रणघोष में पढ़िए हिंदू हाई स्कूल प्रबंधन समिति चुनाव में हार-जीत की असली वजह

रामकिशन गुप्ता की टीम खुलकर सड़कों पर थी, मंगला के पास चोरी- चोरी चुपके चुपके..


रामकिशन गुप्ता की नाव भरी थी लेकिन उसमें सवार छेद करने वाले भी थे इसलिए कम वोटों से जीते।  मंगला की किश्ती मे कोई बैठने को तैयार नहीं दूर से हाथ हिलाते रहे.. इसलिए किनारे के करीब पहुंचकर पलट गईं। 


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


मॉडल टाउन स्थित शहर की नामी शिक्षण संस्थान हिंदू हाई स्कूल प्रबंधन समिति चुनाव के आए नतीजों में हार-जीत की वजह भी अब सामने आ रही है। लगातार चौथी बार प्रधान बने रामकिशन गुप्ता की जीत में उनके धड़े का खुलकर साथ में रहना, चलना और मतदान के अंतिम समय तक बने रहना था वहीं भाजपा रेवाड़ी मंडल अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा रहे  दीपक मंगला के साथ स्थिति एकदम उलट थी। कहने को मंगला के साथ इस समिति का एक बड़ा प्रभावशाली धड़ा बैनर व पोस्टर में नजर आ रहा था लेकिन वोट मांगने के नाम पर वह जोर अजमाइश व पसीना बहाता नजर नहीं आया। इसलिए मंगला ना तो मतदान से एक दिन पहले रामकिशन गुप्ता की तरह रोड शो कर अपना प्रभाव जमा पाए। इतना ही नहीं मतदान के समय भी बूथ एजेंट के  तौर पर भी कोई आगे नहीं आया। मंगला को अपने दोनों बेटों व रिश्तेदार को यह जिम्मेदारी सौंपनी पड़ी। मतदान केंद्र पर भी मंगला खुद ही टैंट लगवाते नजर आए।  इसके बावजूद मंगला का 325 वोट ले जाना उसकी हार से ज्यादा ताकत को ज्यादा दिखा गया।  उधर दूसरी तरफ रामकिशन गुप्ता की जीत में जो अंतर आना चाहिए था वह उम्मीद से बेहद कम रहा। यह सीधे तौर पर उनके साथ भीतरघात व दो नावों में सवारी करने वालों को समय पर नहीं पहचाने की गलती रही। गौर करने लायक बात यह है कि रामकिशन गुप्ता प्रधान पद के सबसे मजबूत चेहरा थे। उनके साथ अन्य पदों पर खड़ी उनकी टीम इतनी दमदार नहीं थी कि वे अपने दम पर जीत जाए। इसके बावजूद रामकिशन जहां 125 वोटों से जीते तो उप्रधान संदीप जैन 200 व संयुक्त सचिव पवन गुप्ता 201 वोट से जीत गए। मतलब साफ है कि रामकिशन के सहारे जो नाव  किनारे पर पहुंच रही थी उसमें बैठे कुछ लोग उसी में छेद कर चुके थे। यही हाल दीपक मंगला के साथ भी नजर आया। उनकी तरफ से कुल पदों में से चार उम्मीदवार कम उतरे या उतारे गए।  सबसे महत्वूपर्ण सचिव पद को भी उन्होंने तोहफे में रामकिशन गुप्ता धड़े को दे दिया। ऐसे में इसका नुकसान भी मंगला धड़े को साफतौर से हुआ। इसके बावजूद महज 15 दिनों की एक्सरसाइज में मंगला ने 325 वोट लेकर साबित कर दिया कि चुनाव में किसी को हलके में लेना घातक साबित हो सकता है। रामकिशन गुप्ता बेशक जीत गए लेकिन ऐन वक्त पर उन्हें चुनौती मंगला धड़े से नहीं अपनों के बीच के भीतरघात से मिली  जिस पर पर भरोसा करके वे अपनी जीत को बेहद मजबूत मानकर चल रहे थे। रामकिशन गुप्ता की जीत में असली सूत्रधार उद्योगपति एवं समाजसेवी अशोक सोमाणी, आनंद स्वरूप डाटा व अरविंद गुप्ता विशेष तौर से रहे। इन्होंने इस चुनाव को खुद की प्रतिष्ठा से जोड़कर अलग अलग रणनीति के तहत अंतिम समय तक  मोर्चे को संभाले रखा। मंगला के पास मजबूत चेहरे थे लेकिन वे रामकिशन गुप्ता ग्रुप के रणनीतिकार की तरह मैदान में नजर नहीं आए। इन सभी की वजह से यह चुनाव अलग अलग कारणों से उम्मीदवारों की जीत- हार तय कर गया।     

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