रणघोष की चौपाल पर पंचायत की चौधर की ग्राउंट रिपोर्ट

70 फीसदी प्रत्याशी एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए लड़ रहे चुनाव


-कुछ जगह तो घरों में ही भाई भाई एक दूसरे के खिलाफ


– 80 प्रतिशत उम्मीदवार चुनाव के समय पैदा होते हैं, मतदान के बाद गायब


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


हरियाणा में हो रहे पंचायत चुनाव की गरिमा गांव स्तर पर गिरती जा रही है।  मोटे तोर पर तैयार किए गए सर्वे के मुताबिक सरपंची के चुनाव में 70 प्रतिशत प्रत्याशी एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। उन्हें अपने गांव के विकास से कोई लेना देना नहीं होता। वे महज चुनाव के कुछ दिन पहले पैदा होते हैं और अपने छिपे हुए एजेंडे को साम दंड भेद के रास्ते पूरा करने में लग जाते हैं। कुछ जगह तो एक ही परिवार में आपसी विवाद ही पंचायत चुनाव में एक दूसरे के खिलाफ खड़े होने के लिए मजबूर कर देती है। लिहाजा अधिकतर गांवों में पंचायत  चुनाव में आपसी भाईचारा नजर आने की बजाय आपसी गुटबाजी, एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी, टीका टिप्पणी, आपसी चौधराहट एवं नीचा दिखाने की शक्ल ले रहा है। इसी दरम्यान कुछ जगहों से निर्विरोध पंचायत बनने की खबरें कुछ हद तक पंचायत की गरिमा को बचाती हुई नजर आती है लेकिन इस तरह के प्रयास ऊंट के मुंह में जीरा से भी कम सामने आ रहे हैं। ऐसी स्थिति में बड़े बुजुर्गों की भूमिका भी कमजोर नजर आ रही है। वे भी निष्पक्ष निर्णय की भूमिका में खुद केा खड़ा करने में असहाय नजर आ रहे हैं। सबसे गौर करने वाली बात यह है कि  जिला पार्षद, पंचायत समिति सदस्य, सरपंच एवं पंच पद के लिए चुनाव लड़ने वालों में 80 प्रतिशत से ज्यादा चुनाव के समय पैदा होते हैं और हारने के तुरंत वहीं लौट जाते हैं जहां से आए थे। ऐसे उम्मीदवारों में अधिकांश की भूमिका एक दूसरे को नीचा दिखाने या पुरानी रजिंश के चलते मतदाताओं का इस्तेमाल कर बदला लेने की होती है। चुनाव में जातिगत समीकरण पूरी तरह से हावी है। स्थिति यहां तक पहुंच चुकी है कि एक जाति विशेष में दो उम्मीदवार खड़े हो रहे हैं तो वे गौत्र के आधार पर वोट लेने के प्रयास में एक दूसरे को पूरी तरह से बांट रहे हैं।

चुनाव में जोड़ने ओर त्याग करने वाले हमेशा सम्मान पाते हैं

पंचायत चुनाव की खास बात यह है कि जो उम्म्मीदवार गांव के मौजिज लोगों के कहने पर या परिवार- वार्ड या आपसी भाईचारे को बनाए रखने के लिए चुनाव लड़ने से मना कर देता है या नामाकंन वापस ले लेता है। उसका सम्मान जीतने वाले से ज्यादा कायम हो जाता है। पिछले चुनाव में जिसने भाईचारे को बनाए रखने के लिए चुनाव नहीं लड़ा उन्हें इस चुनाव में सबसे ज्यादा इज्जत की नजरों से देखा जा रहा है और उनकी बातों को पूरा वजन भी मिलता है।

स्पष्ट ना कहकर कई नावों में सवारी करने वाले वोटर सबसे खतरनाक

चुनाव में अपनी बात को स्पष्ट तौर पर ना रखकर चालाकी एवं छल कपटी से सभी उम्मीदवारों को गुमराह करने अपने हितों  को पूरा करने वाले वोटर सबसे ज्यादा खतरनाक है। ये वो वोटर होते हैं जिसकी गांव की सामाजिक और भाईचारा बनाए रखने में कोई भूमिका नहीं होती। उनका मकसद आपस में प्रत्याशियों को एक दूसरे के खिलाफ भड़का अपने हितों को पूरा करना होता है। हालांकि बाद में हकीकत सामने आने पर उन्हें शर्मिंदगी भी उठानी पड़ती है लेकिन वे काफी हद तक गांव के सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाने में सफल हो जाते है। गांव में उनकी पहचान तोड़ने वालों के तोर पर बनी रहती है।

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