रणघोष की सीधी सपाट बात : एम्स बने ना बने चुनावी जिन्न जरूर बन गया,होना कुछ नहीं, प्रोपर्टी डीलर्स अपना खेल कर गए, जय राम जी की ..

रणघोष खास. सुभाष चौधरी

पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जुबान से निकला मनेठी एम्स, फिर प्रशासन एवं स्थानीय नेताओं एवं मंत्रियों के दावों में नजर आया माजरा- भालखी एम्स। हकीकत में एम्स को नहीं पता कि उसके नहीं बनने की असली बीमारी का इलाज किसके पास है। हरियाणा- केंद्र में भाजपा सरकार के नेता एम्स को लेकर दावों की किताब लिख चुके हैं।  अधिकारियों की टीम टूर या मीटिंग के नाम पर लाखों- करोड़ों रुपए खर्च कर चुकी है।  इतना ही खर्च यहां के ग्रामीणों ने एम्स को जमीन पर उतारने के लिए किए गए संघर्ष में कुर्बान कर दिया। मीडिया ने सैकड़ों पेज- कोरे दावों पर काले कर दिए। रणघोष पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि मीडिया में पक्ष- विपक्ष के नेताओं के दावों पर भरोसा करना ठीक उसी तरह है जिस तरह कोविड-19 से बचने के लिए बिना मास्क व दो गज की दूरी वाले पर यह विश्वास जताना कि वह अपना है कुछ नहीं होगा। ईमानदारी से मंथन करिए सोचिए ओर सवाल करिए। एम्स की घोषणा किसने की,  कौन पीछे हटे, फिर आगे आए, फिर एलान किया, हलचल मचाई, घोषणा के नाम पर लड्‌डू बांटे। करीब 7 साल से  इस परियोजना के नाम पर यह ड्रामा नहीं तो क्या है। कौन रोक रहा है कि एम्स नहीं बने। किसानों ने अपनी जमीन उसी भाव दी जो नेता- सरकार चाहती थी। जब नारनौल-रेवाड़ी एनएच-11 बनाने के लिए एनएचएआई अधिकार की तरह जमीन अधिग्रहित कर सकती है तो एम्स जमीन को लेकर इतनी देरी क्यों है।

पूरी तरह से बिखर चुकी है एम्स संघर्ष समिति

जिस एम्स को लेकर एम्स संघर्ष समिति का गठन हुआ था वह मौजूदा हालात में पूरी तरह से बिखर चुकी है। इस समिति को ना तो जिला प्रशासन मीटिंग में बुलाता है ओर नहीं सरकार के मंत्री या नेता। चूंकि एम्स माजरा- भालखी में बनना है। इसलिए इन गांवों के कुछ जिम्मेदार लोगों को अपडेट जानकारी के लिए जरूर याद कर लिया जाता है। समिति में भी अलग अलग धड़े बन चुके हैं। अब ऐसा लगता नहीं कि संघर्ष को लेकर जो उत्साह एवं जोश शुरूआती चरण में था वह वापस कायम हो पाएगा। राजनीति कारणों से एम्स सदस्य अलग अलग खेमों में बंट चुकी हैं।

जरूरी नहीं है कि जिसने जमीन के लिए स्वीकृति दी वह उस पर कायम रहेगा

माजरा-  भालखी में प्रस्तावित एम्स को लेकर स्थानीय किसानों ने अपनी 290 एकड़ जमीन को देने के लिए पोर्टल पर अपलोड जरूर कर दिया है लेकिन यह जरूरी नहीं है कि वे जमीन अधिग्रहण तक अपनी बात पर कायम रहेंगे। जिस तरह डीलरों ने अधिग्रहित की जाने वाली जमीन के आस पास की जमीनों को सरकार द्वारा दिए जाने वाले मुआवजे से अच्छे खासे रेट पर खरीदने के लिए जो हलचल मचाई हुई है उससे इन किसानों का दिमागी संतुलन इधर उधर होने लगा है। ये खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। ऐसे में जब तक जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया बिना किसी विवाद के पूरी नहीं हो जाती यह कहना किसी सूरत में संभव नहीं होगा कि यहां एम्स बनेगा।

मीडिया में हकीकत से परे हुआ प्रचार

मीडिया में वाही वाही लूटने के लिए इस परियोजना का हकीकत के परे प्रचार किया गया। नेताओं ने अपनी वाही वाही लूटने, डीलरों ने अपने इरादों को पूरा करने के लिए सही बात रखने की बजाय एम्स की आड में अपने हितों को आगे रखा। अधिकारियों की मजबूरी यह है कि वे ट्रांसफर होते रहते हैं और राजनीति दबावों में किसी भी तरह कागजी कार्रवाई को पूरा करने में जुटे दिखते हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं इधर उधर जा सकता है एम्स

