रणघोष में नगर परिषद में अभी तक का सबसे बड़ा खुलासा,

20 प्रतिशत कमीशनखोरी से बनता-बिगड़ता है शहर का चेहरा, बिल पास नहीं हुआ तो ठेकेदार का ईमान जागा, दूध का धुला कोई नहीं


– पढ़िए ठेकेदार ने जो खुलासा किया उसमें कितनी सच्चाई है

– इससे पहले के काम में ठेकेदार ने दिया था कमीशन

– ठेकेदार का दावा 80 प्रतिशत से ज्यादा पुराने कर्मचारी एवं अधिकारियों के पास करोड़ों की संपत्ति


 रणघोष खास. सुभाष चौधरी


सोमवार को नगर परिषद के हार्टिकल्चर ठेकेदार शीशराम और नप अधिकारी- कर्मचारियों के बीच हुए झगड़े ने नप के अंदर- बाहर विकास के नाम पर होने वाले कामकाज की असलियत को सामने रख दिया है। नप ईओ मनोज यादव के साथ जो हुआ वह एकदम गलत था। ऐसा कहकर झगड़े की असल वजह को खत्म कर देना भी भयंकर भूल होगी। ठेकेदार का सबूतों के साथ बताना और सेक्टर  एक- तीन- चार की आरडब्ल्यूए का ठेकेदार के समर्थन में आना यह साबित करता है इस घटना का असल सच आना अभी बाकी है। ठेकेदार ने इस पूरे मामले की किसी हार्टिकल्चर, हुडा या पीडब्ल्यूडी विभाग के अधिकारी से जांच कराने की मांग की है। उसका कहना है कि उसके पास वह तमाम सबूत है जो यह साबित कर देंगे कि उसने काम किया है नहीं। उसकी गलती सिर्फ इतनी है कि उसने इस बार के काम में 18 से 20 प्रतिशत का कमीशन नहीं दिया। वह इसलिए नहीं दिया क्योंकि उसने ई टेंडरिंग से इस बार बहुत कम रेट में इस कार्य को लिया था। ऐसे में या तो वह अधिकारी- कर्मचारियों को खुश कर दें या पार्कों की दुर्दशा सुधार दें। हर लिहाज से इस पूरे मामले की जांच कराने को तैयार है।

नप में हुई घटना को देखे तो ठेकेदार शीशराम का तौर तरीका सही नहीं था। वजह ईओ मनोज यादव ने एक माह पहले ही ज्वाइन किया था। हालांकि वे पहले भी यहां रह चुके हैं। उस समय भी इसी ठेकेदार के साथ बिल को लेकर विवाद हुआ था। उस समय इसी ठेकेदार ने 17 माह काम किया था। उसका कहना है कि शुरूआत के दो-तीन बिलों को पास कराने उसे 18 से 20 प्रतिशत कमीशन देना पड़ा। बाद के बिलों में जब कमीशन नहीं दिया तो अधिकारियों ने उसके बिलों में से 15-20 प्रतिशत की राशि कम कर दी जिसके खिलाफ वह उच्च अधिकारियों को लिख चुका है। साथ ही कोर्ट में भी केस कर रहा है। उसका कहना है कि जब उसके काम में कोई गलती नहीं थी तो राशि किस आधार पर काटी गईं।

