रणघोष में पढ़े कोरोना से जुड़ी दो बड़ी कहानियां, एक रूलाएगी दूसरी जिंदगी के मायने बताएगी

अशोक कुर्मी स्पाइडर मैन नहीं, सैनिटाइजर मैन


रणघोष खास. मुम्बई से


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मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता और सायन फ्रेंड सर्किल फाउंडेशन के अध्यक्ष अशोक कुर्मी इन दिनों मुंबई की सड़कों पर स्पाइडरमैन की ड्रेस में लोगों को कोविड-19 से बचाने का काम कर रहे हैं। असल में अशोक स्पाइडरमैन की ड्रेस पहन कर मुंबई के विभिन्न इलाकों में बस स्टैण्ड और बसों को सैनिटाइज करने का काम कर रहे हैं। उनकी पीठ पर एक सैनिटाइजेशन किट बंधी रहती है। सैनिटाइजेशन के साथ वे लोगों को मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग के लिए जागरूक करने का भी काम कर रहे हैं। स्पाइडरमैन की ड्रेस पहन कर सैनिटाइजेशन करने का मकसद यह है कि उन्हें ऐसा करता देख लोग याद रखें। इससे उन्हें सैनिटाइजेशन, मास्क और सोशल डिस्टेसिंग का पालन करने का सबक भी याद रहेगा।


अंतिम संस्कार में भाग लेना पड़ा भारी


रणघोष खास. हिमाचल से


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हिमाचल के कोटगढ़ में रहने वाला सिंह परिवार गांव की भीड़-भाड़ से दूर, सेब के बगीचे में बने घर में रहता है। रमन सिंह के 74 वर्षीय पिता नंदकिशोर सिंह रिटायर्ड स्कूल टीचर थे। उनकी 71 वर्षीया मां कांता सिंह गृहिणी थीं। रमन की आंखों के सामने उनके माता-पिता चल बसे और वे कुछ न कर सके। पिछले साल नवंबर में परिवार के सभी छह सदस्य माता-पिता, रमन, उनकी पत्नी शिल्पा और दोनों बच्चे (आठ साल का श्रेष्ठ और चार साल का सहर्ष) कोविड पॉजिटिव पाए गए। सबसे पहले कांता सिंह को 8 नवंबर को कुछ लक्षण दिखे। दरअसल, रमन के माता-पिता एक रिश्तेदार के अंतिम संस्कार में पास के गांव गए थे। विदेश से आई एक महिला भी उस मौके पर पहुंची थी। उस रिश्तेदार की मौत कैंसर से हुई थी। मां के बाद रमन को भी बुखार हो गया। घर में लगातार इलाज के बाद भी मां की हालत नहीं सुधर रही थी। ऑक्सीजन स्तर गिरने लगा तो रमन मां को लेकर शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचे। उन दिनों को याद करते हुए रमन बताते हैं, “बड़ी मुश्किल से उन्हें वार्ड में जगह मिली तो ऑक्सीजन दी जाने लगी। मां को जल्दी ही उन्हें वेंटिलेटर पर ले जाया गया। हालत में कोई सुधार नहीं हुआ।”
रमन मां का इलाज करा ही रहे थे कि घर से पिता, पत्नी और दोनों बच्चों के पॉजिटिव होने की खबर आई। पिता को शिमला के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल लाया गया, लेकिन तीन दिन तक उनका इलाज शुरू ही नहीं हो सका और हालत बिगड़ती चली गई। उनकी बहन ने चंडीगढ़ के कई बड़े अस्पतालों के बारे में जानकारी ली, लेकिन ऑक्सीजन बेड या वेंटिलेटर कहीं उपलब्ध नहीं था। आखिरकार दिवाली के दिन, 14 नवंबर को रमन और उनके माता-पिता को जीरकपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती किया गया। चार दिन के बाद रमन ठीक हो गए, लेकिन मां को प्लाजमा थेरेपी से भी फायदा नहीं हुआ। पिता के खून में प्लेटलेट के गिरते स्तर को सुधारने की कोशिशें भी बेकार गईं। नंदकिशोर सिंह ने 24 नवंबर को आखिरी सांस ली। कुछ ही घंटे बाद उनकी पत्नी कांता भी चल बसीं।

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