रणघोष की सीधी सपाट बात: मीडिया ने भी फ्री के नाम पर अच्छे खासे इंसान को भिखारी बना दिया

रणघोष खास. एक पत्रकार की कलम से


कोविड-19 के हमलों में डिजीटल मीडिया भयंकर तरीके से छोटे- बड़े स्तर पर बेहद मजबूत हुआ है। वह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे इसके लिए वाटस ग्रुप, ऐप अन्य डिजीटल माध्यमों को सहारा लिया जा रहा है। हालात यह हो गए कि लोगों तक हर पल घटने वाली खबरें तुरंत प्रभाव से उनके मोबाइल पर पहुंचने लग गईं। यहां तक की लोकल एवं छोटे- बड़े मीडिया में खुद को स्थापित करने का संघर्ष पैदा हो गया। जिन खबरों को लगवाने के लिए लोग अखबार कार्यालयों के चक्कर लगाते थे। आपसी होड़ में प्रेस नोट बनाकर खुद को पत्रकार मानने वाले खबरों की होम डिलीवरी करने लग गए। यह उनकी मजबूरी थी जिसका छपास रोगी जमकर फायदा उठा रहे हैं। हालात यह है कि मीडिया में छपने के शौकीनों के अच्छे दिन आ चुके हैं लेकिन मीडिया के वजूद को जिंदा रखने वाले संघर्ष में आ चुके हैं। वजह वे भूल गए कि इस देश के लोगों की  मानसिकता फ्री के नाम पर भिखारी से ज्यादा बदतर है। अगर सड़क पर गलती से डीजल- पेट्रोल से भरा टैंक पलट जाए तो वे बिखरे तेल की चारों तरफ नाकेबंदी करने की बजाय उसे लेने लिए दौड़ पड़ेंगे वे भूल जाएंगे कि अगर गलती से माचिस की तीली जल उठी तो यह तेल उन्हें खाक कर देगा। हमारे देश के सफल व चतुर नेता वहीं हैं जो चुनाव में फ्री के नाम पर शानदार घोषणा पत्र जारी कर मतदाताओं की मानसिकता को भिखारी बनाने में कामयाब हो जाते हैं। देश की मानसिकता को सुधरने में एक लंबा समय लगेगा वजह जिस पर जिम्मेदारी है वह खुद फ्री के मास्टर ब्रांड है। कोई पूछने, चिल्लाने एवं आंदोलन करने वाला नहीं है कि आखिर यह फ्री होता क्या है। कहां पैदा होता है और कैसे यह हमारे जीवन, हालात, समाज एवं राष्ट्र को मजबूत कर सकता है। याद रखिएगा अगर कोई आपको फ्री के नाम पर अपने विश्वास में लेना चाहता है तो तुरंत समझ जाइए कि वह आपके पतन का शिलान्यास करने जा रहा है। फ्री मीठे जहर से भी खतरनाक है जो धीरे धीरे आपके संघर्ष एवं मेहनत करने की क्षमता को खत्म कर देगा। आप पथ भ्रष्ट हो जाएंगे। अगर सच में खुद को बेहतर इंसान साबित करना चाहते हैं। परिवार- समाज एवं राष्ट्र को मजबूत देखना चाहते हैं तो एक दूसरे की मेहनत का सम्मान करे। अगर किसी अखबार के प्लेटफार्म का उपयोग करते हैं तो उसका नियमित पाठक बनिए।  एक दूसरे का उपयोग करिए इस्तेमाल नहीं। मत भूलिए हर घर में चूल्हा है। इसके बावजूद भी मानसिकता नहीं बदलती है तो उसकी हालत उस जंग खाए लोहे की हो चुकी है जो किसी कबाड़ खाने में पड़ा हुआ किसी लुहार के हथौड़े का इंतजार कर रहा है ताकि वह जिंदा हो सके। हमें पूरा विश्वास है इस लेख का कोई असर पड़ने वाला नहीं है। नसों में दौड़ रहे खून में फ्री के जहर को निकलना आसान नहीं है।

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