रणघोष में करिए आस्था से सीधी बात

 मथुरा के मंदिरों में पांच बहनें करेंगी आपसे सवाल, तैयार रहिए


सही जवाब पर परमात्मा से सीधी मुलाकात, कमीशन एजेंट की जरूरत नहीं


WhatsApp Image 2023-06-25 at 10.19.09 PMरणघोष खास. प्रदीप नारायण


भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा के मंदिरों में कदम रखते ही आस्था- भक्ति- लगन- समर्पण- भाव बहनों ने एक साथ एकाएक रास्ता रोक लिया। पूछ लिया इंसान के भीतर इंसान तलाशने आए हो या सैर सपाटा करने..। कोई जवाब नहीं। कभी इधर देखे कभी उधर। हाथ भी जोड़े चली जाओ । बड़ी मुश्किल से समय निकालकर आया हूं यहां भी आ पहुंची।  बच्चे साथ में है। क्या सोचेंगे दिमाग खराब हो जाएगा। मेहरबानी करके चली जाओ। दरबार के पास पहुंचे तो पुजारी ने इशारा करके करीब बुलाया। बोले जो परेशानी है दूर हो जाएगी। एक काम करो भंडारे के नाम की पांच किलो चीनी बोल दो। हिसाब लगाया तो खर्चा बजट के दायरे में था। झट हां भरी। पुजारी ने तुरंत दरबार के अंदर बैठे अपने सहयोगियों को इशारा किया। बच्चों के साथ छोटे से गेट से प्रवेश कर गया। 200 रुपए दिए। जीवन में पहली बार प्रतिमाओं के रास्ते परमात्मा को करीब से निहारने का अवसर मिला। कुछ देर पहले तक मुझ पर रौब दिखा रही आस्था- भक्ति- लगन- समर्पण- भाव बहनें  भी नजर नहीं आईं। मन ही मन खुश हुआ देखा पांच किलो चीनी का कमाल। तबीयत से प्रतिमाओं को आंखों में उतारता रहा। अलग से विशेष प्रसाद मिला।  इतराता और रौब के साथ जैसे ही मंदिर से बाहर आया। पेट के बल मंदिर की तरफ आते भक्तों को देख ठहर गया। पास पहुंचा तो आस्था- भक्ति- लगन- समर्पण- भाव बहनें उस भक्त के लिए परमात्मा से मिलाने का रास्ता बना रही थी।  मुझे देखकर खुब हंसी बोली कर आए दर्शन। तुम जैसो को परमात्मा से भी मिलने के लिए भी बिचौलिए चाहिए वह भी कमीशन एजेंट की शक्ल में। इन बहनों ने पसीने में पूरी तरह नहाए पेट के बल शरीर को तरह तरह का कष्ट देकर मुस्कराते भक्त की तरफ इशारा करते हुए कहा कि इनकी परमात्मा से सीधी मुलाकात है। तुम्हारी भी हो जाती अगर तुम रोजमर्रा के जीवन में हम बहनों की मर्यादा को खंडित नहीं होने देते। तुमने यहां भी आकर पमात्मा के साथ सौदेबाजी की है जो तुम रोज अपने पेशे में करते हो। असलियत खुलते ही सारी खुशियां वापस अपने घर लौट गईं। रह गए परेशान-विचलित करने वाले सवाल। आया था दिमाग का बोझ हलका करने। झकझोरने वाले इन सवालों की गठरी सिर पर रखकर ले आया। खुद से मंथन किया। अगर  परमात्मा के दरबार में 200 रुपए से विशेष दर्शन की परपंरा आस्था है तो भक्ति का भी सड़क की तरह टेंडर कर देना चाहिए।  हजारों साल हो गए धर्म आस्था के नाम पर चलते इस पांखड को। ऐसा करने वालों के जीवन में न सत्य का कोई पता है न नारायण का। न इनके जीवन में राम की कोई झलक है। न कृष्ण का कोई रस बहता है। न तो बांसुरी बजती है इनके जीवन में कृष्ण की, न मीरा के घुंघरुओं की आवाज है। इनके जीवन में कोई उत्सव नहीं है, कोई फाग नहीं है, कोई दीवाली नहीं है। इनके जीवन में कुछ भी नहीं है। इन्होंने तो सिर्फ धर्म के नाम पर तुम्हारा शोषण करने की एक कला सीख ली है। ये पारंगत हो गए हैं। और ये उन बातों को उपयोग करते हैं, जिन बातों से सहज ही तुम्हारा शोषण हो सकता है। वे तुम्हारे अहंकार को फुसला रहे हैं कि दान से बड़ा पुण्य नहीं है, कहां जा रहे हो, दान करो! और लोभ को पाप का बाप बताते हैं। वह तुमसे कह रहे हैं कि लोभ पाप का बाप है, बचो इसे हमें दे दो। हम तुम्हें हलका किए देते है। बात खत्म..।