इसमें कोई दो राय नहीं कि एम्स माजरा- भालखी से भी इधर उधर हो सकता है। इसकी चार से पांच प्रमुख वजह है। सरकार की ऐसी कोई मजबूरी नहीं कि एम्स माजरा- भालखी में जमीन खरीदकर बनाए। वह दक्षिण हरियाणा के किसी भी जिले में सरकारी- पंचायती जमीन पर बना सकती है। कई पंचायतें इसके लिए प्रस्ताव दे चुकी हैं।  इस पर स्थानीय लोगों को छोड़कर किसी को विरोध नहीं होगा।  इससे सरकार की जमीन अधिग्रहण व अनावश्यक बजट की सिरदर्दी खत्म हो जाएगी। दूसरा भाजपा में दो धड़े बने हुए हैं। वे नहीं चाहते कि इस परियोजना का श्रेय कोई खास नेता ले जाए। तीसरा लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में अभी समय है। 2019 चुनाव तक एम्स को लटाकर भाजपा नेता इसका फायदा  लेने में कामयाब गए थे। वे चाहते हैं किसी तरह यह परियोजना आने वाले चुनाव तक इसी तरह हिचकिले लेती रहे ताकि चुनाव के समय एम्स को जिन्न की तरह बाहर निकालकर जनता का फिर भरोसे जीत ले। वर्तमान में रेवाड़ी- महेंद्रगढ.- गुरुग्राम जिले में भाजपा काफी मजबूत है। भाजपा के कुछ नेताओं का कहना है कि  ऐसे में इस परियोजना को इन जिलों में कहीं  स्थापित कर दे तो उसे ज्यादा नुकसान नहीं होगा।

 एम्स बावल से बाहर चला गया तो डॉ. बनवारीलाल के लिए होगी चुनौती

राज्य के कैबिनेट मंत्री डॉ. बनवारीलाल लगातार एम्स को लेकर प्रयासरत है। वे चाहते हैं कि एम्स उनके क्षेत्र में कही भी बन जाए। इस पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं। इसलिए माजरा- भालखी के अलावा भी बावल विधानसभा के कुछ गांवों में भी जमीन की तलाश हुई थी। अगर एम्स किसी कारणवश इधर उधर हो जाता है तो डॉ. बनवारीलाल के लिए काफी चुनौती रहेगी। केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह गुरुग्राम लोकसभा सांसद है। इसलिए गुरुग्राम- मेवात व रेवाड़ी जिले में यह परियोजना घूमती है तो राजनीति कारणों से उनकी मूक स्वीकृति रहेगी। भाजपा में राव विरोधी एक बड़ा धड़ा चाहता है कि इस परियोजना का श्रेय किसी सूरत में राव को नहीं मिलना चाहिए। यह केंद्र या राज्य सरकार का प्रयास है।

एम्स बने या नहीं बने प्रोपर्टी डीलर्स अपना खेल कर गए

पहले मनेठी में एम्स को लेकर एलान हुआ तो मनेठी के आस पास मिटटी के टिबो के रेट भी आसमान पर पहुंच गए। डीलर्स ने तरह तरह के सपने दिखाकर कौड़ी के भाव की जमीन को अनाप शनाप रेटों में बेचकर जमकर चांदी कूटी। यही स्थिति माजरा- भालखी में एम्स बनने की संभावनाओं के चलते हुआ। कमाल देखिए जो एम्स की लड़ाई लड़ रहे हैं उसमें आधे से ज्यादा प्रोपर्टी डीलर्स का काम भी करते हैं। वे बड़ी चतुराई से अपना काम कर रहे हैं। नतीजा एम्स बने या नहीं बने इन डीलरों ने इस परियोजना के नाम पर अपना खेल जरूर कर गए।

एम्स अब चुनाव का जिन्न बन गया है ओर कुछ नहीं

किसी भी परियोजना को शुरू होने या नहीं होने की स्थिति को समझने के लिए छह-सात साल बहुत होते हैं। यह कोई विवादित या धार्मिक-जाति से जुड़ा मुददा नहीं था जिसके इतिहास को लेकर अलग अलग मत थे। एक परियोजना थी जिसका बजट भी केंद्र सरकार जारी कर चुकी है। यहां के स्थानीय नेताओं एवं सरकार चलाने वाले नेताओं के सुरों का आपस में नहीं मिलना भी एम्स नहीं बनने की बड़ी वजह रहा। जहां तक विपक्ष का सवाल है। उसने अपनी जिम्मेदारी निभाई लेकिन वह भी इतनी मजबूती व विश्वास कायम नहीं कर पाया है जिस पर जनता आगे आकर उसका नेतृत्व स्वीकार कर सके।

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