रणघोष खास में पढ़िए : केजरीवाल-नीतीश दोनों ही पीएम दावेदार, फिर यह कैसी दोस्ती?

रणघोष खास. मधुरेंद्र सिन्हा राजनीति 

अचानक ही ऐसा क्या हुआ कि अरविंद केजरीवाल देश की सभी पार्टियों के नेताओं से गलबहियां करने लगे। उन नेताओं से खुले दिल से मिलने लगे जिन्हें वह पानी पी-पीकर कोसते थे। वह कांग्रेस जिसे सबसे भ्रष्ट बताते थे और शीला दीक्षित जैसी नेताओं को जेल भेजने की धमकी देते थे, अब उस पार्टी पर भी केजरीवाल का प्यार उमड़ आया है। इसी क्रम में वह बिहार के उप मुख्य मंत्री तेजस्वी यादव की भी तारीफ करने लगे जिनके पिता लालू यादव को महा भ्रष्टाचारी बताने में वह कोई कसर नहीं छोड़ते थे। वहां के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार जो बीजेपी से अलग होने के बाद अब अपने को भारत के प्रधान मंत्री पद का दावेदार मानने लगे हैं, उनसे भी वह दिल खोलकर मिले। केजरीवाल ने सभी की बुराई माफ कर दी, सारे गिले-शिकवे दूर कर दिये और राजनीति का एक नया अध्याय लिखने बैठ गये हैं। दो राज्यों में आम आदमी पार्टी का शासन होने और पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने के बाद अरविंद केजरीवाल एक नये धरातल पर दिखते हैं। वह न केवल अपने को भारत के प्रधानमंत्री पद का दावेदार मानने लगे हैं बल्कि उसके लिए प्रयासरत भी हैं। वह सभी दलों के नेताओं से मिल रहे हैं और अपने को सर्वोत्तम विपक्षी उम्मीदवार जाहिर करने लगे हैं। 

दूसरी ओर बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार भी अपने को इस पद का दावेदार मानते हुए देश में विचरण कर रहे हैं। उनकी समस्या है कि बीजेपी से अलग होने के बाद उन्होंने आरजेडी से समझौता किया। आरजेडी की शर्त बहुत स्पष्ट थी कि नीतीश मुख्यमंत्री पद की गद्दी तेजस्वी यादव के लिए छोड़ देंगे। लेकिन वह प्रधान मंत्री पद की दावेदारी लेकर भारत भ्रमण पर निकल पड़े हैं। इसी क्रम मे वह दिल्ली में अरविंद केजरीवाल से भी मिले। अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि वह केन्द्र सरकार के अध्यादेश के विरोध में विपक्ष को एकजुट करना चाहते हैं। लेकिन यह आधा सच है। पूरा सच यह है कि वह प्रधान मंत्री पद के गंभीर दावेदार बनना चाहते हैं और इसके लिए वह सारा देश घूम रहे हैं। लेकिन नीतीश कुमार से पींगें बढ़ाने के पीछे उनके दो और मकसद है। पहला तो यह कि दिल्ली में रह रहे लगभग 20 लाख बिहारियों को पूरी तरह से अपने पाले में लेने के लिए बेताब हैं। दिल्ली की राजनीति में बिहारियों की भूमिका बढ़ती जा रही है क्योकि उनकी जनसंख्या भी बढ़ती जा रही है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने कई सीटें बिहारी बहुल इलाकों में जीती हैं और अब केजरीवाल इसका फायदा लोक सभा चुनाव में उठाना चाहते हैं। लोक सभा की 7 सीटों में कम से कम दो सीटें ऐसी हैं जिन पर बिहारियों की अच्छी खासी आबादी है। उनकी नजरों में वे दोनों सीटें भी हैं। वे चाहते हैं कि इन सीटों पर उन्हें सफलता मिले। दिल्ली में बीजेपी का घटता प्रभाव और उपयुक्त नेतृत्व की कमी उनकी राह आसान बना सकती है। नीतीश कुमार और तेजस्वी से गले मिलकर वह बिहारियों पर अपना प्रभाव और बढ़ना चाहते हैं। यह एक बड़ा वोट बैंक है और इस पर धावा बोलने के लिए वह कुछ भी कर सकते हैं।इस समय केजरीवाल भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे हुए हैं और उनके विश्वस्त साथी (शराब घोटाला कांड में) मनीष सिसोदिया जेल में बंद हैं। इस घटना ने जन मानस में उनकी बेदाग छवि दागदार कर दिया है। शीश महल के रहस्योद्घाटन से तो उनकी आम आदमी वाली छवि तो नष्ट हो ही गई। लोग अब उनकी बातों पर ज्यादा विश्वास नहीं करते और यही कारण है कि उन्हें अपनी छवि सुधारने के लिए विपक्षी नेताओं से पींगे बढ़ानी पड़ रही है। उनसे मित्रता बढ़ाकर वह भ्रष्टाचार के मामलों से उनका ध्यान भटकाना चाहते हैं ताकि वे इस पर अपना मुंह न खोलें। एक चतुर राजनेता की तरह केजरीवाल ने कांग्रेस के मामले में एक बड़ा दांव खेला। उन्होंने सीधे कांग्रेस के अध्यक्ष खड़गे और राहुल गांधी से मिलने का भी समय मांगा। आलाकमान अभी मंथन ही कर रहा था तभी दिल्ली के कांग्रेसी नेताओं खासकर अजय माकन, संदीप दीक्षित वगैरह ने उनके खिलाफ दोनों वरिष्ठ नेताओं को आगाह किया। दिल्ली के कांग्रेस नेताओं का कहना था कि पार्टी अध्यक्ष को यह भूलना नहीं चाहिए कि कि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में उनकी पार्टी को न केवल सत्ताविहीन किया था बल्कि चेहरा भी काला किया। फिलहाल एआईसीसी के सदस्य और पार्टी की दिल्ली इकाई के पूर्व अध्यक्ष जय प्रकाश अग्रवाल कहते हैं कि हमने हमेशा केजरीवाल का विरोध किया है और पार्टी का स्टैंड भी यही रहा है। उन्होंने कहा कि हमने आम आदमी पार्टी की खोखली शिक्षा नीति का विरोध किया और शराब मामले को तो पूरी तरह से उठाया है। हमारी पार्टी दिल्ली में कभी भी केजरीवाल से हाथ नहीं मिलायेगी। संदीप दीक्षित ने भी यही बात कही और कहा कि केजरीवील ने शीला जी के खिलाफ क्या कुछ नहीं कहा था। उन पर व्यक्तिगत हमले भी किये थे। केजरीवाल की नीति बहुत स्पष्ट है। वह अपने महत्वपूर्ण आलोचकों की संख्या घटाना चाहते हैं और उनमें अपनी छवि सुधारना चाहते हैं। केजरीवाल चाहते हैं कि विपक्षी एकता की आड़ में वह केन्द्र के अध्यादेश को कानून बनने से रुकवा दें। लोकसभा में तो यह बिल आसानी से पारित हो जायेगा लेकिन फिलहाल 237 सीटों वाली राज्यसभा में इसे सीधे पारित कराने के लिए बीजेपी को अन्य दलों का साथ लेना पड़ेगा। उसके पास अब जेडीयू और शिवसेना (उद्धव) का साथ भी नहीं है। केजरीवाल को लगता है कि अगर वह विपक्षी एकता के नाम पर ज्यादातर विपक्षी राज्यसभा सांसदों का साथ लेने में सफल रहेंगे तो यह बिल राज्य सभा में पारित नहीं हो पायेगा।

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