ऐसा ही किया


– सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्री ओमप्रकाश यादव- डीसी यशेंद्र सिंह के पास पहुंच रही आधी अधूरी जानकारी

– हर फाइल पर वसूली, डयूटी से नदारद रहने वाले कर्मचारी अपने मंसूबों में हो रहे कामयाब

–  जिला रजिस्ट्रार फर्म एवं सोसायटी में भ्रष्टाचार को खत्म करना शुरू किया तो मिली मानसिक प्रताड़ना

– इसी अधिकारी ने राज्य मंत्री ओमप्रकाश के एक साल पुराने मामले को एक माह में निपटा दिया


रणघोष अपडेट. रेवाड़ी  

आधा सच झूठ से भी ज्यादा खतरनाक होता है। शनिवार को बाल भवन में हुई जिला लोक संपर्क एवं कष्ट निवारण समिति की मीटिंग में एक अधिकारी के साथ ऐसा हीं हुआ। जिला उद्योग केंद्र के सहायक निदेशक एवं जिला रजिस्ट्रार फर्म एवं सोसायटी अनिल कुमार को जिन शिकायतों पर प्रताड़ित किया गया दरअसल वह पूरा सच नहीं था। समिति की मीटिंग में राज्य मंत्री एवं उपायुक्त के पास पहुंच रही शिकायतों में सही तथ्य की जगह सोची समझी साजिश के तहत जानकारी मुहैया करवाई गई थी। रणघोष ने इस पूरे मामले की पड़ताल की है। डीसी यशेंद्र सिंह से अनुरोध है कि वे जिला रजिस्ट्रार फर्म एवं सोसायटी अनिल कुमार के कार्यभार संभालने से पहले एवं उसके बाद की कार्यप्रणाली की निष्पक्ष जांच कराए तो दूध का दूध पानी का पानी सामने आ जाएगा।

  दरअसल जब से हरियाणा सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट-2012 पूरी तरह से लागू हुआ है रजिस्ट्रार फर्म एवं सोसायटी में लंबे समय से इस एक्ट की आड़ में छोटे- बड़े काम कराने के नाम पर खेल चलता आ रहा है। रेवाड़ी का जिला रजिस्ट्रार फर्म एवं सोसायटी विभाग इस मामले में पूरी तरह बदनाम हो चुका है। शायद ही कोई फाइल ईमानदारी के रास्ते से ओके होती है । इसकी वजह लोगों को इस एक्ट के बारे में जानकारी ना के बराबर होती है। वे इसे अनावश्यक तनाव व झंझट मानकर चलते हैं। लिहाजा इसी का फायदा उठाकर लंबे समय से सीट पर काबिज अधिकारी एवं कर्मचारी हर रोज फाइलों को पूरी करने के नाम पर अच्छी खासी कमाई कर रहे थे। इन कर्मचारियों की संपत्ति की जांच की जाए तो कई करोड़ों का खेल सामने आ सकता है। अब आते हैं जिला रजिस्ट्रार फर्म एवं सोसायटी अनिल कुमार की कार्यप्रणाली पर।  नवंबर 2021 में उन्होंने कार्यभार संभाला। उनके पास रेवाड़ी के साथ साथ महेंद्रगढ़ का अतिरिक्त कार्यभार है। स्टाफ के नाम पर उनके पास दो क्लर्क, एक डाटा एंट्री ऑपरेटर एवं एक स्टैनो है। एक सहायक अक्सर छुटटी पर रहता है। लीगल मामले व हजारों फाइलों को अपडेट रखने के लिए साथ ही राइट टू सर्विस एक्ट के तहत समय पर काम करवाने के लिए  कम से कम 15 कर्मचारियों का स्टाफ होना जरूरी है। इसके बावजूद रिकार्ड के मुताबिक अनिल कुमार ने कई सालों से विचारधीन विवादित मामलों को काफी हद तक नियमानुसार खत्म कर दिया। ये मामले उनके आने से पहले सेवा शुल्क नहीं मिलने की वजह से अटका रखे थे। अनिल कुमार पर अभी तक एक भी ऐसा आरोप साबित नहीं हो पाया जिसमें नियमों की अवहेलना की गई हो या भ्रष्टाचार की बू आ रही थी। कमाल की बात यह है कि दिनभर जो भी फाइलें नियमानुसार ओके हो रही थी उसकी तुरंत जानकारी भ्रष्ट कर्मचारियों के माध्यम से उस व्यक्ति तक पहुंच जाती थी जो सेवा शुल्क के खिलाफ था। ऐसा करने के पीछे उस व्यक्ति को अपने विश्वास में लेना था कि उनकी वजह से यह फाइल ओके हुई है।

जिन मामलों में प्रताड़ित किया वह कोर्ट में विचाराधीन व स्टेट रजिस्ट्रार के पास थे