 पढ़िए ठेकेदार ने जो खुलासा किया उसमें कितनी सच्चाई है

ठेकेदार के अनुसार दिसंबर 2020 में उसकी ग्रीन गार्डन इंटरप्राइजिज फर्म को ई- टेंडरिंग के माध्यम से शहर के सेक्टर 1, 3, 4 के अलावा सुभाष एवं राव तुलाराम पार्क का टेंडर मिला था। 4 दिसंबर को उसने काम शुरू कर दिया था। उससे पहले पार्क पूरी तरह से उजड़े हुए थे। दिन रात मेहनत करके पार्कों की हरा भरा किया। इसके लिए हर रोज नप के पांच से छह अधिकारियों के मोबाइल पर अपडेट रिपोर्ट जाती थी। सेक्टरों की आरडब्लूए उनके काम से बेहद खुश थी। इसलिए 6 अप्रैल को सभी ने मिलकर लिखित में उनके कार्य के प्रति संतोष जताते हुए एनओसी दी हुई है। 3 जून को उसके काम का छह माह पूरा हो गया। हर महीने काम के रख रखाव पर एक से डेढ़  लाख रुपए का खर्चा आता है। नियमानुसार हर महीने बिल पास होना चाहिए लेकिन अभी तक एक रुपया भी नहीं दिया। वह लगातार अधिकारियों से मिलता रहा। नप की तकनीकी टीम ने मौके पर जाकर उसके दो माह का बिल भी ओके कर दिया था लेकिन ऊपर जाकर रोक दिया गया। उसकी वजह कमीशन नहीं मिलना था। ठेकेदार का कहना है कि उसने ई टेंडिरंग से बहुत कम रेट में  बिना किसी सिफारिश के यह काम  लिया था। ऐसे में या तो वह अधिकारी- कर्मचारियों को खुश कर लो या पार्क का रख रखाव। इस वजह से उसके बिल पास नहीं हुए। स्थिति बिगड़ने लगी तो उसने कहा कि वह  कमीशन पेमेंट मिलने के बाद कर देगा उस पर अधिकारी कर्मचारी नहीं माने। किसी तरह वह इधर उधर से कर्ज लेकर मजदूरों को पेमंट देता रहा। जब धैर्य टूट गया तो वह मजदूरों को लेकर नप पहुंच गया ताकि उन्हें भरोसा हो जाए कि नप से उसे अभी तक एक रुपया भी नहीं मिला। वहां तनाव की स्थिति बन गईं। जिस आडियो में मारो मारो की आवाज आ रही है। वह उनके मजदूरों की नहीं नप अधिकारियों की तरफ से बुलाए गए सफाई कर्मचारियों की है।

इससे पहले के काम में ठेकेदार ने दिया था कमीशन

ठेकेदार ने माना कि इस कार्य से पहले भी उसने 17 माह नप में काम किया था। जिसमें उसे बिल पास कराने के लिए 18 से 20 प्रतिशत कमीशन देना पड़ा। शुरूआत के दो- तीन बिलों के बाद कमीशन नहीं दिया तो उसके बाकी के बिलों में 20 प्रतिशत की राशि काट दी गई जिसके खिलाफ वह लड़ रहा है। इस बार उसने जो यह काम  लिया है वह 20 लाख रुपए टेंडर का है। अगर काम नहीं करता तो सेक्टर तीन, चार एवं एक की आर डब्ल्यूए उसके काम से खुश नहीं रहती। वह हर लिहाज से अपने काम की जांच हार्टिकल्चर, हुडा एवं पीडब्ल्यूडी विभाग के अधिकारियों से कराने के लिए तैयार है। ठेकेदार का कहना है कि कुछ ठेकेदारों के बिल पीछे के दरवाजे से पास कर दिए गए।

ठेकेदार का दावा 80 प्रतिशत से ज्यादा पुराने कर्मचारी एवं अधिकारियों के पास करोड़ों की संपत्ति

ठेकेदार का कहना है कि नप में आमतौर पर हर साल 50 से 100 करोड़ रुपए के विकास कार्य होते हैं। हर काम में 18 से 20 प्रतिशत कमीशन पद के हिसाब से वितरित होता है। इस हिसाब से देखा जाए तो हर पुराना कर्मचारी एवं अधिकारी के पास करोड़ों रुपए की अकूत संपत्ति है। उसके पास पुख्ता जानकारी है कि किस अधिकारी- कर्मचारी के पास करोडों के फार्म हाउस, शानदार घर है। उनके बच्चे देश विदेश में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं जबकि उनका वेतन उनके ठाठ बाट के मुकाबले कही नहीं ठहरता।

 बिल पास नहीं हुआ तो ठेकेदार का ईमान जागा, दूध का कोई धुला नहीं

 ठेकेदार ने जिस तरह से खुलकर नप के अधिकारियों पर हमला किया है। उसमें वह खुद भी कटघरे में आ चुका है। अगर यह घटना नहीं होती तो शायद ठेकेदार भी इस राज पर पर्दा डाले रखता। इस पूरे मामले में कौन अधिकारी या कर्मचारी पूरी तरह से ईमानदार है। निष्पक्ष जांच से सबकुछ सामने आएगा। इतना जरूर है कि ठेकेदार के आरोपों  को इसलिए गलत नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि शहर की आरडब्लूए उसके साथ खड़ी नजर आ रही है। एसोसिएशन अपने सेक्टरों में बहुत बड़ी हैसियत रखती है। 2016 से पहले सेक्टर हुडा के अधीन आते थे। उस समय हार्टिकल्चर विभाग  पार्कों की रख रखाव के लिए आरडब्ल्यूए के खाते में यह राशि डालती थी। उसी से ठेकेदार के माध्यम से पार्कों का काम होता था। बाद में हुडा ने इन कार्यों को नप के हवाले कर दिया। नप ने टेंडर प्रणाली से काम कराना शुरू कर दिया था।

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