रणघोष की सीधी सपाट बात : अपने आस पास चेहरों को पहचाने राव, नहीं तो होगी बड़ी परेशानी

रणघोष खास. सुभाष चौधरी

 पिछले कुछ समय से केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के नाम का अलग अलग मकसद से गलत व अनैतिक कार्यों में इस्तेमाल करने के मामले सामने आ रहे हैं। कुछ सार्वजनिक हो गए तो कुछ अभी तक छिपे हुए है या उन्हें किसी तरह उजागर नहीं होने दिया गया। कुछ दिन पहले रेवाड़ी जिले के गांव डवाना में जमीन पर अवैध कब्जे को लेकर हुई खूनी हिंसा में मुख्य आरोपी सज्जन यादव के खिलाफ मामला दर्ज हुआ जो घटनास्थल पर बंदूक के साथ नजर आया। एक साल पहले हुए चुनाव में यही सज्जन वार्ड 14 से जिला पार्षद के चुनाव में खड़ा हुआ था और खुद को राव समर्थक बताकर जमकर प्रचार भी किया। बेहद कम अंतर से वह चुनाव हार गया। अगर जीत जाता तो उस समय के मौजूदा समीकरण में जिला प्रमुख भी बन सकता था। इसी तरह राव का नाम लेकर अधिकारियों को धमकाने की घटनाओं का विडियो भी वायरल होता रहा है। कुछ मामले अलग अलग कारणों से दबे हुए हैं। मौखिक तौर पर सभी के पास इसकी सूचनाएं हैं लेकिन आधिकारिक तौर पर सामने आते ही विस्फोट स्थिति बन जाए तो बड़ी बात नहीं होगी।

 अब सवाल उठता है कि इस तरह के मामलों में राव इंद्रजीत सिंह कहां गलत है। क्या वे लोगों से मिलना बंद कर दें। कोई उनके नाम का पोस्टर या बैनर लगाए तो उसे रोक दे। इस स्थिति में राव की छवि पर हमला करना तर्कसंगत नहीं है। लगातार सामने आ रहे इस तरह के मामलों में चुप रहना ओर अनदेखा करना जरूर राव इंद्रजीत सिंह के लिए आने वाले दिनों में परेशानी बन सकता है। इस तरह के मामले सामने आने से यह जरूर साबित हो रहा है कि अब राजनीति में वैचारिक कार्यकर्ता एवं समर्थकों से ज्यादा अवसरवादी एवं बाजारू कार्यकर्ताओं की तादाद ज्यादा बढ़ रही है। कमाल की बात यह भी है कि घटना होने से पहले तक इस तरह के कार्यकर्ता सबसे ज्यादा अपने नेता के बेहद करीबी होने का दावा करते हुए मीडिया में विज्ञापनों एवं आयोजक के तौर पर सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरते हैं। दूसरी भाषा में कहे तो कार्यकर्ता व समर्थकों के नाम पर ऐसी जमात राजनीति में अपनी जगह बनाती जा रही है जो अपने अवैध एवं अनैतिक क्रिया कलापों एवं धंधों को बचाने एवं सुरक्षित करने के लिए असरदार नेताओं की छाया का इस्तेमाल कर रहे हैं। कोई भी राजनीतिक दल इससे अछूता नहीं है। इस स्थिति में जिम्मेदार एवं जवाबदेह नेताओं को चाहिए कि वे समय रहते अपने आस पास मंडराने वाले समर्थकों एवं कार्यकर्ताओं की जांच परख का पैमाना भी बना ले। यहां की गई अनदेखी उनकी सालों से संभाली हुई साख को धूमिल कर सकती है।

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