कष्ट निवारण समिति की मीटिंग में जिस तीन मामलों में अधिकारी अनिल कुमार को जिम्मेदार मानते हुए मानसिक तौर पर जनता के सामने प्रताड़ित किया उसका सच कुछ ओर ही है। गुरु रविदास मंदिर एवं हॉस्टल का मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है। ऐसे में अगर वे चुनाव प्रक्रिया पूरी करवाते हैं तो कोर्ट की अवमानना के निशाने पर आ सकते हैं। इसलिए इस मामले में देरी हो रही थी। अब वे कष्ट निवारण समिति के दिशा निर्देश पर चुनाव कराएंगे। ऐसे में अनिल कुमार की कहां गलती है। दूसरा मामला भगवान परशुराम शिक्षा समिति के चुनाव का है। यह मामला स्टेट रजिस्ट्रार के पास विचाराधीन है। कुछ बिंदुओं पर आपत्ति थी जिसे समय पर अनिल कुमार ने फाइल में दर्ज करा दिया था। अनिल कुमार का कहना था कि वोटर सूची पूरी तरह से सत्यापित नहीं थी। इसी वजह से चुनाव में देरी हो रही थी। अगर वे बिना सत्यापन के चुनाव प्रक्रिया को आगे बढ़ाते तो आगे चलकर यह चुनाव विवादित होकर लंबे समय तक टल जाता था जिसका नुकसान समिति को ही होता। इस सच को अनदेखा किया गया। तीसरा मसला विधवा पेंशन से संबंधित था। कायदे से यह मामला विभाग रूल एवं  हैड आफिस के दिशा निर्देश पर 10 मार्च को विभाग के पास आया था। कागजी कार्रवाई भी समय पर चल रही थी। एक  सोची समझी योजना के तहत इसे परिवारवाद में शामिल कर लिया गया जबकि कायदे से ऐसे मामले कष्ट निवारण समिति की मीटिंग के दायरे में नहीं आते।

बिना आरोप साबित हुए अधिकारी को प्रताड़ित करना गलत परपंरा

कष्ट निवारण समिति की मीटिंग में जिस तीन मामलों के आधार पर अनिल कुमार को जनता की मौजूदगी में प्रताड़ना झेलनी पड़ी उसकी सही जानकारी मीटिंग के अध्यक्ष ओमप्रकाश एवं जिला उपायुक्त यशेंद्र सिंह के पास नहीं पहुंचाई गईं। आनन फानन में शोर मचाकर राजनीति कारणों से जनता के दरबार में एक अधिकारी को दोषी तरह माना गया।

 शहर की अनेक सोसायटी के शांति पूर्वक ढंग से हुए चुनाव

जिला रजिस्ट्रार फर्म एवं सोसायटी अनिल कुमार के कार्यकाल में ना केवल काम के नाम पर घूसखोरी खत्म हुई साथ ही सिस्टम के प्रति भी विश्वास काम हुआ। यही वजह है कि जो काम बिना शुल्क के आगे नहीं बढ़ता था वह स्वत: रफ्तार पकड़ रहा था। महाराजा अग्रसेन समिति, अरावली हाईटस समिति, अग्रवाल समाज, ब्राहाण सभा, भगवत भक्ति आश्रम के शांति पूर्वक चुनाव हुए।

 कायदे से जिला स्तर पर कोई मामला विचाराधीन नहीं है

कायदे से जिला रजिस्ट्रार फर्म एवं सोसायटी के पास वर्तमान में कोई मामला विचारधीन नहीं है। जिन चार संस्थाओं को लेकर विवाद है वह स्टेट रजिस्ट्रार एवं हाईकोर्ट में चल रहे हैं। उनकी गाइड लाइन पर ही जिला रजिस्ट्रार कार्रवाई को आगे बढ़ा सकता है। इन मामलों में दो उपरोक्त कष्ट निवारण समिति की मीटिंग में रखे गए एक मामला बाबा मुक्तेश्वर पीठ कोसली से संबंधित है।

इसी अधिकारी ने राज्य मंत्री ओमप्रकाश के एक साल पुराने मामले को एक माह में निपटा दिया

कमाल की बात देखिए जिस अधिकारी अनिल कुमार को राज्य मंत्री ओमप्रकाश ने भीड़ के शोर को सच समझकर प्रताड़ित किया। इसी अधिकारी ने जुलाई 2021 में जब नारनौल का कार्यभार संभाला था। उन्हीं से संबंधित एक साल पुराने मामले को एक माह में निपटा दिया था। राज्य मंत्री ओमप्रकाश यादव  नारनौल में यादव सभा के प्रधान थे। उनकी दावेदारी को चुनौती मिली हुई थी। एक साल से यह मामला विचाराधीन था। अनिल कुमार ने इस मामले को नियमानुसार एक माह में निपटा दिया। अब यही राज्य मंत्री भरी मीटिंग में कह बैठे कि आपको अधिकारी किसने बना दिया।

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